– मधुलिका श्रीवास्तव
चिर अखण्ड सौभाग्यवती
प्रकृति का आओ नव श्रृंगार करें
बहुयामी चित्र हैं धरती से अम्बर तक
शोभित है सूर्य की आभा ले इन्द्रधनुष
क्या आ गया बसंत?
बसंत तो मन की अनुभूति है
नेह स्नेह मृदु गंध की लहर है
यह ऋतु चक्र है या काल चक्र या ऋतु परिवर्तन की बेला है
हाहाकार मचा चहूं ओर
घबराया है मानव
शायद शायद
पाप और पाप के भागीदारों पर
चक्र सुदर्शन चला रहें
भगवान
प्रतीत हो रहा जैसे
शिव तांडव हो रहा
पर
पर मैं भी अंश हूँ
शिव का, मनु की संतान
अटूट आस्था का दीप जला
फिर से नव सृजन नव श्रंगार करूंगा
इस माटी के तन मन को ऊर्जा नई दूँगा
नव गीत नव संगीत
नव भाव सुमन वीणा पाणि
का श्रृंगार करूंगा
अनुराग रंजीत बजा ढोल
शंख सहस्त्र कमल पुष्प अर्पित करुंगी
हे हंस वाहिनी
हे माँ अब दया दृष्टि करो…करो