विज्ञान व्रत
ग़ज़लें
उनकी आँखें मैख़ाने
छलकाती हैं पैमाने
चुप थे यों तो फ़र्ज़ाने
लेकिन सबने पहचाने
पहले ख़ुद तो समझें वो
आये हैं जो समझाने
वो था मेरे भीतर ही
छान फिरा मैं तहख़ाने
ग़लती चाहे जिसकी हो
लेकिन मुझ पर जुर्माने
2.
पास में हो तो जतलाओ ना
चूड़ी – कंगन खनकाओ ना
एक मुजस्सम ख़ुशबू हो तुम
ख़ुद को थोड़ा बिखराओ ना
तुमको देख के बहका हूँ मैं
तुम भी ख़ुद को बहकाओ ना
अब तुम ख़ुद को ढूँढ़ चुके हो
मुझमें आकर खो जाओ ना
मुझको जो भी समझाना है
ख़ुद ही आकर समझाओ ना
इतनी मदिरा है आँखों में
अब थोड़ी – सी छलकाओ ना।