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विद्या शंकर विद्यार्थी
‘दो रुपये दे दो बाबू ।’ गंदे फटे वस्त्र पहने दस वर्षीय बच्चे ने याचना की।
‘अब्बे, प्लेटफार्म पर पैदा होता है और प्लेट फार्म पर ही मांगते खाते मर जाता है, बाप का पता तो है नहीं, तेरी माँ कहाँ है रे ?’ फन्टूस आदमी ने ऐंठते हुए पूछा।
‘बाबू, दो रुपये दिये नहीं और इतनी सारी भद्दी गालियाँ … आप भी मेरी माँ से संबंध बनायेंगे क्या ?
आप जैसे लोग ही तो हमें पैदा करते हैं… और हम आपहीं के खून तो आपसे भीख मांगते हैं।’ उन्हें लगा जैसे बच्चे ने तमाचा जड़ दिया।
क्या पता गंदगी और बढ़ेगी या रूकेगी।
- रामगढ़, झारखंड