– लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
इत्र से महके बदन, तो वह समझ लो बेकार है,
सदचरित्र से जीए जीवन से, महकता संसार है।
इत्र की खुशबू, बस! कुछ घड़ी में खत्म हो जाती,
सद्कर्मों से बदल सकता, समाज व परिवार है।।
परिवार और समाज बदलने से, होती है प्रगति,
हमारे विचारों में परिवर्तन की, आती खूब गति।
अच्छे विचारों से महकने लगता, हमारा जीवन,
हम सद्प्रयास करते रहें, आगे जैसी हो नियति।।
हमारे सद्प्रयासों को, भाग्य भी देता है संबल,
जीवन में असंभव कार्य भी, हो सकते हैं हल।
सद्प्रयासों में प्रायः मुश्किलों से, होता सामना,
हाथ की रेखाएँ भी बदल जाती, जो हैं अटल।।
जीवन में कभी कभी सद्प्रयास, नहीं होते सफल,
हम अपने को कभी न अकेला माने, न ही निर्बल।
अकेले गाँधी जी ने, आजादी के लिए बढ़ाए पाँव,
फिर पूरा देश उनके साथ, कदम मिला दिया चल।।
हम अपने जीवन में सद्प्रयास को, कभी न छोड़ें,
जो जीने के तय किए सिद्धांत, उसे कभी न तोड़ें।
कभी सफलता, कभी विफलताओं का होगा दौर,
विजय मिले, उन कोशिशों को अपनी ओर मोड़ें।।
- ग्राम-कैतहा, पोस्ट-भवानीपुर
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