– कौशल मुहब्बतपुरी
खिले फूल मँजरी बगिया; झुकते डाल सुवासित कलियाँ।
बौंराये भौरे
चहकती गौरैया;
नाचते लोग
गुंजित मड़ैया।
उगता सूरज
चलती नैया;
इतराते बच्चे
पुचकारती मैया।
लहलहाते खेत
बरगद की छैंया;
हँसती धरती
रंभाती गैया।
हँसते चेहरे
खुशनुमा दुनिया;
वसंत का मौसम
घर लौटे भैया ।
वंशी की धुन
गाता गवैया;
उड़ते गुलाल
पगलाया सैंया।
जीवन का रंग
बिखेरती धनिया;
मुस्कराता ‘कौशल’
बढ़ती जीवन नैया।