– डॉ. विभा माधवी
गजल
गई इक बार जीवन से उमर बाली नहीं आती
अकल को खोलनेवाली कभी ताली नहीं आती।।
नियम ब्रह्मांड का बदला कभी ऐसा हुआ है क्या
कभी भी भोर में पश्चिम दिशा लाली नहीं आती।।
मरे में जान आती हो कभी हमने नहीं देखा
अगर हो पेड़ सूखा तो कभी डाली नहीं आती।।
पुलिस बदनाम भारत में, हकीकत भी कहेंगे हम
पुलिस में कौन ऐसी है जिसे गाली नहीं आती।।
वधू का क्रोध पीना हो चरण में लेट भी जाओ
बिना पग शंभु के तन पर कभी काली नहीं आती।।
शहर हो गाँव या कस्बा, लगी है भीड़ मेले सी
सफर में रेल हो या बस कभी खाली नहीं आती ।।