– जनार्दन मिश्र
1 – मानुष गंध
सुख गया है गुलाब
तुम्हारा दिया हुआ
मगर, इसमें सिक्त
स्नेहिल देह गंध की
कशिश
ज्यों का त्यों
बरकरार है
हमने इसे
संजोया है
अपने
अन्तःस्थल में
जनम जनम के लिए ..!!
2- जब रात हो जाए
जब रात हो जाए
बात हो जाए
तो इंतजार
मत करना
ज्यादा इंतजार
कभी कभी
फलदायी
नहीं होता
चल देना
उसी राह पर
जहां से यह
रात
आई है
बातें होंगी रात से
मुलाकातें होंगी
रात से
इत्मीनान से
कि तू रात
क्यों कहलाई
क्यों नहीं तू
रात होने से
घबराई
कि दिन भी
तू अब
रात ही
कहलाई
कि सारी प्रतिकूल क्रियाएं
अब तुम्हारी रात में नहीं
दिन के उजास में बेधडक
हो रही हैं
सफेदपोशों के द्वारा
सुनियोजित ढंग से …!!
3- हँसो
हँसो
हँसो
हँस हँस कर
अपनी हँसी में
फँसो
फँसो
जिंदगी इसी का नाम है
जिंदगी का यह भी एक
काम
है
अपने गम को छुपाने का
सबसे आसान सुलभ यही
है रास्ता
इसमें दूसरे से तनिक भी
नहीं है वास्ता
बोझ नहीं करता
कोई स्कूली बस्ता
न डर कोई होता
गुरु जी की छड़ी
का
यह ही एकमात्र
राह
जीवन की लड़ी का
यह ही एकमात्र
होता है बिना
कड़ी का
जीवन है तो
बिना किसी
झड़ी के
जियो
खूब हँसो
खूब हँसो
और अपनी ही
हँसी में ही खूब
फँसो
खूब फँसो ..!!