– नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’
झुनी ने जैसे ही पूजा करनी शुरू की पानी गिरने की आवाज आई । उसने सोचा कि कोई किरायेदार मोटर बंद कर देगा। 2 – 3 मिनट बाद भी मोटर बंद नहीं हुई क्योंकि बंद दरवाजे के अंदर तक टंकी भर जाने के कारण खूब जोर – जोर से पानी गिरने की आवाज आती रही।
झुनी ने भगवान से माफी मांगी और पूजा छोड़ जल्दी से मोटर बंद करने के लिए भागी।
दोनों तरफ के फ्लैटों के बीच में पानी की बाढ़ आ गई थी। उसने भिंगते हुए जाकर मोटर बंद की। जब वह अपने कमरे में जाने लगी तो दोनों फ्लैटों की दो – चार औरतों को मुस्कुराते हुए देख उसके तन बदन में आग लग गई, “तुम सब देख रही हो कि कब से पानी गिर रहा है तो मोटर बंद कर देनी चाहिए थी न। मैं पूजा छोड़ कर मोटर बंद करने आई।”
“हमें क्या पड़ी है ? इस फ़्लैट का सेठ भाड़ा नहीं लेता क्या ? वह मोटर चालू करके गया था तो उसे बंद करनी चाहिए थी। वैसे भी वह सुबह – शाम ही पानी देता है। दोपहर में पानी अगर खत्म हो जाए तो शाम तक इंतजार करना पड़ता है। कम से कम इसी बहाने उसका पानी तो बरबाद हुआ।” रूबी की मम्मी ने चिल्ला कर कहा।
झुनी बोली, “दो टाइम पानी मिलने का यहीं मतलब है कि पानी को यूँ ही नाली में जाने दिया जाए ? शर्म करो ! यह पानी मेरा, तुम्हारा या सेठ का नहीं है बल्कि ईश्वर और प्रकृति की देन है। व्यर्थ पानी गिराने से हम अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारते हैं । कम से कम अपने आने वाली पीढ़ियों के लिए तो पानी सेव करो !”