– सुरेन्द्र कौर बग्गा
दस फ्लैट्स वाली हमारी मल्टी-स्टोरी बिल्डिंग में सभी एक परिवार की तरह रहते हैं। नव- वर्ष से लेकर होली, गणेश -चतुर्थी, नवरात्रि, दीपावली आदि त्योहार मल्टी-स्टोरी में सामूहिक रूप से मनाएं जाते। सभी परिवार इकट्ठे होकर बड़े उत्साह और उमंग से मौज मस्ती में डूबे आनंदपूर्वक ये त्योहार मनाते।
आज गणेश- विसर्जन का दिन था और भोजन की व्यवस्था की गई थी तभी अगले दिन से शुरू होने वाले पितृ- पक्ष की चर्चा शुरू हो गई । युवा- पीढ़ी का कहना था कि श्राद्ध पक्ष में हम ऐसे पुरोहितों को खाना खिलाते हैं जो एक ही दिन में कई घरों में जीमने जाते हैं और शाम को दक्षिणा से लदी पोटलियों के साथ घर पहुंचते हैं। ऐसे लोगों को खाना खिलाने से क्या मतलब है जिनके पेट पहले से ही जरूरत से ज्यादा भरे हुए हैं, क्यों नहीं इनकी जगह हम उन गरीबों को भोजन कराएं जिन्हें कभी दो वक्त का भरपेट भोजन भी नसीब नहीं होता?
बात तो उनकी बिल्कुल सही लग रही थी, इसी चर्चा के दौरान हम सब ने मल्टी में सर्व-पितृ अमावस्या के सामूहिक आयोजन की योजना बना ली।
हमने सभी घरों में काम करने वाली बाइयों, सफाई कर्मचारी और मल्टी की चौकीदारी में लगे गार्ड आदि के परिवारों को भोजन के लिए आमंत्रित किया। मल्टी की सब महिलाओं ने मिलकर खीर, पूरी, कचौड़ी और मिठाइयां बनाई। सभी आमंत्रितों को कम्युनिटी हाल में बिठाकर हमारे बच्चों ने बड़े प्रेम से उन्हें भोजन परोसा।
उन गरीब बच्चों ने जीवन में शायद पहली बार ऐसे स्वादिष्ट भोजन का स्वाद चखा था। उनका पूरा ध्यान खाने की ओर था। उन्हें भोजन करते हुए देखकर मुझे अम्मा जी की याद आ गई, जब भी घर में कचौड़ी बनती वह खाने के बाद फिर ललचायी निगाहों से कचौड़ियों को देखती,
बच्चे पूछते- ‘दादी और कचौड़ी चाहिए क्या ?’ उनका पेट भर जाता था लेकिन शायद उनका मन तृप्त नहीं होता था। फिर हम उन्हें और कचौड़ी दे देते, वह बड़े कृतज्ञ भाव से हमें देखती और उनके चेहरे पर संतोष और तृप्ति के भाव देखकर हम भी बड़े खुश होते।
आज इन सभी गरीबों को भी खाना खाते देखकर लगा मानों हमारे पितृ साक्षात् भोजन के लिए उपस्थित हो गए थे। भोजन करवाने के बाद सारे बच्चों को एक-
एक जोड़ी नए कपड़े और खिलौने दक्षिणा में दिए गए। उनका कृतज्ञता का भाव, खुशी, आंखों की चमक और चेहरे पर तृप्ति के भाव देखकर लगा सचमुच में आज हमारे पितरे तृप्त हो गए थे।
- 343, विष्णुपुरी एने.इंदौर
मो.9165176399
प्रशंसनीय है, यह अनूठी पहल।