– विद्या शंकर विद्यार्थी
‘हरिया, आज भी काम पर आयेगा ?’ होटल के मालिक ने कुछ अलग ही अंदाज़ में पूछा
‘ नहीं मालिक, अभी दर्द ठीक नहीं हुआ है, सीधा होता हूं तो कमर चिल्हिक जाता है।’ हरिया ने दर्द भरे स्वर में कहा।
‘यह चिल्हिक बीमारी कैसी बीमारी है रे ? मैंने कुछ समझा नहीं ।’
‘आप नहीं समझेंगे मालिक! यह हम जैसे गरीब लोगों को जब ठंड बढ़ती है तो कमर में गड़ जाती है।’
‘तो डाक्टर से कहकर कड़ी दवा क्यों नहीं लेता ?’
‘एक कर्ज उतरता नहीं और लेते जायेंगे तो चिंता में दबकर मर जायेंगे।’
‘तो मेरा काम बैठायेगा।’
‘नहीं, आज आंगन में आई है थोड़ी सी धूप, दिन भर लूंगा, आ जाऊंगा कल काम पर।’
‘गजब की दवा है रे, तुम लोगों के लिए थोड़ी सी धूप।’ मालिक ने दीनता पर कटाक्ष किया।
थोड़ी सी धूप ही है जो कमर दर्द में मालिश कर जाती है और गरीब आदमी राहत पाता है।
- रामगढ़, झारखण्ड