– महेन्द्र “अटकलपच्चू”
रोजी की तलाश कर रहे हम
यतीम की जिंदगी जी रहे हम
भूख की मार सहन नहीं होती
धूप की गर्मी से सूख रहे हम।।
भटक-भटक कर थक गए हैं हम
किस मुसीबत में फंस गए हैं हम
भूखे पेट अब रहा नहीं जाता
पेट की अगन से सूख गए हैं हम।।
दर-दर जाकर मांग रहे हैं हम
कुछ तो दे दो मांग रहे हैं हम
काम नहीं करेंगे तो क्या खायेंगे
बिन रोजी के भटक रहे हैं हम।।
काम नहीं तो क्या करेंगे हम
बिन रोजी के नहीं मरेंगे हम
रोजी रोटी तन को कपड़ा
बिन आशियाना कहां जायेंगे हम?
– ललितपुर (उ. प्र.)
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