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अलका मित्तल
शहर की जानी मानी हस्ती सेठ दीनदयाल जी अंधविश्वास में विश्वास नहीं रखते थे। झूठे दिखावे आडम्बरों से दूर रहते थे। लेकिन ईश्वर को पूर्ण श्रद्धा के साथ मानते थे। दूसरी तरफ़ उनका मानना था कि दान ज़रूरी नहीं कि मंदिरों में ही दिया जाए। किसी गरीब ज़रूरतमंद को दिया दान ही सच्चे अर्थों में ईश्वर तक पहुँचता है बाक़ी तो मन तसल्ली है। “अंधेरी गली में प्रकाश बिखेरते एक दीये का बहुत महत्व है , जबकि… अनेक जलते दीयों के बीच उसका कोई अस्तित्व नही होता । पहले से ही सम्पन्न किसी व्यक्ति को दान न देकर किसी गरीब ज़रूरतमंद को देना ही श्रेयस्कर है।”
लेकिन उनकी पत्नी राधा का मानना था भगवान के चरणों में चढ़ाया दान सीधे ईश्वर तक पहुँचता है। अक्सर पति पत्नी में कहासुनी भी हो जाती । पत्नी का मन रखने को वो भी ज़्यादा बहस में नहीं पड़ते और वो जहाँ जाना चाहतीं बिना मन के भी चले जाते। सर्दी शुरू हो गई थी सो आज भी राधा ने शहर से दूर बने पहाड़ी वाले मन्दिर में जाकर गर्म कपड़े, कम्बल, खाने पीने का सामान और चढ़ावे के रूपये देने के लिए आग्रह किया। बात बढ़ाना नहीं चाहते थे सो वे बेमन से तैयार हो गये। सारा सामान गाड़ी में रखवाकर वो सुबह जल्दी ही निकल गये । लेकिन पहले तो गाड़ी में कुछ दिक़्क़त आई सो रूकना पडा । कुछ आगे बढ़े ही थे कि तेज बारिश शुरू हो गई। इतनी बारिश में आगे जाना मुश्किल था । सामने एक चाय की दुकान दिखाई दी ड्राइवर को रूकने का इशारा किया। और तेज़ बारिश से बचते हुए खोखेनुमा दुकान में पड़ी बेंच पर बैठ गये। तीन चाय का आर्डर दिया। काँपते हाथों से एक बूढ़े आदमी ने चाय उनके सामने रक्खी तो दोनों का मन पसीज गया। “बाबा आप इस उम्र में…आपके बच्चे नहीं हैं क्या? राधा ने काँपती आवाज़ में पूछा । हैं बेटी ,लेकिन..इस बूढ़े के लिए ना उनके घर में जगह है ना दिल में। छ महीने पहले पत्नी चल बसी। जीवन से कोई मोह नहीं है । लेकिन जब तक जीवन है ।पेट की ख़ातिर …।आँखें और गला दोनों भर आये ।
बाक़ी के शब्द अंदर ही रह गये।”
“राधा ने पति की तरफ़ देख कुछ इशारा किया। दीनदयाल जी उठे ड्राइवर के साथ सारा सामान बाबा को देकर बोले ! बाबा ! ये आपके लिए । नही साबजी ! ऊपर वाला कैसे भी मदद कर देता है। पीछे हटते हुए बूढ़े ने कहा।”
“रख लो बाबा ! समझ लेना ईश्वर ने ही आपके लिए भेजा है । आगे आ राधा ने कहा।”
“पति की तरफ़ देखा। बिना बोले ही दीनानाथ जी ने महसूस किये
राधा के बिन बोले शब्द ! जैसे राधा कह रही हो सही कहते थे आप…..।”