–डॉ. मेहता नगेन्द्र
कथा-पुरुष रेणु
अमृत-पुरुष रेणु
क्या हो गया कि
तुम्हारे हिरामन ने भी
औरों के संग
अपने चेहरे का रंग
बदल लिया है
अपने जीने ढंग
बदल लिया है
याद है
तुम्हारे रहते वह
तीन बार क़सम खा चुका था
झूठ बोलने की सज़ा भी पा चुका था
पर, आज वह
रोज झूठ बोलता ह
बात -बात पर
झूठ, नहीं बोलने की कसमें
बार-बार खाता है
रात छोड़, दिन में भी
सीमान्त गावों से
तस्कर की वस्तुएँ
गाड़ी में लाद शहर लाता है
पूर्वांचल तक ही
अब सीमित रही नहीं
सारे अँचलों में
रमणियों के आँचल
मैला होने लगा है
वर्ग-संघर्ष अब रहा कहाँ
जाति-संघर्ष में बदल गया
शर्मनाक परिदृश्य
दमघोंटू वातावरण
अविश्वास की परिधि
जात-पात की दीवारें
ऊँच-नीच में दरारें
सबकुछ प्रत्यक्ष है
सारा आँगन एक मरघट सा दिखता
नदी-किनारा ज़हर भरा पनघट सा रहता
कहने को बहुत कुछ है,लेकिन
आकर समझा दें
अपने हिरामन को
अब ऐसा-वैसा
कुछ न करे,और
झूठ-मूठ की क़समें
हरगिज न खाए।
◆ -रेणु’ जन्म-शताब्दी
4मार्च,2022
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