समकालीन लघुकथाओं में विजयानंद विजय ने उकेरी
संवेदनाओं की ताज़गी : सिद्धेश्वर
पटना : 31/10/2021!.” लघुकथा यात्रा में ढेर सारे ऐसे लघुकथाकार आए हैं, जिन्होंने शौक के रूप में लघुकथा को अपनाया और फिर छोड़ भी दिया ! कइयों ने तो लघुकथा के बारे में सोचा समझा भी नहीं, और लिख डाली लघुकथा ! आप सोच सकते हैं कि ऐसे रचनाकार कितनी सार्थक लघुकथाओं का सृजन किया होगा ? नवें दशक के बाद जिन लघुकथाकारों ने लघुकथा आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वाह किया, उनमें एक नाम विजयानंद विजय का भी है l हलाकि उनकी नवीन लघुकथा कृति “संवेदनाओं के स्वर ” बहुत बाद में आई, किंतु लघुकथा वे काफी दिनों से लिख पढ़ रहे हैं l अपनी मौलिक चिंतन धारा एवं वैचारिक पृष्ठभूमि के कारण उनकी अपनी अलग पहचान है !”
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में गूगल मीट पर ऑनलाइन आयोजित,” मेरी पसंद : आपके संग ” के तहत “पुस्तकनामा ” में चर्चित लघुकथाकार विजयानंद विजय की नवीन लघुकथा कृति ” संवेदनाओं के स्वर ” पर समीक्षात्मक टिप्पणी देते हुए संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किये। पुस्तक में प्रकाशित लघुकथाओं पर टिप्पणी देते हुए लघुकथाकार ने कहा है कि ” लघुकथा संवेदनाओं और अनुभूतियों का विस्तृत फलक है, जो अदृश्य है,अकथ है, अपरिमेय है, कल्पनातीत है l कोई भी कथन, शब्द, वाक्य, दृश्य, घटना, दृष्टांत, मनोभाव, जब हमारे अंतर्मन में प्रवेश कर हमारी संवेदनाओं को स्पष्ट करता है, झकझोरता है, तब रचनाशील और कल्पनाशील मानव मन, उसके प्रकृटीकरण को उद्धत होता है l और तब लघुकथाकार उसे लघुकथा के रूप में ढाल देता है l ”
लघुकथा की मानक परिभाषा के परिप्रेक्ष्य में लघुकथाकार विजयानंद विजय अपनी लघुकथाओं के माध्यम से सजग और सचेत दिख पड़ते हैंl संग्रह की तमाम लघुकथाएं यथा भूख, एहसास, दूरदृष्टि, लकीर, जुगनू, शांति, जादूगर, खुशी, कोलाहल, पैसेंजर ट्रेन, रिक्शावाला संकट, जीने की राह, प्यासी नदी, सपनों की उड़ान, आई हेट हिंदी, स्वदेशी,कुछ ऐसी ही लघुकथाएं हैं l समकालीन लघुकथाओं में विजयानंद विजय की लघुकथाएं संवेदनाओं के स्वर की ताज़गी का एहसास करा जाती है !”
गूगल मीट की मुख्य वक्ता, राज प्रिया रानी ने उनकी लघुकथाओं पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि – ” विजयानंद विजय की लघुकथाएं मुझे समसामयिक विषयवस्तु पर केंद्रित लगीं, जिसमें उनकी लेखनी तीखे कटाक्ष का रूप लिए एक संदेश देती हैं, जो समाज की विविध विसंगतियों को इंगित करती हैं।हृदयविदारक लघुकथा ” और कहानी पूरी हो गई ” आक्रामकता की मनोदशा को दर्शाती हुई वीभत्स रिवाज तले पलते सामाजिक नंगापन को उकेरती है। नारी शोषण और अत्याचार का अद्भुत परिदृश्य दर्शाया गया है इस लघुकथा में।” फर्ज ” एक देशप्रेम और देशभक्ति की भावना से प्रेरित कम शब्दों में एक सुंदर लघुकथा है। वहीं “झूठा सच ” गंदी राजनीति और नेताओं के बड़बोलेपन का दुष्प्रभाव आम जनता की भावनाओं को कहां तक ठेस पहुंचाता है, झूठे वादों की भरपाई कहां तक हो पाती है, उसका उत्कृष्ट उदाहरण “झूठा सच” लघुकथा है। कम शब्दों में इतनी गूढ़ बातें कहने की कला है विजयानंद विजय की लघुकथाओं में।
संतोष सुपेकर, अपूर्व कुमार, मधुरेश नारायण, सुनील कुमार, जे. एल. सिंह ने भी कहा कि – ” इस कृति के माध्यम से विजयानंद विजय एक सशक्त लघुकथाकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए हैं l क्योंकि समकालीन लघुकथाओं में विजयानंद विजय की लघुकथाएं ” संवेदनाओं के स्वर ” ताज़गी का एहसास करा जाती हैं।
• प्रस्तुति : अपूर्व कुमार, भारतीय युवा साहित्यकार परिषद, मोबाइल :9234760365