– डॉ.जियाउर रहमान जाफरी
घर जब आते बाबू जी
फिर थक जाते बाबू जी
खोजते अपने सब बच्चों को
जहां न पाते बाबू जी
सूखी टूटी हड्डी से भी
अभी कमाते बाबू जी
घर में बैठे भैया चाचू
बोझ उठाते बाबू जी
खांसी दम्मा शूगर फिर भी
हंसे हंसाते बाबू जी
यों तो बेटे चार-चार पर
किन्हें बुलाते बाबू जी
कितने दुख को पाल रखे हैं
कुछ बतलाते बाबूजी
हर मौसम में छतरी जैसे
हमें छुपाते बाबू जी
क्या क्या बोलूं मैं बाहर से
क्या-क्या लाते बाबू जी
– असिस्टेंट प्रोफेसर
स्नातकोत्तर हिंदी विभाग
मिर्जा गालिब कॉलेज गया बिहार
9934847941