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महेन्द्र “अटकलपच्चू”
रात का अंधेरा
जिसने मुझे घेरा
मैं चिल्लाया
न तेरा न मेरा।
रात का अंधेरा
बीत गया सबेरा
अब छोड़ो
अपना डेरा।।
रात का अंधेरा
चारों ओर घेरा
चुप हो जा
न कर तेरा,
न कर मेरा।।
चांद का डेरा
छाया घेरा
चला गया
सारा अंधेरा।।
सुबह सबेरा
चहकी चिड़ियां
सूरज ने अब
डाला डेरा।।
अब न करना
भैया मेरे
तेरा–मेरा
मेरा–तेरा।।