– प्रवीण आर्य
गजल
अजीब कशमकश में है यह फ़िज़ा सारी
मौत की बख़्शी हुई ज़िन्दगी की मारी ।।
ख़्वाब धुल गए हैं अश्को की बरसातों में
ग़म के मौसम में यह सिलसिला है जारी।।
विश्वास का उजाला है न वफ़ा की उम्मीद
गिरते हैं हर शाख़ से पत्ते बारी बारी।।
गुल की किस्मत में लिखा है बिखरना
सदियों से हवाओं की ये सियासत है जारी।।
मौसम-ए-गुल जो आएगा अब के बरस
देखें क्या फस्ल उगाती है ज़मी इस बारी।।