– अवधेश कुमार आशुतोष
गजल
लुभा गया भँवर जहाँ अधर खिला गुलाब हूँ
छलक गयी शराब आँख से मदिर जनाब हूँ।।
हसीन रूप देखकर दिया खिताब चाँद का
न भूल मत मुझे कभी हसीन माहताब हूँ।।
न बाँटता दवा कभी न भक्ष्य दूँ शरीर को
निखार दूँ मैं चूमकर सनेह आफताब हूँ।।
नकाब में छुपी रही शराब आँख से गिरी
जनाब आज देख लो लजीज मैं शबाब हूँ।।
मुझे कभी जो पा गया जहान पा गया समझ
सुअंग हूँ सुवर्ण सा सुहास में सवाब हूँ।।
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