समीक्षा
पुस्तक : छँटते हुए चावल, लेखिका : नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’, पेज : 144, मूल्य : 199 रूपये, प्रकाशन : ए. बी. एस. पब्लिकेशन, समीक्षक : राजीव पुंडीर
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राजीव पुंडीर
नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’ का दूसरा कथा संग्रह आया है ‘छँटते हुए चावल’ . इस संग्रह में चौदह कहानियाँ हैं .
सभी कहानियां निम्न या फिर निम्न मध्यवर्गीय परिवारों की कहानियाँ हैं जो ग्रामीण अंचल से ली गई है . कहानियों में मुख्य विषय समाज में फैली विषमताएं, रूढ़ीवाद, अशिक्षा, प्रेम और विवाहेतर संबंध इत्यादि को बहुत सीधे – साधे और सटीक तरीके से लेखिका ने समझाने की पुरजोर कोशिश की है जिसमे वह सफल भी रही हैं . कहानियों की भाषा साधारण परंतु सुंदर है . और प्रवाह एक नदी की तरह है जो कलकल करते हुए अपने गन्तव्य की तरफ अविरल बढ़ती है और आप उसके किनारे बैठ कर आराम से अपने पाँव उसमें डाल कर उस प्रवाह का आनन्द ले सकते हैं . मित्रों, ऐसी कहानी वहीँ लिख सकता है जिसने उस तरह का जीवन को न सिर्फ जिया हो बल्कि घूंट – घूंट पिया भी हो .
पहली कहानी ‘छँटते हुए चावल’ ही है, जो इस संग्रह का शीर्षक भी है . मेरे लिए एक मुहावरा ही है जिसका सही अर्थ मुझे कहानी पढ़ने के बाद ही ज्ञात हुआ . किसी व्यक्ति के बारे में बिना ठीक से जाने ही लोग क्या – क्या बोलने लगते हैं ये कहानी का सार है . इस कहानी की एक पंक्ति ने मुस्कराने के लिए मजबूर कर दिया, ‘रोटियां सिकतीं गईं दिमाग पकता गया’ . कहानी ‘खोइंछा’ भी कुछ – कुछ वैसे ही विषय पर आधारित है . जिसमें एक स्त्री को बिना उसका पक्ष जाने ही उसकी बेटी की मृत्यु का दोषी मान लिया जाता है . धीरे – धीरे जब सच की परतें खुलती हैं तब कहानी को काफी दिलचस्प और पठनीय बनाती हैं . ‘शीतल छांव’ में इशिता और नरेन से मुलाकात होती है, जिनकी जिन्दगी में लाखों गम है . समाज के कुछ महा स्वार्थी नियम किस प्रकार एक लड़की के जीवन से खेलते हैं पढ़ने योग्य हैं, जो अंत में आँखें नम कर देती हैं .
एक कामवाली बिमली जो कहती है – ‘का करूं दीदी, हमार छत तो हमार मरद ही है न, तुम्हारे समाज में औरत लोग जल्दी ही तलाक ले लेती है, पर हम गरीब औरत पति के लात – जूता खाके बस सहती हैं .’ फिर क्या हुआ ? इसके लिए कहानी ‘बिछावन’ पढ़नी होगी . इसे श्रेष्ठ कहानी का पुरस्कार भी मिला है !
एक बलात्कार का शिकार हुई लड़की से लेखिका आपको ‘कला अध्याय’ में रु – ब – रु करवाती हैं . उसकी मन स्थिति जो खंडित हो चुकी है . उसको अपनी शादी के समय कुछ ऐसा करने पर मजबूर कर देती है, जिसको पढ़कर पाठक चकित रह जाता है . यह कहानी पत्रात्मक शैली में है .
‘हम बोझ नही’ एक प्रेरणा दायक कहानी है, जो हर हाल में जीवन जीने और संघर्ष करने के लिए कहती है . ‘डे – नाईट’ मुबई – गुजरात की चालों में रहने वाली एक नव वधु की कहानी है . जो एक ही रूम में ससुराल के बाकी सदस्यों के साथ रहने के लिए मजबूर है . उसका पति भी शर्म के मारे माँ – बहनों के सामने पत्नी के पास खुल नही पता और अंत में दूसरा राह निकलता है .
‘आस भरा इंतजार’ एक गरीब मजदूर के परिवार की कहानी है . जहाँ एक स्त्री कितना मजबूर हो जाती है कि वो नए साल पर अपने बच्चों को खीर तक नहीं खिला सकती . पढ़कर आंखें भींग जाती हैं . ‘खुल गई आंखें’ में ऐन्द्री के व्यक्तित्व के बारे में जान कर अच्छा लगता है . ‘माफ़ करना’ एक प्रेम कहानी है . ‘एक कथा ऐसी भी’ में उदासी शुरू से पाठक पर हावी रहती है, मगर धीरे – धीरे कहानी आगे बढ़ती है तो अच्छी लगने लगती है . ये एक लड़की के दर्द भरे जीवन की एक बेहतरीन कहानी है . माँ न बनने का दर्द क्या होता है ये ‘रिश्तों का ताना – बना’ में पढ़ा जा सकता है . कैसे एक पुरुष के कारण कहानी सुखद बन पड़ी है .
कभी – कभी इंसान ऐसी विकट स्थिति में पड़ जाता है कि कोई रास्ता नहीं मिल पाता और गाँधी जी के तीन बंदर की तरह आँखें बंद करनी पड़ती है . एक बेहद दिलचस्प कहानी ‘बंद आँखों का बंदर’ है . चौदहवी कहानी है ‘चीरहरण’ . जिसमें एक लड़की और उसकी माँ को अपने मासिक धर्म से निबटने के लिए क्या – क्या करना पड़ता है . जब खुद उनके परिवार के लोग उनकी परेशानी को समझने के लिए तैयार नही है . बढ़ियां प्रस्तुति है .
हमारे समाज में प्रचलित कुप्रथाओं, विषमतओं और कुंठाओं को परत – दर – परत उघाड़ती ये साधारण भाषा में कही गयी आपकी, मेरी और हम सबकी कहानियां हैं .
चौदह कहानियों के अलावा इसमें लेखिका की आत्म रचना भी है ‘लेखन मेरे जीने का साधन’ . इसमें लेखिका के संघर्ष और उसकी लाइलाज बीमारी की पूरी गाथा लिखी गई है जो दिल को छूती है.
कहानी में कोई खास कमी नही है, मगर भाषा को अभी और परिस्कृत करने की आवश्यकता है ताकि वो साधारण से थोड़ा असाधारण की तरफ अग्रसित हो . अपने उपनाम ‘नित्या’ को चरितार्थ करते हुए नीतू खूब लिखे और धारदार लिखे . ‘छँटते हुए चावल’ कथा संग्रह साहित्य के क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करे, यही मेरी शुभकामना है .