देशभक्ति कविता प्रतियोगिता 2020 तथा अन्य कविताएँ
1. अनुज चतुर्वेदी ‘अनुभव‘
2. वीणा पाण्डेय भारती
3. आचार्य नीरज शास्त्री
4. डॉ. गुलाब चंद पटेल
5. बृंदावन राय सरल
6. रितेन्द्र अग्रवाल
7. बाबू राम सिंह कवि
8. पूरण मल बोहरा
9. सत्येन्द्र सिंह
10. रीतु प्रज्ञा
11. सुमन पाठक
12. डा अंजु लता सिंह
13 आशीष आनंद आर्य ‘इच्छित’
14. प्रियंका त्रिवेदी
15. श्रद्धानंद चंचल
16. मधु वैष्णव मान्या
17. पुष्प रंजन कुमार
18. घनश्याम ‘कलयुगी’
19 . सुरेन्द्र कौर बग्गा
20. विष्णु शास्त्री सरल
21 देवी प्रसाद गौड़
22 कुमार शैलेन्द्र वशिष्ठ
23 . प्रतिभा स्मृति
24 कुं० जीतेश मिश्रा शिवांगी
- अनुज चतुर्वेदी ‘अनुभव‘
कवियो…..
कवियो ! जैसे भी हो जिनपिंग को समझा देना।
बहुत हो चुकी उछल कूद आती है भारत की सेना।।
भारती के लाल कभी युद्ध से डरते नहीं।
जानते हैं हम झपटकर दुश्मनों की जान लेना।।
गीदड़ों को साथ लेकर शेर क्या बनने चला ?
रण में ही जवाब देगी तुझको भारत की सेना।।
भद्रकाली ने अगर पांव रखा युद्ध में।
संभव नहीं होगा तेरा नक्शे में दिखाई देना।।
2.
अपना देश
ओह ! कैसा है यह अपना देश।
जहां चोर उचक्के बदलते हैं वेश।।
मुखौटे के पीछे कौन सच्चा, कौन झूठा, कौन अपना, कौन पराया।
बदले हैं फेस।।
ढोंगी, पाखंडी करते हैं क्लेश।
आओ! संवारें अपना देश।।
दें दिशा, बदलें दशा।
जिससे आदमी बन सके ब्रह्मा,विष्णु, महेश।।
3.
जय भारत देश महान
चाइना हो, पाक हो या फिर हो ईरान।
भारत से कर दुश्मनी होंगे सब श्मशान ।।
भारत छोड़ेगा नहीं अगर आ गया क्रोध।
बचकर जाएगा नहीं कोई भी शैतान।।
गीदड़ भभकी दे रहा सबको ही हर रोज़।
नहीं बचेगा युद्ध में वायरसी सुल्तान।।
बीजिंग पर लहराएगा भारत का ध्वज उच्च।
युद्ध अगर करने लगे रणबांकुरे जवान।।
शांति होगी विश्व में फिर न होंगे युद्ध।
सारी दुनिया गाएगी जय भारत देश महान।।
4.
रण चण्डी का खाली खप्पर
रण चण्डी का खाली खप्पर वीरो भर दो ख़ून से।
अपने भारत की धरती को सींचो अपने खून से।।
शत्रु की सेना को वीरो! सीमा पर ही रोक दो।
तिलक करो मां भद्रकाली का तुम शत्रु के खून से।।
वंदे मातरम् ऊंचे स्वर में बोलो इतनी जोर से।
दहल उठे शत्रु की सेना खेले खुद के खून से।।
5.
भारत के बच्चे
हम भारत के बच्चे हैं।
सबको लगते अच्छे हैं।
भोले-भाले दिखते हैं-
और चरित्र के सच्चे हैं।।
अन्य कविताएं
1.
पत्थरों से डर है…
यारो ! मुझे पत्थरों से डर है।
क्यूंकि,मेरा काँच का घर है।।
मिटने न दूंगा मैं तुझे,कुछ होने न दुंगा,
क्यूंकि,धड़ पर मेरा ही सर है।
हर वक्त याद आती है उसकी,
क्यूंकि,वो अपनों से बेखबर है।
रूप को लेकर ही क्यूं तू घूमती,
जालिम-हैवानों से भी क्या तू निडर है?
भरोसा उन पर यूं ही न कर तू ‘अनुज’,
उसकी मुस्कान में भी प्रिय ज़हर है।
2.
नहीं भूले…
प्यार की दो बात करना हम नहीं भूले ।
घाव पर मरहम भी रखना हम नहीं भूले।।
माना कि कलम रुक गई है कुछ पल मगर ।
पाक की औकात लिखना हम नहीं भूले।।
होठ हैं खामोश लेकिन गूंगे नहीं हैं हम।
देश पर बलिदान होना हम नहीं भूले।।
सोचना मत बाजुओं का बल हुआ शिथिल।
वीरता की हाम भरना हम नहीं भूले।।
‘अनुज’ के उर उग्रता का विष नहीं भरो।
अमरत्व को विषपान करना हम नहीं भूले।।
3.
पिताजी
पिताजी जो हैं निराले।
सोचते बढ़ जाएं सारे।।
पिताजी जिनकी वजह से।
मैं बढ़ा अपनी जगह से।।
काम में रहते हैं आगे।
हम सभी से तेज भागें।।
प्यार करते वे सभी से।
सुख नहीं मिलता किसी से।।
दर्द को सहते रहे हैं।
नदी से बहते रहे हैं।।
दुख कभी छाने न देते।
अश्रु भी आने न देते।।
पिताजी से सारा चमन है।
कोटिश: उनको नमन है।।
4.
जादू मेरा चल जाए
जादू मेरा चल जाए।
दीप प्यार का जल जाए।।
दिल मेरा यह कहता है।
प्यार किसी का मिल जाए।।
बने राम का मन मंदिर।
मन का भरम निकल जाए।।
ज़हर भरी है यह दुनिया।
फूल प्रेम का खिल जाए।।
प्यार ‘अनुज’ का सच्चा है।
पुष्पित होकर खिल जाए।।
5.
दोहे
लीला करते श्याम जी, मर्यादा प्रभु राम ।
दिनभर रटिए रामजी, निशिभर रटिए श्याम।।
राम भक्त हनुमान जी, दिनभर जपते राम।
राम नाम सुमरे बिना, करते नहीं आराम।।
नंदलाल हैं श्याम जी, दशरथ सुत श्री राम ।
मन में रखिए श्याम जी, उर-अंतर श्री राम ।।
मेहनत करिए रोज ही ,रोज कीजिए ध्यान।
राम सिया के नाम से ,कारज होत महान ।।
मातु जानकी वंदना, राम नाम को ध्यान ।
मन से करिए रोज ही, निश्चित हो कल्याण।।
काम करें रघुनाथ जी, होत हमारौ नाम ।
थोड़ो- थोड़ो तुम करौ, सुमिर- सुमिर श्री राम।।
ठुमक ठुमक कर प्रभु चलें, सुखद अयोध्या धाम।
कागा रोटी ले उड़ौ, भागत पकड़त राम।।
गोरौ है कर्पूर सौ ,भोला जाकौ नाम।
राजा है संसार को, कैलाशी सुखधाम।।
वीणा पाण्डेय भारती
1.
मेरा देश
अंधियारा दूर हटे हो नया विहान
मेरा देश, मेरी जान मेरा हिन्दुस्तान
सबके लब तरानें हो हर जुबां पे गान,
मेरा देश मेरी जान मेरा हिन्दुस्तान .
अब न हो तुफां ना ही आधियां चले
हो उजास चारों तरफ हर दीया जले
टिमटिमायें तारें रहे मस्त आसमान
मेरा देश मेरी जान मेरा हिन्दुस्तान .
मजहबों के नाम लहू और ना बहे
मुल्क हैं सबों का और सब यहां रहे
मंत्र पढ़े मंदिर दे मस्जिदें अजान
मेरा देश मेरी जान मेरा हिन्दुस्तान .
चिमिनियों में आग रहे श्रमिक सब कमायें
कृषक वधू खेतों में नाच – नाच गायें
अन्न के भंडार भरे खुश रहे किसान
मेरा देश मेरी जान मेरा हिन्दुस्तान .
सिंधु गरजता है हिमालय भी खड़ा है
देश का जवान शरहदों पर अड़ा है
कम न होने देंगें कभी तीन रंगों की शान
मेरा देश मेरी जान मेरा हिन्दुस्तान .
अंधियारा दूर हटे हो नया विहान
मेरा देश मेरी जान मेरा हिन्दुस्तान .
2.
धरती है बलिदान की
झूम-झूम कर पवन सुनाए
गाथा हिन्दुस्तान की
जिस मिट्टी में जन्म लिए वह
धरती है बलिदान की .
खड़ा है प्रहरी सीमा पर जो
उनसे हमारा नाता है
सीने पर गोली खाकर के
सबकी जान बचाता है
समभावों से करें प्रार्थना
ऐसे वीर जवान की
जिस मिट्टी में जनम लिए हम
वो धरती है बलिदान की
रक्षक जो भक्षक बन बैठे
उनको सबक सिखाना है
राग – द्वेष में नित जलते जो
जीवन नया दिखाना है
अखंडता का दीप जलाएँ
और बाती सम्मान की
जिस मिट्टी में जनम लिए हम
वो धरती है बलिदान की
निकल रहे जो शब्द यहाँ पर
अन्तर्मन की पीड़ा है
उठो किसानों वीर जवानों
तू भारत का हीरा है
आज लेखनी अस्त्र – शस्त्र है
महिमा तेरे शान की
जिस मिट्टी में जनम लिए हम
वो धरती है बलिदान की
झूम-झूम कर पवन सुनाएं
गाथा हिन्दुस्तान की
जिस मिट्टी में जन्म लिए हम
वो धरती है बलिदान की .
3.
जय हिंद जय हे भारती
जय हिंद जय हे भारती
हो के विकल पुकारती
अपनी दुर्दशा को देख
वो मन ही मन कराहती
जय हिंद जय हे भारती .
करुणा के साथ सो रही
करुणा के साथ जागती
तिरंगे लिपटे लाल को
करुणा से ही निहारती
जय हिंद जय हे भारती .
हालात को टटोल कर
हालात को सुधारती
नियति जो नियत किया
उसे भी नित सँवारती
जय हिंद जय हे भारती .
ये सब्र को भी आंकती
नहीं कभी बिगाड़ती
संतान जो भटक गए
उसको भी नित सुधारती
जय हिंद जय हे भारती .
4.
देश पर मर मिट जाने वाली
थी मजबूत इरादों वाली
तनिक नहीं घबराने वाली
देश प्रेम से सिंचित था उर
देश पे मर मिट जाने वाली .
बिना स्वार्थ के पुत्र -भाव से
निज जन की सेवा थी करती
रहे सुरक्षित झाँसी कैसे
पल पल इसी में जीती मरती .
मुखड़े पर दीपित था सूरज
हिय में शीतल चारु चाँदनी
मातृभूमि प्राणों से प्यारी
अधरों पर थी विरद रागिनी .
झाँसी मेरी है मेरी रहेगी
मरते दम तक यह नारा था
साँसें बेशक हार गईं पर
पौरुष नहीं कभी हारा था
हाँ यह कर्म भूमि है मेरी
नत मस्तक है तन मन मेरा
माथ लगा कर मिट्टी इसकी
महक उठा है जीवन मेरा .
5.
अमन का स्त्रोत लाओ माँ
पिला कर ज्ञान का प्याला
मेरे जीवन में आओ माँ
करुँ नित वंदना तेरी
मेरे उर में समाओ माँ .
बँधा जो रूढ़ियों में मन
उसे आजाद कर दो तू
तिमिर चहुँ ओर जो फैला
उजाला साथ लाओ माँ .
दिखे जो आँख में सपने
नये निर्माण भारत का
बहा दो प्रेम की गंगा
अमन का स्त्रोत लाओ माँ .
रचूँ मैं गीत और कविता
भरुँ मैं एकता का स्वर
जलूँ मैं दीप बन करके
वो रस्ता तुम दिखाओ माँ .
अन्य कविताएँ
1.
कलम ढूंढते शब्द
कलम ढूढते शब्द जो गढ़ दे
नारी की परिभाषा
तू माटी की मूरत है या
तेरी भी अभिलाषा
हर्षित करती हो जन-जन को
होठों पर मुस्कान लिए
चलती रहती कर्मो के पथ
बिन कोई अभिमान लिए
आंगन की तुलसी हो तुम,
क्या मौन तुम्हारी भाषा
कलम ढूढते शब्द जो गढ़ दे
नारी की परिभाषा
सो जाते हैं स्वप्न सलोने
तुझको बिन हैरान किए
होठों पर नगमे दब जाते
बिन कोई अरमान लिए
तू पावन गंगा निर्मल हो
सबको तुझसे आशा
कलम ढूढते शब्द जो गढ़ दे
नारी की परिभाषा
तुम लक्ष्मी हो, तुम दुर्गा हो
तुम काली स्वरूप लिए
दुनिया समझे तुमको अबला
तुम नव शक्ति स्वरूप लिए
शांति – त्याग की मूरत हो तुम
तुम बिन जग है प्यासा
कलम ढूढते शब्द जो गढ़ दे
नारी की परिभाषा .
2.
स्वाभिमान
रोज करुँ कुछ ऐसा काम
हो दुनिया में जिससे नाम
ये जिन्दगानी चार दिनों की
पता नही कब हो जाए शाम
रास्ता कंटक भरा मिला है
फिर भी चलना, नही गिला है
मंजिल तक जाना है मुझको
नही कभी संकल्प हिला है
कुछ भी बोलो हम बहरे हैं
सागर से भी हम गहरें हैं
बात आन पर आ जाए तो
कभी कदम भी ना ठहरें हैं
अपनेपन का भाव सजाएँ
अपनों पर अधिकार जताएँ
छोड़ द्वेष, अनुराग सभी से
हम रिश्तों का मान बढाएँ
कभी ना हो मन में अभिमान
नहीं किसी का हो अपमान
हर दिन बढ़े देश का गौरव
लिख पाएँ कुछ ऐसा गान।
3.
आओ हमसब मिलकर गाएं
आओ हम सब मिलकर गाएं
शुष्क धरा की हर धड़कन में
करुणा की बूंदें बरसाएं
आओ हम सब मिलकर गाएं
आँखों में सपनें जो मचलें
पूर्ण न हो तो क्यों कर उछलें
नयी चेतना नयी रश्मि से
मंजिल को हम पास बुलाएं
आओ हम सब मिलकर गाएं
पतझड़ का आघात न होगा
आँधी झंझावात न होगा
धरती को दुल्हन सा बनाकर
बसंत को बाँहों में लाएं
आओ हम सब मिलकर गाएं
परिवर्तन के हम अभिलाषी
विकास पथ के अविरल राही
हर घर आँगन स्वर्ग बने तो
धरती से आकाश मिलाएं
आओ हम सब मिलकर गाएं
4.
बनी अकिंचन रही खड़ी मैं
बनी अकिंचन रही खड़ी मैं
द्वार तुम्हारें हे प्रियवर
मुझे उठकर गले लगाते
आस जगाते हे प्रियवर
मोती माला मुझे बना तुम
बन धागा रहते अंदर
विरह वेदना क्यों फिर मन में
नयन नीर ढ़लते सत्वर
धागा मोती मिल चाह है
पूर्ण बने अनुपम माला
लिपट गले से झूमुँ, नाचूँ
जीवन पल हो मतवाला
बिखरें नही डाल से पत्ते
प्रेम – नीर से जड़ सींचे
आकर्षण का यह अनुपम पल
एक – दूसरे को यूँ खींचे।
5.
माली
उपवन में निस्तब्ध सोई थी
सुषमा सौम्य निराली
कैसा उगा बबूल वहां पर
जान न पाया था माली
कितने थे अरमान हृदय में
और अमित अभिलाषायें
बदल गया रुख जब समीर का
बैठा माली पछतायें
पेड़ बनेगा बड़ा एक दिन
फूल खिले डाली – डाली
चिड़ियों के कलरव भी होंगें
करेगा माली रखवाली
बासंती जब हवा बहेगी
मंद – मंद सुरभित आंगन
मिल बाटेंगें सुख – दुख हमतुम
अरुणिम होगा यह जीवन
थके पथिक जब – जब आयेंगे
छाया में पाने विश्राम
इक – दूजे से बात करेंगें
सब लेंगे माली का नाम
पेड़ न अपना ही हो पाया
आशाएँ भी रही अधूरी
जैसे वृद्धाश्रम में रहकर
बूढ़ों की बच्चों से दूरी .
आचार्य नीरज शास्त्री
1.
हम देश का वंदन करें
हम देश का वंदन करें
देश ने ही हम सभी को,
अन्न- जल-वायु दिए हैं।
देश ने ही पोषकर,
हम सबल योद्धा किए हैं।
देश ने ही प्रेम का उपदेश,
हम सबको दिया है।
देश ने ही ज्ञान का,
भंडार अति उज्जवल दिया है। देश है पावन परम यह,
इसका अभिनंदन करें।
हम देश का वंदन करें ।।
आत्म-गौरव और करुणा,
देश ने हम को सिखाए।
गले मिलना साथ चलना,
देश ने हम को सिखाए।
देश ने ही धैर्य का,
संदेश शुभ सबको दिया है।
देश ने ही शांति का,
सुख का हमें पल-पल दिया है। देश की मिट्टी परम प्रिय,
भाल का चंदन करें।
हम देश का वंदन करें।।
वेद -आयुर्वेद दे,
उपकार जन-जन पर किया है। देश ने कर त्याग,
शासन विश्व के मन पर किया है। देश ने विज्ञान का भी,
पाठ सब जग को पढ़ाया।
देश ने संगीत का ,
साहित्य का दर्पण दिखाया।
देश की औषधि सुखद हैं,
इनका वन नंदन करें।
हम देश का वंदन करें।।
2.
देश अपनी जिंदगी है
देश अपनी जिंदगी है ।
सत्य यह स्वीकार कर लो ।
मृत्यु पर अधिकार कर लो । जिंदगी सांसे नहीं हैं,
राष्ट्र की यह वंदगी है।
देश अपनी जिंदगी है।।
संवेदना के तीव्र स्वर।
लिख रहा हूं मैं निरंतर।
उमड़ता यौवन न सोचे,
सार दौलत चंदगी है ।
देश अपनी जिंदगी है ।।
परिवार तक सीमित नहीं।
घर द्वार तक सीमित नहीं । जीवित नहीं जो स्वयं तक है,
वह लाश है ,वह गंदगी है।
देश अपनी जिंदगी है ।।
मान इसको मैं लिखूंगा ।
ध्यान इसको मैं लिखूंगा।
बलिदान इसको मैं लिखूंगा।
यह मेरी अभिनंदगी है ।
देश अपनी जिंदगी है।।
3.
नवयुग का निर्माण करेंगे
नवयुग का निर्माण करेंगे, मानव का कल्याण करेंगे ।
मानवता की रक्षा के हित, दानवता निष्प्राण करेंगे। ।
मान करेंगे हर प्रहरी का,
भारत का सम्मान करेंगे।
भारत मां के गौरव को, हम
अर्पित अपनी जान करेंगे । विध्वंस करेंगे विध्वंशक का,
अरि- दल का निर्वाण करेंगे। नवयुग का निर्माण करेंगे, मानव का कल्याण करेंगे।।
भारतीयता की खातिर हम
पूर्ण सभी अरमान करेंगे।
हर प्रहरी का, हर सैनिक का,
हम गौरव में सम्मान करेंगे।
हरण करेंगे अंधकार का, दानवता के प्राण है।
नवयुग का निर्माण करेंगे
, मानव का कल्याण करेंगे ।।आतंकवाद को नष्ट करेंगे ,
उग्रवाद को शांत करेंगे ।
अपने भारत के मस्तक को ,
फिर से हम विक्रांत करेंगे।
प्रशांत करेंगे ज्वाल पुंज को, शीतल अग्निबाण करेंगे ।
नवयुग का निर्माण करेंगे
मानव का कल्याण करेंगे।।
4.
मिटे नहीं जो तलवारों से
भारत मां के इस मंदिर को
हम को भव्य बनाना है ।
मिटे नहीं जो तलवारों से
वह इतिहास रचाना है ।।
जिसके अंदर हो वीर शिवा महाराणा जैसे त्यागी हों।
हर बच्चा जिसका भगत सिंह और जयप्रकाश अनुरागी हो।
पटेल यतींद्र और उधम को
पुन: धरा पर लाना है।
मिटे नहीं जो तलवारों से
वह इतिहास रचाना है।।
जिसमें नारी हों लक्ष्मीबाई, आजाद, तिलक इंसान बने।
सोने की चिड़िया जो भारत हो कश्मीर जहां की शान बने।
ऐसे भारत का सपना ,
हमको साकार बनाना है।
मिटे नहीं जो तलवारों से
वह इतिहास रचाना है ।।
त्याग, तपस्या, बलिदान
हर मानव की रग -रग में हो।
सबसे ऊंचा देश हमारा
फिर से ऊंचा जग में हो।
ऐसा सोच हृदय के अंदर
सोता हिंद जगाना है।
मिटे नहीं जो तलवारों से
वह इतिहास रचाना है।।
चाहे सागर चट्टान बने
पर्वत सागर बन बह जाए।
बलिवेदी पर चढ़ जाएं शीष
पर मां का मान नहीं जाए।
स्वाभिमान की रक्षा के हित भ्रष्टाचार मिटाना है।
मिटे नहीं जो तलवारों से
वह इतिहास रचाना है।।
5.
प्रेरणा
शबनम की बूंदे मानो हों मोती, वसुधा के ऊपर ऐसे पड़ी हैं।
चूमो न इनको बिहंसो में मन में ,
न समझो इन्हें मोतियों की लड़ी है ।।
आंसू हैं मां के, इन्हें पोंछ दो तुम !
सिसकने न दो, जो हिंदी खड़ी है। ढहा दो, नफरत की दीवारें दिल से,
समझ लो सभी यह संकट घड़ी है।।
भारत को समझो, मेरे भारतीयो ! मिटानी है हमको जो दुविधा पड़ी है ।
अंबर न सिसके, न सिसके धरा यह,
एकता की सभी को पिलानी जड़ी है। ।
मां के सपूतो ! ध्वजा हाथ ले लो, हटा दो, गुलामी जो भी अड़ी है। शत्रु के बाजों से चिड़िया लड़ा दो, दिखा दो कि शक्ति हमारी कड़ी है। ।
जग को पुन: तुम शहादत दिखा दो ,
बलिदानों की फिर से जरूरत पड़ी है ।
मातृ- गौरव की खातिर स्वयं को मिटा दो,
लड़ो आंधियों से जो मग में खड़ी हैं ।।
निज रक्त से सींचो अपना चमन यह,
उबारो यह नैया भंवर में पड़ी है। पौरुष दिखा दो पुनः विश्व को वह, जंग -ए -आजादी जिससे लड़ी है।।
जंग-ए-आज़ादी जिससे लड़ी है।।
अन्य कविताएँ
1.
मां
इस दुनिया में ईश्वर की इक परछाईं होती है मां।
बच्चों की किलकारी सुनकर बस मुस्काई होती है मां।।
देख नहीं पाया जो मां को, सिर्फ जरूरत समझी है।
उसकी खातिर सबसे ऊपर दुआ- दवाई होती है मां।।
मां के कारण सुबह सुनहरी लगती है हर मौसम में।
नेहकुंड में डूब-डूब कर खूब नहाई होती है मां।।
मां ऐसी देवी है जिसके रूप अनेकों दिखते हैं।
बेटी, बहन और भौजाई, चाची,ताई होती है मां।।
चाहे मां के मरने की हम रोज़ दुआएं करते हों।
दूध पिलाकर हमें पालती जीवनदायी होती है मां।।
2.
हम मिलने चले आए
हम मिलने चले आए अब लौट के जाना है।
वादा जो किया तुमसे वह वादा निभाना है।
पहले तो हमारी यूं ही मुलाकात हुई थी प्रिये।
फिर धीरे-धीरे तुमसे दिल की बात हुई थी प्रिये।
तब सोच लिया था हमने तुम्हें दिल में बसाना है।
वादा जो किया तुमसे वह वादा निभाना है।।
दी तुमने हमें कसमें उन्हें याद रखेंगे प्रिये।
दम निकलेगा जब तक तुम्हें प्यार करेंगे प्रिये।
तेरे प्यार में जीना है तेरे प्यार में जाना है।
वादा जो किया तुमसे वह वादा निभाना है।।
प्रिय तेरे जन्मदिन का हर बार मने जलसा ।
तुम महको गुलाबों से घर द्वार बने जलसा ।
हर जलसे पर तेरे हमें गीत सुनाना है ।
वादा जो किया तुमसे वह वादा निभाना है।।
विश्वेश करें तेरे अधरों पे रहे लाली।
जीवन में हर दिन ही आए खुशहाली ।
यही मेरा नगमा है ये ही अफसाना है ।
वादा जो किया तुमसे वह वादा निभाना है।।
पूनम के चंदा से तुम लगते सुंदर हो ।
तुम मेरे जीवन हो तुम मेरे प्रियवर हो ।
तुमको तो हमें ‘नीरज’ सांसो में छुपाना है।
वादा जो किया तुमसे वह वादा निभाना है।।
3.
याद मुझे कर लेना
याद मुझे कर लेना !
याद मुझे कर लेना !
मिलूं अगर मैं किसी मोड़ पर आवाज मुझे तुम देना।
याद मुझे कर लेना। साथी अब तक अपना बचपन
संग संग ही गुजरा है।
खूब लड़े हैं खेले हैं संग
जीवन संग गुजरा है ।
संग संग पूरा जीवन गुजरे
ऐसा जतन कर लेना।
याद मुझे कर लेना।।
मुझे बताओ मुझसे बिछड़ के
कैसे रह पाओगे।
किसके साथ पढ़ोगे
किसके संग खाना खाओगे ।
झूले पर झूलो जब मितवा
दिल में मुझे रख लेना।
याद मुझे कर लेना।
एक तुम्हारे पास हमारे पास है एक निशानी।
कभी हमें मिलवा ही देगी
यह पहचान पुरानी।
जीवन की भीषण मुश्किल में उपयोग यही कर लेना ।
याद मुझे कर लेना ।
हां, याद मुझे कर लेना।।
4.
हो गई तुम बेवफा
सनम प्यार कैसा किया
हो गए तुम बेवफा ।
की न हमने कोई खता
मगर तुम हुए हो खफा।।
वाह रे मुकद्दर !
क्या मोहब्बत रही।
चंद नजारे थे
क्या नजाकत रही।
करके प्यार तोड़ दिया
दिल का आईना
वाह बेवफा !
क्या अदावत रही।
मेरे दिल से तेरी यादें
हो ना सकेंगी सफा।
सनम प्यार कैसा किया
हो गए तुम बेवफा।
कुछ दिन पहले तुझको
मुझसे प्यार था
मैं भी तो तेरी खातिर
बेकरार था।
तुझको तो सिर्फ मेरा ही
इंतजार था।
जिंदगी का हर एक
पल बहार था ।
पास क्या आए मेरे
भूले तुम वादे वफा ।
सनम प्यार कैसा किया
हो गए तुम बेवफा।
मैंने तो तुझको पूजा था
खुदा मानकर ।
तोड़ दिया तूने
दिल खिलौना जानकर।
क्यों प्यार की राह में
तूने दगा किया –
लुट गए हम
धोखे को प्यार मानकर ।
क्यों की तुमने सनम
हमसे ऐसी जफा।
सनम प्यार कैसा किया
हो गए तुम बेवफा।।
5.
घट रीता पनघट भी रीता….
घट रीता, पनघट भी रीता, अपना है जीवन घट रीता।
‘नीरज’ का यह नीरस जीवन अमृत बूंद ढूंढ़ते बीता।
मृग मरीचिका बनी हुई है मेरे जीवन के मरुथल में,
कोई बता दे इस महासमर को किस प्रकार से जाए जीता।।
कदम कदम पर मैंने खोजे रामचरितमानस या गीता।
फिर भी राम नाम मिल पाए हैं लगता है जीवन युग बीता।
अथक परिश्रम करता हूं मैं और सोचता बात यही हूं,
जीवन दिन ढलने से पहले मिल जाएंगी माता सीता।।
जीवन का आधार प्रेम है प्रेम भाव प्रभु को भाता है।
प्रेम प्रसून लिए कर में जो प्रभु के सम्मुख आ जाता है।
आएं कितनी भी बाधाएं, कैसा भी अवरुद्ध मार्ग हो,
प्रेम भक्ति के बल पर मानव निश्चित ही प्रभु को पाता है।।
मुझको भी प्रभु मिल जाएंगे मेरा दृढ़ विश्वास यही है।
सीता मां का प्यार मिलेगा मुझको अब भी इस यही है।
जगजननी के दर्शन होंगे उनके इस कलियुगी पुत्र को,
शेष नहीं है कोई इच्छा ‘नीरज’ को बस प्यास यही है।।
डॉ. गुलाब चंद पटेल
1.
कश्मीर मे चमन
कश्मीर में हे सुन्दर चमन,
आ गया है अब जम्मू कश्मीर में अमन
न इसे कोई छिन सकेगा,
न आंख उठाकर कोई देख सकेगा
भारत का हे अनमोल रतन
आओ खुशिया मनाए प्यारे वतन
रंग बिरंगी फूल खिले हैं,
मोदी जी जेसे राजा जो मिले हैं
कश्मीर हे भारत का चमन,
आतंकवादी ओ ने कर दिया प्रस्थान
लेह लद्दाख का नसीब खुला
छप्पर फाड़ के आजादी मिला
कश्मीर हे कली ओ का चमन
प्रकृति प्रेमी उसे करते हैं नमन
कलम 370 कश्मीर से हटाई
35 A अपने आप कट गई
मोदी, अमित ने डॉ भाल की कमाल
नहीं हुआ है जम्मू कश्मीर में धमाल
सांसद शेरसिंह ने सिक्स लगाई
विरोध पक्ष की कमजोरी दिखाई
कश्मीर की अवाम ने खुशी जताई,
तो पाकिस्तान ने अदेखी करवाई
श्री नगर में हे सुन्दर सैलाब
चमन मे हे कवि फूल गुलाब .
2
पुलवामा
वेलान्टाइन डे पर लाल लहू के गुलाब बहाए
44 वीर जवानो ने अपनी जान देकर फर्ज निभाए
हे प्रभु, मेरे वतन को ऎसे दिन मत दिखलाये
जिस से देशवासी ओ के दिल में ठेस पहुंचाए
जानवर हे, वो झेश का आतंकी अहमद आदिल
नहीं सोचा था कि, तुम निकलेगा इतना कातिल
पाकिस्तान हे आतंकवाद की गहरी खाई
पार्थ, अब मत सोचो छेड़ दो तुम लड़ाई
कहा से आया वो 350 किलो विस्फोट
लगा दो तुम उन्हे अब मिसाइल की चोट
अरे, रो रहा है भारत देश सारा पुलवामा
वीर सैनिक उन्हे पहना दो खून के पज़ामे
सारे जहा से तुम अब मत डारिये
पाकिस्तान के साथ युद्ध करिये
जवानो का बलिदान नहीं जाएगा व्यर्थ
पाकिस्तान का बदल जाएगा अब अर्थ
भेड़िया हे वो आतंकी मसूद अज हर
पिला दो उसे कोई एक प्याला जहर
कश्मीर यात्रा पर अब लगा दो रोक
बिना आमदानी खत्म होंगे वो लोग
देश में मचा दिया है कहर
रोक लगा दो पानी सिंधु नहर
हे प्रभु, लौटादे हमे हमारी वो जवानी
शिर काट कर लाऊ मे आदिल जय भवानी
मोदी जी अब मत करो सर्जिकल स्ट्राइक
कर दो पाकिस्तान से पूरे जोश में फाइट
इतिहास में कलंकित रहेगा 14 फरवरी 2019
नहीं जिंदा बचेंगे दुश्मन देश की सभी पुलिस
आतंकवादयोके ठिकाने तोप से तुम फूंकना
पाकिस्तान के सामने वीर सैनिक मत झुकना
वीर सैन्य के लिए बहा दो प्यार का सैलाब
बस, एक ही आशा करते हैं कवि श्री गुलाब
मत रखो अब कोई किसी से भय
प्रेम से बोलो भारत माता की जय .
3.
नया भारत बनाएगा
जम्मू कश्मीर जाएगा, जाएगा
कलम 370 रद करवाएगा, करवाएगा
35 ए वो भी रद हो जाएगा, जाएगा
नया भारत बनाएगा, बनाएगा
कश्मीर मे बंगलों बनाएगा, बनाएगा
एक सुन्दरी से शादी बनाएगा, बनाएगा
कश्मीर अवाम को बचाएगा, बचाएगा
आतंकवादी ओ को भगा एगॉ, भगा एगॉ
जब इलेक्शन आएगा, आएगा
विधायक बन जाएगा, जाएगा
ओक यू पाई कश्मीर जाएगा, जाएगा
पाक को भगा एगॉ, भगा एगॉ
ओक यू पाई कश्मीर जाएगा जाएगा
चीन को भगा एगॉ, भगा एगॉ
नक्शा नया बनाएगा, बनाएगा
नया भारत बनाएगा, बनाएगा
लेह लद्दाख जाएगा, जाएगा
नई पहचान बनाएगा, बनाएगा
144 को भी हटा ए गा, हटा ए गा
ईद भी मना एगॉ, मना एगॉ
15 अगस्त आएगा, आएगा
तिरंगा फहरा एगॉ, फहरा एगॉ
दुनिया जान जाएगा, जाएगा
अमित मोदी जी आएगा, आएगा
डॉ भाल जी आयेगा आयेगा
नया भारत बनाएगा, बनाएगा
कश्मीर विकसित हो जाएगा, जाएगा
नया भारत जरूर बनाएगा, बनाएगा
कवि गुलाब गीत गा एगॉ, गा एगॉ
कश्मीर को सजाए गा, सजाए गा
देश एक जुट जो जाएगा, जाएगा
नया इतिहास बनाएगा, बनाएगा .
4.
370 धारा कश्मीर से हटा,
विरोधियों के मनसूबे गए डटा
मा. मोदीजी को हार्दिक बधाई
आप के होने से ये बात बनाई
अमित जी तुम्हें प्रणाम
देश विरोधी ओ को किया निष्काम
हम तुम्हारे साथ हे
कश्मीर पर अब राष्ट्र पति का राज है
लद्दाख हो गया है केंद्र शासित
भारत सरकार से हे वो अब रक्षित
हो जाय केसा भी हंगामा
मोदी जी और अमित जी मत घबराना
कश्मीर से दुश्मन को भगाना
पूरा देश साथ हे देश प्रेम हे जगाना
पहले फहराते वहा दो रंगा
अब फहरा ए गा भारत का तिरंगा
कश्मीरी ओ तुम मत रखो भय
प्रेम से बोलो भारत माता की जय
अब प्रगति के बीज तुम बोना
चेन की नीद से तुम्हें हे सोना
कवि गुलाब सरकार देते बधाई
अच्छा किया कश्मीर को आजादी दिलाई .
5.
तिरंगा देश की शान
“हिन्दू मुसलमान, शिख हमारा हे भाई प्यारा
ये हे झंडा आजादी का, इसे सलाम हमारा”
तिरंगा भारत की शान है,
ये हे तो देश जान जहान है
फहराने लगेगा तिरंगा अब लद्दाख में
गूंज उठेगी शहनाई जम्मू कश्मीर में
तिरंगा मे तीन रंग हे
भारतीयों के गौरव का जंग हे
रंग सफेद, हरा और केसरी हे
बीच में अशोक चक्र प्रतीक है
फहराया तिरंगा 15 अगस्त 1947
आजादी मिली हे भारत को 1947
तिरंगा फहराने लगा क्षितिज आकाश
तीन रंगों मे लगता है जेसे इंद्र धनुष
तिरंगा देश की पहचान है
संस्कृति का वो सुन्दर प्रतीक है
नहीं झुकेगा नहीं झुकेगा
निशान मेरे देश भारत का
विजय ई विश्व हे झंडा हमारा
झंडा ऊँचा रहे हमारा
कवि गुलाब को उस पर नाज़ है
भारत देश हमारा सुन्दर राज हे
बृंदावन राय सरल
देश के सम्मान की
उस घड़ी हमने नहीं की फिक्र अपनी जान की बात आगे आ गई जब देशके सम्मान की आईनों में बिम्ब उनके उम्र भर जिंदा रहे, देश की खातिर जिन्होने जिंदगी कुरबान की हाथ में कुछ बूंद रख कर कह रहा खुद को नदी, बस यही औकात है उस मुल्क पाकिस्तान की हम नहीं करते कभी कब्जा भी मुल्क पर, ये रिवायत है पुरानीमुल्क हिन्दुस्तान की सिक्ख हिन्दु और मुस्लिम साथ में ईसाई भी, फिक्र सब मिलकर करें इस देश के मुस्कान की . |
रितेंद्र अग्रवाल
1.
ईट का जवाब पत्थर
आपस के द्वेष भूलकर
सब भाई भाई जैसे मिलकर
एक बार फिर
हम,
सबको बता दे,
हम
अलग अलग नहीं
एक हैं,
कोई भी
हमें तोड़ने की कोशिश करेगा
जवाब देंगे
दाँत खट्टे करेंगे ।
भारत माता के
एक इंच हिस्से
की सोचने की कोशिश भी मत करना
नहीं तो
जान से हाथ धोना पड़ेगा ।
वक्त बदल गया है
21 वी सदी में चल रहा है
अब गलतियों को
माफ करने की आदत बदल गयी,
जवाब देने की
प्रथा चल गयी
कोशिश करोगे
मुँह की जाओगे
ईट का जवाब पत्थर से पाओगे ।
2.
भारत माता की रक्षा
हमभारत माता के सपूत हैं,
सच्चे सपूत
तब ही तो
कोरोना की
महामारी से
दुःखी हो उठे,अपने को तैयार कर
कोरोना से लड़ पड़े,
जब जरा राहत
महसूस हुयी,
पड़ोसी सीना तान रहा
देखकर
खूनहमारा खौल रहा जरासी गुस्ताखी, एवम
नापाक कोशिश ने
हमें झकझोर दिया
जवाब देने को
मजबूर कर दिया ।
दो दो हाथ हो गये
दुश्मन के छक्के छूट गये
हम भारत माता की रक्षा में
सफल हो गये।
3.
एहसास भारतीय होने का
कैसे की कोशिश ?आँख उठाने की
कैसे की जुर्रत
पैर रखने की,
जानते नहीं
अब वह वक्त नहीं
जब हम
आदर सम्मान से
अनुरोध करते थे,
दुश्मन की नापाक
हरकतों पर भी चुप रहते थे।
लेकिन!
अब नहीं
अब तो हम
ईट का जवाब पत्थर
से देंगे
एक मौत के बदले
दस दस मारेंगे,
दुश्मन के खून से हृदय अग्नि शान्त करेंगे,
न समझें हमें कमजोर
बता देंगे
सीमाओं में रहे
वर्ना
सबक सिखा देंगे
हम भारत वासी है
आदर देना,बदला लेना
जानते हैं
समय आया तो छठी का दूध चटा देंगे
भारत वासी होने का एहसास करा देंगे ।
4.
सुरक्षित भारत
समय कैसा
बदल गया माहौल सारा बिगड़ गया,
डर मन में बैठ गया,
दूसरी ओर
सीमाएँ अशांत हो गयी,
सीमा पर हलचल बढ गयी ।
ऐसे में
स्वतंत्रता दिवस
या कहे
15 अगस्त
हमें सावधान करता है
सामाजिक दूरी को मानो
स्वयं तथा सबको सुरक्षित रखो
स्वतंत्रता दिवस
तो, फिर आयेगा
पर, कुछ कम-ज्यादा
हो जायेगा तो,
कैसा और किसका स्वतंत्रता दिवस होगा ।
इसलिए जब
सुरक्षित स्वतंत्रता दिवस होगा
तब ही
सुरक्षित भारत होगा ।
5.
भारत
1
मेरा भारत
देश नहीं माता है
मान देते है ।
2
दिल से प्यार
करते हैं माता को
पूजते भी है ।
3
शान शौकत
का जवाब नहीं था
हर तरफ।
4
लोग निगाह
गड़ाते, और लूटने
की सोचते थे।
5
हम सब मे
भारत कहीं नहीं
अपना सोचें ।
6
परिणाम था
हम हर दम ही
पराजित थे।
7
हम ताकत
से नहीं प्रतिस्पर्धा
से ही हारे थे।
8
पर अब तो
समझ में आ गया
एक जुट हैं ।
9
एक साथ है
एकता मे ही बल
ध्यान मे रहे।
10
जो भी देखेगा
आँख निकाल लेंगे
पाठ पढाये ।
- बाबू राम सिंह कवि
1.
राष्ट्रहित मे जीना सुन्दर …..
भारतवासियों एक होकर,
प्रगतिपथ पर पग धरना सुन्दर |
राष्ट्रहित मे जीना सुन्दर, यत्र
राष्ट्रहित मे मरना सुन्दर |
स्वर्गभूमि है भारत भव्य,
विशाल प्राणो से प्यारा है |
सुखद सलोना कोना कोना,
दिव्य मनोरम सारा है |
पतित पावनी गंगा यमुना,
स्वरसती की यहाँ धारा है |
जन्म मिला यहाँ प्रभुकृपा से,
अति सौभाग्य हमारा है |
अस्तु! देश की समस्याए हल
प्यार से पल पल करना सुन्दर राष्ट्र
आदिसृष्टी का प्रथम मानव जन्म
यही पर पाया है |
आर्यावर्त के शुचि सत्संग मे
खेला जिया धाया है |
परिमल दे कर सुमनो जैसा
विश्व बाग महकाया है |
शुभ कर्म और धर्म के बल पर
विश्व गुरु कहलाया है |
आज देश की दुख-व्यथा का
विघ्न हो आगे हरना सुन्दर राष्ट्र
विश्व वसुंधरा का है पल-पल
आर्यवर्त मुस्कान अहा |
बल, बुद्धि, विद्या, विवेक का
देता रहा कवि दान महा |
शुभ सीख अकाट्य लेख का
भारत मे पहचान महा |
हर खुशियों का राज साज है |
निर्मल कांति वित्तान महा
आज उसी पवन भारत मे
अपने आप सुधरना सुन्दर राष्ट्र
भारतवासी भाई-भाई
आपस मे नहीं लड़ो-मरो |
देशप्रेम से ओत-प्रोत हो
राष्ट्रव्यथा का विघ्न हरो |
राष्ट्र हित मे यथा सक्ति
जन जन मिलकर सहयोग करो |
जागो ! बंधकर एकसूत्र मे
नवयुग का निर्माण करो |
प्रेम-श्रद्धा, विश्वास आज से
सत्य धर्म शुभ धरना सुन्दर राष्ट्र
देश सुरक्षा निज भी रक्षा
अब आगे टालो नहीं |
सोचो समझो अंगुली निज
अग्नि मे डालो नहीं |
भूलकर भी निज स्वार्थ
सर्वत्र सम्भालो नहीं |
कुचल डालो सर्प खुद
आस्तीन मे पालो नहीं |
कर आत्म निरिक्षण आजसभी
को दुष्कर्मों से डरना सुन्दर ||राष्ट्र •||
जीवननाम सदा चलने का
कभी न पीछे हटने का |
रुकना, झुकना, चूकना भी नहीं
साहस कर आगे चलने का |
अलगाव कायरता, आलस तज
अब भी है समय सम्भले का |
राष्ट्रधर्म एक धर्म सभी का
राष्ट्रधर्म मे पालने का |
कर देश सेवा, कवि बाबूराम,
सहज भाव से तरना सुन्दर ||राष्ट्र •||
2.
राष्ट्र को बचाइए
सोचिये विचारिये सुधारिये स्वयं को सदा,
मानवता महक जग बिच फैलाइए।
जाति प्रान्त भाषावाद छोड के विवाद सब,
आपसी भाईचारा, सुचि भाव को बढा़ईए।
परहित परमार्थ सत्य नेकी भलाई में,
होके लवलीन देश दीनता भगाइए।
कर सत्कर्म “कवि बाबूराम “स्वार्थ छोड़,
विश्वगुरु आर्यावर्त राष्ट्र को बचाइए
कटुता कपट छल छुद्र भाव त्याग सभी,
शान्ति सफलता सुख सार में समाइए।
जलती सर्वत्र बहू बेटियां दहेज हेतु,
दानव दहेज पर अंकुश लगाइए।
सरल, सरस शुचितम शुभ हितकारी,
राष्ट्रभाषा हिन्दी को ही सब अपनाइए।
एकता आजादी स्वाधीनता “कवि बाबूराम “
सब हिन्द वासी मिल अछुण्ण बनाइए।
चोरी, घूसखोरी सीनाजोरी घोर अत्याचार,
छोडी़ के पद लिप्सा इन्सान बन जाइए।
मानव सनातन सुधर्म कर्म बिच रह,
समरसता सुखद सदभाव फैलाइए
युवा राज, धर्मनेता जागो राष्ट्र कर्णधार,
बनिये दिलेर अब देर ना लगाइए।
दया धर्म करुणा में जुट “कवि बाबूराम “
कश्ती किनारे जर्जर राष्ट्र की लगाइए।
सबही का साथ बल सभी प्रश्नों का हल,
एक होके आगे सभी कदम बढा़इए।
श्रद्धा स्नेह प्यार दृढ़ विश्वास आस,
एकता आलोक से अनेकता मिटाइए।
पापी पतित पाक उग्र आतंकवादियों के,
खात्मा के हेतु प्राणपण से जुट जाइए ।
तप त्याग देके बलिदान “कवि बाबूराम “
भोर की ओर भारतवर्ष को ले जाइए।
3.
आओ बढें आगेसतत् उत्थान के
हिन्दू । हिन्दी आर्यावर्त महान के लिए ।
आओ बढें आगे सतत उत्थान के लिए।
स्वदेश की रक्षा में जन-जन रहे तत्पर।
सद्भाव विश्व बन्धुत्व काहो भाव परस्पर
काम क्रोध मोह लोभ मिट दम्भ व मत्सर।
रहे सब कोई एकत्व समता में अग्रसर।
उद्धतरहे पल-पल हरि गुणगान के लिए।। आओ ०।।
बाल विवाह बन्द युवा विधवा विवाह हो।
दहेज दुष्परिणाम का विध्वंस आह हो।
मिल बांधकर खाने की जनजन-मे चाह हो ।
सर्वत्र मानव धर्म मानवता की राह हो।
जागरुक रहे नेकी धर्म दान के लिए।। आओ०।।
गैबध शराब नशा अविलम्ब बन्द हो।
महगांई बेरोजगारी का रफ्तार मन्द हो।
देशर्दोही दुराचारी नहीं स्वछन्द हो।
परोपकार प्यार का घर-घर प्रकाश हो।
अबला अनाथ दीन-दुखियों के मुस्कन के लिए। आओ० ।।
चोरी घूसखोरी भ्रष्ट नेता का नाश हो।
सुख-शान्ति सफलता का चहुंदिशी विकास हो।
साक्षरता सहशिक्षा का घर-घर प्रकाश हो।
परोपकार हरि भक्ति की तीव्र प्यास हो ।
कवि बाबूराम सत्य शुभ अभियान के लिए। आओ०।।
4.
भारतीय सपूतों वीर जवान
रजागरूक, निर्भिक, साहसी राष्ट्र सुरक्षा में अगुआन।
शत वंदन, अभिनंदन भारतीय सपुतों वीर जवान।।
सभी सुरक्षा दल के बल पर ही भारत खुशहाल सदा।
सभ्यता, संस्कृति सुचितम में अउव्वल है कमाल सदा।
देश सुरक्षा में डटकर तत्पर रहते तत्काल सदा।
सर्वोतम हर दृष्टि से रखते राष्ट्र के उपर ख्याल सदा।
गर्व है माँ भारती को तुम पर तुम्हे देख करती मुस्कान।
शत वंदन, अभिनंदन भारतीय सपुतों वीर जवान ।।
आन, बान और शान तुम्ही हो भारत के अरमानों की।
अरी मर्दन कर धुल चटाते शीश काट शैतानों की।
राष्ट्र सुरक्षा यज्ञ में देते हँसकर आहुति जानों की।
अमर अमिट इतिहास अनूठा वीर शहीद जवानों की।
कुछ अपना परवाह न करके देश पर हो जाते कुर्बान।
शत वंदन, अभिनंदन भारतीय सपुतों वीर जवान।।
जान हथेली पर ले करके विष भी पी मुस्काने वालो।
सब सुख वार घर व्दार छोडके चहुँदिशिशौर्य दिखाने वालो।
सबको दे सुख चैन सर्वदा कभी नहीं घबडाने वालो।
जर्जर कश्ती राष्ट्र का खेके भव से पार लगाने वालो ।
सर्वोपरि सर्वोच्च तुम्हारा देश सेवा अतुलित महान।
शत वंदन, अभिनंदन भारतीय सपुतों वीर जवान।।
सेवा, सहयोग, सुरक्षा का हर्षित हो कुछ पद गाता हूँ ।
पावन तुम्हारे चरणों में मै अपना शीश झुकाता हूँ।
सद्भाव, चाव से पुरित हो कविता रुपी पुष्प चढा़ता हूँ।
तुम धन्य तुम्हारी जय होवे लिखने में सर्व सुख पाता हूँ।
अनमोल रत्न “कवि बाबूराम “भारत के हो अद्भुत वितान।
शत वंदन, अभिनंदन भारतीय सपुतों वीर जवान।।
5.
विश्व कल्याण विश्व गुरु
अद्भुत अनूठा आर्यावर्त अवनी
पर
अडिग आलोक़ व अमित उपकार में ।
सभ्यता संस्कृति सर्वोत्तम सु भारत की,
सरस शुचि सुविख्यात सदा प्यार में।
उद्धत उत्थान उत्कर्ष हर्ष प्रगति में,
उत्तम अनूप भाव ले के विचार में।
सेवा सुकर्म, सत्य -धर्म से कवि बाबूराम, ,
पावन पद पाया विश्व गुरु संसार में।
भारत सपूतों जागो ज्ञान बल सुविद्या से,
देश द्रोह आलस कायरता निकाल दो ।
राष्ट्र प्रेम व्रत नेम नियम जन -जन में ,
प्यार दुलार सदाचार से शुभ डाल दो।
अपनी आजादी हिन्दी गंवाना धिक्कार होगा,
देश दुर्दशा बिगडी को सब सम्भाल दो।
करो कायाकल्प कवि बाबूराम भारत का,
धन्य -धन्य विश्व कहे ऐसी मिसाल दो।
भारती सपूतों सम्भाल करो सम्पदा की,
राष्ट्र रक्षा के लिए मर -मिट जाना है।
कर सर्व होम गत गौरव आर्यावर्त का,
प्यार दया वीरता से वापस भी लाना है।
जागिये जगाइये सुषुप्त जन -मानस को,
गिरे हुए देशवासियों को भी उठाना है।
छोडिये विदेशी चापलूसी, कवि बाबूराम
पैदा हुए पले यहाँ यहीं मर जाना है
अति अनमोल सुखद सत्संग समुद्र यहाँ,
स्वर्ग से श्रेष्ठ शुभ हिन्द कोना- कोना है।
तप -त्याग, दान बलिदान व ईमान हेतु,
देश की गरीमामय मिट्टी भी सोना है।
संत ऋषि, ज्ञानी गुरु गौरव शुभाशिषमय,
भारत भव्य सर्वत्र सुखद सलोना है
शुभदा महान जग जान, कवि बाबूराम,
विश्व का कल्याण विश्व गुरु से ही होना है .
पूरण मल बोहरा
1.
भारत मां का सैनिक हूं
मैं भारत मां का सैनिक हूं।
शरहद पर खड़ा अडिग हूं।।1
कोई मुझसे भीड़ न सकता।
बंदूक सदा साथ में रखता।।2
सीमा पर बंदूक चलता मैं।
शत्रु को पथ से हटाता मैं।।3
सैनिक ड्रेस पर मुझे गर्व है।
पहने से लगता जैसे पर्व है।।4
सीमा पर जब मैं जाता हूं।
भाल पर मैं धूल लगाता हूं। 5
मातृभूमि से सच्चा नाता।
मां भारती के गीत गाता।।6
युद्ध में पीठ दिखात नही।
दुश्मन मुझको भाता नहीं।।7
है फौलादी सीना हमारा।
हमको भारत सबसे प्यारा।।8
2.
भारत के वीर सपूत
हम भारत के वीर सपूत,खड़े शरहद पर सीना तान।
मातृ-भूमि खातिर मर मिटेगें,देश वतन है हिंदुस्तान।।
इस मिट्टी में हम खेलें कूदे ,अमृतपान किया भरपूर।
हम फौलादी सीने अडे़,लुटने न देंगे तेरा मांग सिंदूर।।
तेरा दामन दुश्मन छु न पाए ,ऐसी है हमको मां आन।
हम भारत के वीर सपूत खड़े शरहद पर सीना तान।।1
गलवान घाटी में वीरों ने जो, अपने प्राण को गंवाए।
20 शेरों के बदले चालीस चीनी गीदड़ मार गिराए।।
आगे बढ़ने की कोशिश की तो मिटा देंगे नाम निशान।
हम भारत के वीर सपूत, खड़े शरहद पर सीना तान।।2
शान तिरंगा देश हमारा झुकने न देंगे हम इसको
खून हमारा खोल रहा, चीनियों से जंग होने को।
1965 का भारत नहीं सुन लो कुत्तों खोलकर कान।
हम भारत के वीर सपूत, खड़े शरहद पर सीना तान।3
चलेगी जब बह्मोस मिशाइल थर थर तू कांप जायेगा।
रणकौशल में रणभूमि छोड़कर भागता नजर आयेंगा।
भारत की इन लालों की शक्ति का शायद नहीं है भान।
हम भारत के वीर सपूत, खड़े शरहद पर सीना तान।।4
3.
शहीदों का बलिदान
गलवान घाटी के शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा।
चीन तेरी नाकाम हरकतों का पता तुझको चल जायेगा।।
हम भारत मां के सच्चे सपूत है पीछे से नहीं करते गद्दारी।
20 जवान भारत के मारकर की है बहुत बड़ी मक्कारी।।
मां का दूध पिया नहीं तूने क्या सामना करके दिखायेगा।
गलवान घाटी के शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा।।
जानबूझकर चीनी कुत्तों तुमने अब सूता शेर जगाया है।
भारत के लालों की शक्ति का अंदाजा तुने नहीं लगाया है।
बोटी-बोटी नोच लेंगे तेरी अब कुत्तों की तरह चिल्लायेगा।
गलवान घाटी के शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा।।
क्यूं भूल बैठे हो कुत्तों तुम 1967 के युद्ध के हालात को ।
300 पर 65 ही भारी हुए जानो भारत मां के लाल को।।
हमारी रगो में उबल रहा खून बिन बदले के शांत न रहेगा।
गलवान घाटी के शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा।।
हम भारत मां के लाल अभी तक तुझको शायद भान नही
पीछे से करता है तू वार सामने आने की तेरी औकात नहीं
शेरों की मांद में आने पर हेकड़ी तेरी सब निकल जायेगा।
गलवान घाटी के शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा।।
- सत्येंद्र सिंह,
1.
भारत माता
भारत माता तुझे प्रणाम
अंदर बाहर के प्रहरी करते
तुझे सलाम।
भारत माता तुझे प्रणाम।।
सबको धारण करने वाली
धरती मां तुम्हीं हो।
सागर नदियां तलाब तलैया
अंक समाये तुम्हीं हो।।
वर्षा जल समाने वाली
जल रूपी मां तुझे प्रणाम।
भारत माता तुझे प्रणाम।।
गगनचुंबी वृक्ष लताएं
तुम ही धारण करती हो।
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण
दिशाएं तुम ही धरती हो।।
सारे वेग संभालने वाली
वायु रूपी मां तुझे प्रणाम।
भारत माता तुझे प्रणाम।।
रूप रस गंध तुम्ही हो
सबका आधार तुम्हीं हो।
पवन तुम्हीं हो
जल जलवायु तुम्हीं हो।
खनिज खदानों वाली मां
तुझे प्रणाम।
भारत माता तुझे प्रणाम।।
पर्वत आकाश नक्षत्र
टिके आकर्षण से तुम्हारे।
कर्म अकर्म विकर्म की जननी
स्वर्ग नर्क धर्म है सहारे तुम्हारे।
सारे गुणों को धारण करने वाली मां
तुझे प्रणाम।
भारत माता तुझे प्रणाम।
2.
भारत माता तू ही
शिवजी का कैलाश
तू ही विष्णु का क्षीरसागर
जननी तू राम की
कृष्ण की
गौतम सिद्धार्थ की
तूने ही जने परशुराम।
तू ही जननी है
धर्म की
योग की
साधन और
साधना की।
तू ही प्रेम है
तू ही सत्य है।
स्तुत्य है
साध्य है।
श्वास प्रश्वास है
जीवन है
जीवन का आधार है।
तेरी पूजा सच्ची पूजा
तुझ पर ही सच्चा
तेरे लिए ही अच्छा
त्याग और बलिदान है।
3.
भारत माता तू जननी
त्याग .और बलिदान की
साधना तपस्या
और ध्यान की
तू जननी है
चंद्रशेखर सुभाष की
सुखदेव भगत राजगुरु
मन्मथ सान्याल की
खुदीराम अशफाक की
बल्लभ मोहनदास की
लाला लाजपतराय की।
तू ही जननी है
बिस्मिल चापेकर बंधु की।
तेरे लिए हुए
त्याग बलिदान को
व्यर्थ न जाने देंगे,
समय आने हम
अपने प्राण कुर्बान करेंगे।
हमारी शिक्षा तेरे लिए
हमारी भक्ति तेरे लिए
हमारी साधना तेरे लिए
हमारा जीवन तेरे लिए
हमारी हर सांस तेरे लिए।
4.
हे भारत माता
जीवन दाता
मैं प्रण लेता माता
न करुंगा दूषित
तेरी मिट्टी
तेरा पानी
तेरी हवा ।
हे प्रकृति की जननी
मैं प्रण लेता
शुद्ध रखूंगा
तेरा वायुमंडल
रक्षा करूंगा
तेरे वृक्ष
तेरे पुष्प
लता पताका।
तेरी सच्ची
संतान बनूंगा
तेरा नाम जग में
खूब रोशन करूंगा।
ऋषि मुनियों ने
साधु संतों ने
तपस्वी तपस्विनी ने
ग्यान विग्यान ने
जो मार्ग बनाए
सभ्यता संस्कृति के
मानदंड बनाए
रक्षा करूंगा
अक्षुण्ण रखूंगा।
5.
भारत माता तुझ पर
करूं निछावर जीवन अपना,
करूं प्रणाम उन्हें जिनने
किया प्राण निछावर अपना।
तेरे गीत सदा गाऊं
करता शत् शत् वंदन,
तेरे चरणों शीश चढाऊं
जब तुझपे हो आक्रमण।
एक कण भी तेरा
न ले जाने दूंगा,
कोई तुझ पर चढ आये
शत्रु दहन कर दुंगा।
तेरा शस्य श्यामला रूप
न बिगाड़ने दूगा।
मां मुझे वरदान दे,
शक्ति साहस दान दे।
मैं तेरा कर्ज़ चुकाऊंगा,
तुझ पर बलि बलि जाऊंगा।
- रीतु प्रज्ञा
1.
प्यारा है सरहद
आने न देंगे तुम्हें खल कभी।
जान से प्यारा है सरहद सभी ।।
रहेंगे दिनकर सा अटल वहाँ,
बहाएंगे सुरक्षा हवा हरदम वहाँ,
कर लेंगे सिर कलम अपना,
पूरे न होने देंगे राष्ट्र विरोधी सपना।
गाते रहेंगे वन्दे मातरम् हम हिन्दुस्तानी,
फहराते रहेंगे तिरंगा हर कर शैतानी।
बहती रहेगी माँ गंगा कलकल धारा,
सहते रहेंगे हंसकर शून्य डीग्री पारा।
रखते सदा बाजुओं में असीम शक्ति ,
बसती उर में सरहद प्रति अदम्य भक्ति।
आने न देंगे तुम्हें खल कभी।
जान से प्यारा है सरहद सभी।।
2.
जीत हमारी होगी पक्की
हम हैं माँ भारती के वीर संतान
न बेचते हैं हम कभी ईमान
झेलकर झंझावतें छू लेते हैं आसमान
समर्पित करते रहे हैं माँ भारती चरणों अरमान
जीत हमारी पक्की होगी मित्रों।
दमन कर रिपुओं फैलाएंगे सुगंधित इत्रों।।
रखने न देंगे कभी कदम आतंकियों का
रहने न देंगे नामोनिशान किसी बुराइयों का
उड़ाएंगे हंसी फव्वारे गली-गली
शक्ति निराली है संस्कृति मिलीजुली
जीत हमारी पक्की होगी मित्रों।
दमन कर रिपुओं फैलाएंगे सुंगधित इत्रों।।
अविचल डटे रहेंगे राष्ट्र सीमा पर
दमकाते रहेंगे किरण पटल निशा पर
आगे ही आगे बढाते रहेंगे कदम।
साथी दीया लौ को सदैव बनाएंगे हम।
जीत हमारी पक्की होगी मित्रों।
दमन कर रिपुओं फैलाएंगे सुगंधित इत्रों।।
3.
मिटा देंगे तुझको चीन
मिटा देंगे तुझको दुष्ट चीन।
सबक सिखा देंगे हम हिन्द।।
पानी फेर देंगे इरादों पर
न आने देंगे सरहदों पर
जान से प्यारी है जमीं हमारी,
छीन लेंगे तेरी खुशियाँ सारी।
मिटा देंगे तुझको दुष्ट चीन।
सबक सिखा देंगे हम हिन्द।।
न इस्तेमाल करेंगे तेरे सामान,
हमें झुकाना न है आसान।
उखाड़ देंगे तेरे फरेबी बाजुओं को
कमजोर न समझ हमारे सब्रों को
मिटा देंगे तुझको दुष्ट चीन।
सबक सिखा देंगे हम हिन्द।।
अब न चलेगी चालाकी तेरी,
बहुत कर लिया हेरा फेरी।
कर लिए हैं धारण रौद्र रूप,
सामने से छलनी करेंगे चेहरा कुरूप ।
मिटा देंगे तुझको दुष्ट चीन।
सबक सिखा देंगे हम हिन्द।।
4.
चाहत
दिल की चाहत रहे प्यारे राष्ट्र में अमन,
लोभ की रोटियाँ सेक न उड़ाए कोई धुआँ चमन।
बुद्ध,महावीर की सदा हम आत्मसात करें वचन,
भारतभूमि की सेवा में समर्पित करें बदन।
तेरे-मेरे के चक्कर में न उलझे बंधु से कभी,
शांति की मार्ग चलने की कसम खाए हम सभी।
पत्थरें भी न डिगा पाए हमारे हौसलें बुलंद,
एकता सूत्र में बंधे रहे सभी देशवासी ,पाए अप्रतिम आनंद।
दिल की चाहत रहे प्यारे राष्ट्र में अमन,
जयगान गाकर माँ भारती का शत शत करें नमन।
5.
समर्पण
समर्पित है माँ भारती तेरे चरणों जान,
वंदन कर नित्य बढाऊँ मान।
लालसा है रमी रहूँ तेरी गुणगान में
युगों -युगों तक चार चाँद लगा दूँ शान में
जीवन संवरे तेरे आँचल तले,
राष्ट्र कर्म पथ बढे पग शनै: शनै:।
नहीं है अभिलाषा पुष्पों सेज,
मिलती है खुशी संतोष भरी थालियाँ सजाकर मेज।
पन्ना-पन्ना रच दूँ गौरव गाथा,
अटल अचल रह रक्षा करूँ तेरा स्वर्णिम माथा।
तेरे सम्मान की जिजीविषा पलती हरक्षण मन मंदिर में
राष्ट्रद्रोही की सिर कलम कर बहा दूँ समंदर में
समर्पित है माँ भारती तेरे चरणों जान,
वंदन कर नित्य तेरी बढाऊँ मान।
- सुमन पाठक
1.
नीर नयनों से निरंतर बह रहा है
व्यथित होकर हर हृदय यह कह रहा है।।
चीर दो छाती जिन्होंने वीर माटी में मिलाए।
आज कितने लाडलो ने भूमि पर है सिर चढ़ाये।।
क्या यही है मातृभूमि की अनोखी एक पूजा।
चाह कर भी रास्ता मिलता नहीं है और दूजा।।
छुपकर करना वार सदा कायरता ही कहलाता है।
वार सामने से करना उस सियार को कब आता है।।
भारत माता तेरी पूजा सतत सात्त्विक चलती है।
किंतु सदा यह कायरता वीरों को ही छलती है।।
कितना जज्बा कितना साहस लेकर वीर निकलते हैं।
किंतु देश की आस्तीन में सदा सपोले पलते हैं ।
अच्छा तो हम चलते हैं यह बेटे ने बोला होगा।
सुनकर के यह शब्द हृदय मां का कैसे डोला होगा।।
और पिता के चरणों में वो ही प्रणाम अब अंतिम है।
घर से हंसते हुए निकलना गलियों में वह अंतिम है।।
याद करो जब सिर सहलाया निज बेटों का वीरों ने।
कब आओगे और कहां होगा आंखों के नीरों ने।।
कितने सपने तो बुनने से पहले टूट गए होंगे।
जाने कब से मिले नहीं थे अपने रूठ गए होंगे।।
कभी मिलेंगे नहीं हाय! यह सोचकर दिल बैठा होगा।
हुए शहीद लाल जिस घर के वो घर अब कैसा होगा।।
कैसे धीरज रखा होगा मां ने बेटे खोने पर।
सीना छलनी नहीं हुआ क्या एक पिता के रोने पर।।
प्रियतम है पर देश भले ही पर साहस तो रहता है।
अब तो कभी नहीं आएंगे कोना-कोना कहता है।।
साज और श्रृंगार ने भी कैसे दामन छोड़ दिया।
चूड़ी,कंगन,पायल,बिछिया ने भी नाता तोड़ दिया।।
कैसे वो पल भुला सकेंगे कि खुद ने मांग सजाई थी।
चुटकी भर सिंदूर से ही तो वामा बनकर आई थी।।
नन्हे मुन्ने बच्चे जब सेहमे सेहमे बैठे होंगे।
उस सृष्टि के रचनाकारों से कितने रूठे होंगे।।
भारत मां के वीर सपूतों को शत् शत् वार नमन है
सदा रहेंगे याद शहीदों को शत् शत् वंदन है।
2.
यह स्वतंत्रत भारत है देखो शान निराली है इसकी।
आन बान व शान पर मर मिटने वाली इसकी मिट्टी ।
इस मिट्टी में जन्म लिया था स्वामी विवेकानंद ने।
दुनिया में झंडा फहराया जीवन के पल चन्द में।
अपना जीवन किया समर्पित भारत के स्वाभिमान को।
हर कीमत पर बचा के रखा भारत की इस शान को।
बाहर वालों को दिखलाई अपनी बंद सदा मुट्ठी……
आन बान…
नेता जी सुभाष व शेखर की जाऊं बलिहारी मैं।
जीवन के आखिरी पलों तक रहे देश अनुहारी में।
राज गुरु व भगत सिंह ने भी क्या करतव दिखलाया।
मौत सामने देखी फिर भी तनिक जोश न नरमाया।
कर ही डाली है आखिर अंग्रेजी सत्ता की छुट्टी…..
आन बान व शान…………
कैसे कैसे वीर हुए हैं भारत की इस मिट्टी में।
जिगर उकेरा करते थे वह कागज की एक चिट्ठी में।
जननी जनक सदा भाये पर राष्ट्र प्राण से प्यारा था।
इंकलाब ओर जिंदाबाद का अति प्रिय उनको नारा था।
खून हमें दो तुम सब मिलकर हम देंगे आजादी घुट्टी….
आन बान….
नफ़रत की दीवारों को वीर सिपाही तोड़ गये।
राष्ट्र प्रेम की खातिर ही वो जीवन से मुख मोड़ गये।
शत्रु की गोली खाने से अच्छा है खुद मर जाना।
हंसते हंसते मातृभूमि पर जीवन सुमन चढ़ा जाना।
कैसे भूलूं उन वीरों को जो पढ़ा गये स्वाभिमानी पट्टी……
आन बान….
3.
यह राष्ट्र एक अम्बर जैसा है वीर सिपाही तारे है।
भारत माता को तो अपने पुत्र प्राण से प्यारे हैं।
फिर भी कितने तारे रोज डुबते है इस नभ के अन्दर,
राष्ट्र प्रेम का फर्ज निभाने वीर पुरुष जो आते।
माता-पिता पुत्र पत्नी का मोह छोड़ एक पल को
मातृभूमि के खातिर ही वह सिंह पुरुष बन जाते।।
सीमा पर हो या शहीद हो शहर की नामी गलियों में।
उन्हे मारने वाले केवल बंधते हैं हथकड़ियों में।
आतंकी गर जिंदा पकड़ा जाये तो उसको रखते हैं ।
वर्षों-वषों तक बस उसकी खातिर दारी करते हैं।
चोर लुटेरे शातिर डाकू हत्यारे व व्यभिचारी,
इनको भी जिंदा रखने की संविधान की लाचारी।
कैसे देश द्रोह मिट सकता कैसे स्वस्थ समाज रहेगा,
अपराधी के मन में जब तक कानून का थोड़ा भय न रहेगा।
न जेल हो न वेल हो न तारीखों का फंडा हो ।
एनकाउंटर ही बस इनकी सजा का एक हथकंडा ।।
4.
हे मातृभूमि तेरे स्नेह में बंधकर कितने वीर गये।
निजता से ऊपर उठकर दुश्मन की छाती चीर गये ।
कितनी माताओं ने भी गोदी के फूल चढ़ाएं है,
और प्रियतमाओ ने भी निज सुख सौभाग्य लुटाते हैं।
आजादी की बलि वेदी पर जो बलिदानी वीर हूए,
जज्वा जोश रहा इतना कि खुद ही वो शमशीर हुए।
नेता जी सुभाष का भी जीवन संघर्षों वाला था
बचपन से ही आजादी का स्वप्न हदय में पाला था।
स्वतंत्रता के लिए सुभाष ने घर आंगन भी छोड़ दिया
राष्ट्र प्रेम के प्रबल वेग ने उनका ऐसा रुख मोड़ दिया
इंकलाब जिंदाबाद का उनका ही तो नारा था।
खून मुझे दो मैं दूंगा आजादी उनका नारा था।
राष्ट्र प्रेम की अलख जगा कर वो कैसे अदृश्य हुए।
रही रहस्य मौत उनकी संदेश नहीं स्पष्ट हुए ।
आजादी के दीवाने को शत् शत् वार नमन है।
अपने लहू से सींच गये जो खिलता रहे चमन है ।
5.
उठो धरा के वीर सपूतों भारत भूमि पुकार रही।
आशा भरी निगाहों से हम सब की ओर निहार रही।
भारत की गौरव गाथा को पढ़कर क्यो हम भूल गये,
क्यो बिसराया उन वीरों को जो फांसी पर झूल गये,
निज हित इतना प्रबल हो गया राष्ट्र प्रेम मानवता से,
आज देश की पावन मिट्टी पल पल यही बिचारी रही।
आशा भरी…
नेता जी सुभाष व शेखर का यह भारत देश है,
विश्व पटल पर नयी क्रान्ति लाने वाला परिवेश है,
याद करो आजाद भगतसिंह तात्या मंगल पांडे भी,
जिनको करके याद भारती अब तक आंसू ढार रही।
आशा भरी……
सबके माता-पिता पुत्र थे घर परिवार सभी का था,
किंतु महत्त्वाकांक्षी इतना तब का मानव कभी न था,
प्रबल प्रेम की चरम लेख से पार गये थे जो बेटे,
जिनकी ताकत देख कांपती गोरों की सरकार रही।
आशा भरी..…
हम गणतंत्र मनाते नियमित आजादी का दिवश सही,
किंतु गुलामी का अंधियारा अब तक हम से दूर नहीं,
निज संस्कृति बोली भाषा को अब तक मान न दे पाएं,
सिसक रही है हिंदी अपनी अंग्रेजी फुंसकार रही।
आशा भरी.…..
अन्य कविताएँ
1.
एक पेड़ था
एक पेड़ था सूखा तना
एक भी पत्ता जिसमें हरा न था
शाखाएं निकलना जिसकी बंद हो गई थी।
फिर भी मजबूती से तनाव था
हरियाली उस पेड़ से कोसों दूर थी
फिर भी उस पेड़ पर पक्षियों की भीड़ थी
दूर दूर से पक्षी आकर उस पेड़ पर सुकून पाते थे
न जाने क्यो ।
उन्हे वह सूखा हुआ पेड़ भी हर भरा लगता था
न जाने क्यो।
उस पेड़ के पत्ते सूख कर सारे झड़ गये थे
डालियों में सुखने के कारण झुकाव आ गया था
मानो वह पेड़ बूढ़ा हो गया था
किंतु उसकी जड़ें ममता से ओत-प्रोत थी
डालियां वात्सल्य से भरी थी
उन पक्षियों को देख कर मेरा मन भी जागा ।
आधुनिकता से दूर भागा ।
एक जमाने में वही पेड़ उनका आशियाना था
जब वह घोंसले में रहते थे
माता-पिता के लाते दाने ही चुगते थे।
अब वह पक्षी बड़े हो गये है
दूर जाकर अपना दाना चुगते है
किंतु उस सूखे हुए पेड़ की छाया को अब भी नही भूले थे।
जिसकी छाया में वह पले बड़े थे।
उस पेड़ के ममत्व में अब भी सुमन खड़े हैं।
लगता है कि हम इंशानो से तो पक्षी ही बड़े हैं ।
2.
गीत
पायेंगे क्या हम से बच्चे तनिक विचार करें।
आने वाली पीढ़ी के हित में व्यवहार करें।।
हमसे पहले जीने वाले खूब दुरुस्त रहे।
हम भी आपा धापी करके कुछ तो चुस्त रहे ।
खान पान व रहन सहन क्यो बदल गया इतना
भाव रहे कर्तव्य निष्ठ तब ही अधिकार करें….
आने वाली…..
शुद्ध हवा हो शुद्ध ही जल हो शुद्ध मिले फल फूल इन्हे
घर का पका शुद्ध खाना ही खाने की लत लगे इन्हे।
इडली डोसा गरम समोसा और कचौड़ी भी भाये
किंतु चाऊमीन पिज्जा बर्गर का वहिष्कार करें…
आने वाली….…
बच्चों से कुछ भी चाहो तो खुद भी आलस छोड़ो
पूजा पाठ धर्म संस्कृति आध्यात्म ओर रुख मोड़ें
सिर्फ पढ़ाई न हो ऐसी कि अर्थ कमाना जाने
धर्म बचे आदर्श रहे ऐसे संस्कार करें..
आने वाली.…….
आज के बच्चे ही तो है कल का भविष्य भारत का
पाठ पढ़ रहे अब तो बच्चे केवल ही स्वारथ का
रग-रग में जो लहू बह रहा उसमें सत्य सनातन हो
सुमन प्रेम हो मातृ भूमि से कुछ तो उपचार करें…
आने वाली…
- डा अंजू लता सिंह
1.
गणतंत्र दिवस आया सब गीत आज गाओ
नृत्य,राग,अभिनय संग साज भी सजाओ
है स्वतंत्र देश आज है स्वतंत्र वेश आज
थिरक रहे तन-मन ये खुद पे है हमको नाज
आसमान पुलक उठे झंडा फहराओ
गणतंत्र दिवस आया सब गीत
आज गाओ
नृत्य,राग,अभिनय संग साज भी
सजाओ
आजादी के महकते दिन
चहक रहे खुशी को गिन
ग्राम-ग्राम नगर-नगर दीप जगमगाओ
गणतंत्र दिवस आया सब गीत
आज गाओ
नृत्य,राग,अभिनय संग साज भी
सजाओ
समता के फूल खिल रहे
शाखों पे गले मिल रहे
राष्ट्र भक्त देश के बनकर सभी दिखाओ
गणतंत्र दिवस आया सब गीत
आज गाओ
नृत्य,राग,अभिनय संग साज भी
सजाओ
सागर में जा मिलें सभी नदियों की ये विशेषता
‘अनेकता में एकता’है हिन्द की विशेषता
मां का भाल दमकता है शीश सब नवाओ
गणतंत्र दिवस आया सब गीत
आज गाओ
नृत्य,राग,अभिनय संग साज भी
सजाओ
2.
हमरा तिरंगा
हमरा तिरंगा गगन में लहराए रे
हमरा तिरंगा..हमरा तिरंगा
इस झंडे में तीन रंग साजें
जी तीन रंग साजैं..
सब रंग महिमा से भरके बिराजैं..
जी भरके बिराजैं..
इसपे मनवा भी वारि-वारि जाए रे..
हमरा तिरंगा ………लहराए रे
हमरा तिरंगा
भगवा रंग कहे वीरों की गाथा जी वीरों की गाथा
सबहि नवाएं उनको जी माथा
हां उनको जी माथा ..
देस की खातिर प्रानों को लुटवाएं रे..
हमरा तिरंगा……….लहराए रे
हमरा तिरंगा
रंग सफेद का सबसे ही नाता
जी सबसे ही नाता..
मिलके रहो ये संदेसा सुनाता
संदेसा सुनाता..
मन का कबूतर चिहुंके उड़ा जाए रे..
हमरा तिरंगा……….लहराए रे
हमरा तिरंगा …
खेतों में सबके ही झूमे हरियाली
जी झूमे हरियाली..
झोली रहे ना किसी की भी खाली..
किसी की भी खाली..
ये हरा रंग हमें जतलाए रे
हमरा तिरंगा ……..लहराए रे
चक्र बना बीच हौले से बोले
जी हौले से बोले …
चौबीसों घंटे चलो मेरे भोले
चलो मेरे भोले …
चलना होगा समय न निकल जाए रे…
हमरा तिरंगा ……..लहराए रे
3.
प्रेम का विस्तार
जन्म लिया जिस भू पर मैंने –
उसको नहीं भूल सक ती हूँ,
जिस मां के आंचल में पनपी-
उॠण कभी न हो सकती हूँ.
मह-मह महके चंदन सी ये-
मस्तक तिलक बनी इठलाए,
वीर पुरोधा स्वाभिमान से-
देशप्रेम हित मर मिट जाए.
जल,थल,नभ के हैं रखवाले-
चंचल मन में है ठहराव,
कूच करें राष्ट्र की खातिर-
सीमा पर जब होए तनाव.
धन्य धीर वे सभी देवियां-
भेज रहीं सीमा की ओर,
पति,पुत्र,भाई को अपने-
जिधर शत्रु घातक घनघोर.
त्याग में लिपटा हुआ-
जीवन का सारा सार है,
देशप्रेम सर्वस्व है-
नेह का विस्तार है.
4.
मन की आंखें खोल
हरी-भरी रेशमी घास,मुस्काती है आसपास
राम-रहीम मित्र दोनों ही, बैठे हैं बिन्दास
श्वेत वेशभूषा में सज्जित,करने चले इबादत
धर्म,जाति,रंग सभी से होगीआज बगावत
रहमो-करम,भलाई में सबका हो विश्वास
पढ़ो नमाज या प्रार्थना,चरम प्रेम की आस
भगवा चादर से दिया,रे! चंदोवा तान
हरे-भरे परिवेश से, बढ़ी तिरंगी शान
यह तो है ध्वज प्रेम का,सचमुच बड़ाअमोल
भेदभाव को भूलकर, मन की आंखें खोल
मनुज! देश का भक्त बन!इनबच्चों से सीख
मानवता के पाठ को मन में अपने तोल
गणतंत्र दिवस आया सब गीत आज गाओ
नृत्य,राग,अभिनय संग साज भी सजाओ
है स्वतंत्र देश आज है स्वतंत्र वेश आज
थिरक रहे तन-मन ये खुद पे है हमको नाज
आसमान पुलक उठे झंडा फहराओ
गणतंत्र दिवस आया सब गीत
आज गाओ
नृत्य,राग,अभिनय संग साज भी
सजाओ
आजादी के महकते दिन
चहक रहे खुशी को गिन
ग्राम-ग्राम नगर-नगर दीप जगमगाओ
गणतंत्र दिवस आया सब गीत
आज गाओ
नृत्य,राग,अभिनय संग साज भी
सजाओ
समता के फूल खिल रहे
शाखों पे गले मिल रहे
राष्ट्र भक्त देश के बनकर सभी दिखाओ
गणतंत्र दिवस आया सब गीत
आज गाओ
नृत्य,राग,अभिनय संग साज भी
सजाओ
सागर में जा मिलें सभी नदियों की ये विशेषता
‘अनेकता में एकता’है हिन्द की विशेषता
मां का भाल दमकता है शीश सब नवाओ
गणतंत्र दिवस आया सब गीत
आज गाओ
नृत्य,राग,अभिनय संग साज भी
सजाओ
.5.
देशहित
सोचो विचारो-
तुम त्वरित,
जो भी करो-
बस देशहित.
समय का रूख-
सख्त है नित,
जान लो-
न हो भ्रमित.
खुद को आंको-
बन नमित,
प्रतिभा तुम्हारी-
हो फलित.
दूरियों के दरमियां-
भावना हों जागृत,
मन-कलश में-
भरें स्नेह काअमृत.
रोग का हो नाश-
खत्म हों सब मिथ,
दो पटखनी अब इसे-
कर दो भू पर चित.
प्रभु-चिंतन-
बनें घृत,
लौ में दु:ख-
हो जाएं मृत.
जो भी करो-
बस देशहित.
अन्य कविताएँ
1.
तुम्हारी याद…..
चले आओ प्रियतम !
मेरा दिल पुकारे
तकूं राह तेरी
मैं नदिया किनारे
हुआ ठूंठ सा मेरा
जीवन चमन ये
खिजां का बसेरा
है कृशकाय तन ये
धुंआती सी जाती है
सांसों की सरगम
तुझे याद करते हैं
शामो-सहर हम
कुहासे की चादर में
संध्या सिमटती
चली जा रही है
मुझे तकती तकती
चिढ़ाती है मुझको
दिलासा ना देती
कम्पित करे तन
निशा ये घनेरी
बैठी अकेली ही
प्रस्तर शिला पर
हल्का करूं गम
मैं किससे गिला कर?
क्षितिज को निहारूं
नजर कुछ न आए
यहां से वहां तक
लगें सब पराए
ये नदिया ये अंबर
समां ये सुहाना
कहते हैं मुझसे ही
मेरा फसाना
ये तन्हा सा आलम
है चुप्पी पसारे
हुईं मूक लहरें
गगन भी झुका रे
चले आओ प्रियतम मेरा दिल पुकारे
चले……….पुकारे
2.
बचपन
भोला भाला प्यारा बचपन
याद मुझे तो आता है
कितना पावन और मनभावन
हर लम्हा बन जाता है…
ढेरों खेल खिलौने होते
मीठी नींद मगन हम सोते
दादी कथा कहानी गुनती
मम्मी मेरा स्वेटर बुनती
धुंधली यादों में मेरा मन
अक्सर ही खो जाता है
भोला भाला प्यारा बचपन याद मुझे तो…..है
टाफी,कुल्फी,बुढ़िया के बाल
खाने में थे बड़े कमाल
गुल्ली-डंडा,कंचे और बाॅल
खेल खेलकर करे धमाल
हर लम्हा कानों में मेरे
मधुर कथा दोहराता है
‘मयंक’बिना निस्सार हैं-
धरती नीलगगन,
दिनभर के जो थके हुए-
कैसे होएं मगन?
चंदा की शीतलता पाने-
स्वाति बूंद मंडराए,
घिरें तभी मेघ दल-
छम छम नाच दिखाएं.
शशि को देखे कौमुदी-
हौले से खिल जाए,
सबकी नजरें देख उसे –
लोरी और गीत सुनाएं.
नभ की सुंदरता की जो- सदियों से छवि बढ़ाए,
शिव की जटा में टंका-
मन को सदा लुभाए.
3.
चेहरा
चेहरा मेरा नित देखकर वो प्यार फरमाते-
मीठे सुरीले बोल उनके हमको भरमाते,
ले रही अंगड़ाई मन में मेरी तमन्ना-
पास जाकर उनका बस दीदार कर आते.
ख्वाब में भी रोज वो चेहरा मुझे भाए-
जिस तरफ नजरें घुमाऊं वो नजर आए,
अब ना तन्हा रह सकेंगे उनसे कहना है-
आके बस एक बार तो इकरार कर जाए.
बेमुरव्वत है जहां ये ऐंठकर चलता-
इश्क का दरिया बहे तट पर विवश सिक्ता,
कोई मोती डाल दो इस सीप से दिल में-
चमक उट्ठेगा सहज ही सच!मेरे मीता.
4.
हम सब….
रंग बिरंगे फूल हैं हम सब डाली पर मुस्काते हैं
झूम झूमकर मस्त पवन में हम सौरभ फैलाते हैं
रंग बिरंगे …
हम हैं बच्चों सूरज दादा रोज सुबह को आते हैं
किरणों के संग सप्तरंग ले जग रोशन कर जाते हैं
नमन करे ये दुनिया हमको इसीलिये इतराते हैं
रंग बिरंगे …
हम हैं बच्चों चंदा मामा शीतल कदम बढ़ाते हैं
रोज रात को दूर गगन में चम चम चम मुस्काते हैं
मुझमे सिमटी कथा कहानी सारे ही दोहराते
हैं
रंग बिरंगे …..
हम हैं बच्चों जीव जंतु गण, हरे भरे प्यारे वन उपवन
हमसे गहरा नाता सबका हमी संवारे तन और मन
स्वच्छ , स्वस्थ जीवन की नींव डाल डाल बल खाते हैं..
रंग बिरंगे…..
हम हैं तोता, मैना, चिड़िया, शेर, हिरन,भालू,बंदर
तुम सब बाहर मस्त मजे में हम क्यों पिंजरे के अंदर?
प्रश्न उठे हैं रह रह मन में तूफां रोज उठाते हैं
रंग बिरंगे ….
आशीष आनंद आर्य ‘इच्छित’
1.
दो माँ के बेटे
खूब चोखा वर्दी में दिखता हूँ
नित करतब अनोखे लिखता हूँ
ऊँची-ऊँची तनी खड़ी पहाड़ियाँ
सरहदों पर लहरों की खुमारियाँ
लाँघता छलांगे बरबस नयी-नयी
सीने पर तमगे गज़ब सँजोता हूँ !
पर सच, दिल में एक घुटन सी होती है
मन में एक अगन बड़ा रोती है,
क्या मेरी माँ की गलती है
क्यों पिता की छाती दूरी से रोज पिघलती है
क्यों होकर भी न बेटा मैं बन पाऊँ
क्यों माँ-पिता के चरणों को धोखा दे जाऊँ !
खामोशी सहती रहती वो चूड़ियाँ
क्यों न खनकें, चहकें मेरे घर-आँगन में,
क्यों खिलौनों की ख्वाहिशें सँजोती
मासूम आँखेँ ताकें राहें अजब भीगे सावन में,
क्यों घर-बार का सुख रूठा तकदीर से मेरी
क्यों मैं ही यूँ ले मन-बंजारा जल जाऊँ!
बड़े सवाल अनोखे सीने में ढोता हूँ
करूँ क्या, दो-दो माँ का बेटा मैं होता हूँ !
सगे और सरहद दोनों की ज़िम्मेदारी
मैं ही जानूँ, मन के भीतर कितना मैं रूखा हूँ !
हाँ ! वर्दी में चोखा बड़ा अनोखा होता हूँ
सब अपने सपनों की लाशें रोज-रोज मैं बोता हूँ !
2.
तो सैनिक… मैं हो नहीं सकता
भर आयें आँखें
तो रो नहीं सकता
और जो रो पडूँ
तो सैनिक मैं हो नहीं सकता!
कदम तले बर्फ़ तूफ़ानी होती है
रेत को बस चमड़ी जलानी होती है
हर हाल में बड़ा ज़िंदा रहता हूँ
माँ के चरणों में जवानी होती है
पल-पल सीमा का प्रहरी होता हूँ
जहाँ जीना ही असल कहानी होती है!
सच्ची भर आयें आँखें
तो रो नहीं सकता
और जो रो पडूँ
तो सैनिक मैं हो नहीं सकता!
निशिदिन प्रीत की उलझन बोता हूँ
पीड़ा भर-भर रीत का बंधन ढोता हूँ
वो कल-कल छल-छल रोती है
मैं चुप्पी का बहता सोता होता हूँ
भर-भर भीगी परिवार की आँखें ही
कह रही मेरी ज़िंदगानी होती हैं!
सच्ची-मुच्ची भर आयें आँखें
तो रो नहीं सकता
और जो रो पडूँ
तो सैनिक मैं हो नहीं सकता!
वो तो जब गाँवो में
बच्चा-बच्चा तिरंगा फहराता है
विजय-पताका तले जो मैं होता हूँ
स्वर अनुनादित अचंभित कर जाता है
पल भर में वतन की मिट्टी पर
गर्व के अदम्य पल जी जाता हूँ!
सच्ची-मुच्ची भर आती है आँखें
और मैं रो नहीं सकता
जो रो पडूँ देश की इस खुशी में
तो सैनिक मैं हो नहीं सकता!
प्रियंका त्रिवेदी
देश अपना
कितना प्यारा यह देश हमारा है।
मिलकर रहना हमें सिखाता है।
तिरंगा भी अपने देश का
हमें इतिहास सुनाता है।
हमारी रक्षा के लिए
कितने फौजियों ने सीमा
पर अपनी जान गंवाई है।
केसरिया रंग उन वीरों
की याद हमें दिलाता है।
कितना प्यारा यह देश……..।
शांति और प्रेम से रहना
श्वेत रंग हमें समझाता है।
किसानों के कारण जो
दिखती हरियाली है, यह
हरा रंग हमको उनकी
मेहनत को दर्शाता है।
वक्त के साथ बढ़ते रहना
चक्र हमें सिखाता है।
कितना प्यारा यह देश……..।
भिन्न भिन्न है ऋतुएं,
कितनी ही बहती
पावन नदियां यहां।
भिन्न भिन्न भाषाओं के साथ
भिन्न भिन्न है जातियां यहां।
भिन्न भिन्न है वेष भूषा,
भिन्न भिन्न है व्यंजन यहां।
सभी धर्मों के त्योहारों को
मिलकर देश यह मनाता है।
कितना प्यारा यह देश हमारा,
मिलकर रहना हमें सिखाता है।।
अन्य कविताएँ
1.
बेटी
हम उस देश की नारी है।
जिसका इतिहास बहुत पुराना है।
हमारी शक्ति के आगे झुका सारा जमाना है।
हमसे ही जन्मे पुरुष, हमारी ही आबरू लूटते हैं
मेरी भी तो एक लड़की है
यह सोच मन डर जाता है।।
दहेज के कारण पहले लड़कियां
पैदा करने से मां – बाप डरते थे।
आज तो उन्हें बेटी के घर से बाहर
निकलने पर भी डर लगता है।।
चिंता में डूबी उन आंखों को देख
मन मेरा सहम सा जाता है।
मेरी भी तो एक लड़की है
ये सोच कर मन डर जाता है।।
नारी सशक्तिकरण वर्ष
हम हर साल मनाते हैं।
हमारी गुणवत्ता पर
यही पुरुष हमे पुरस्कृत करते हैं।
इनके विरुद्ध बोलते ही
ये हमारी इज्जत को
तार – तार करते हैं।
अब तो इन दोगले व्यवहार
वालों से डर लगता है।
मेरी भी तो एक लड़की है
कुछ बोलने से पहले ही मन डर जाता है।
इस देश के कानून ने ही
सपनों को पूरा करने का
पुरुषों के साथ कदम मिलाने का
हमें अधिकार दिया।
जग में हमें सम्मान दिया।
समाज छुपे ऐसे हैवानों से यह कानून
क्यों हमें बचा न पाता है ।
मेरी भी तो एक लड़की है
यह सोच कर मन सदैव घबराता है।।
इस देश में तो लोगों का
सच बोलने से मन कांपता है।
अपनी बेटी को इंसाफ दिलाते दिलाते ही
मां- बाप का सारा उम्र कट जाता है।
उन आशाओ भरी आंखों को देख कर
सारी इच्छाएं हमारी दम तोड़ती है।
तब मेरी भी तो एक लड़की है,
यह सोच कर मन मेरा चिंतित हो जाता है।।
2.
मैं धरा हूं
अपनी इस रंग बिरंगी दुनिया में,
पल में भाव बदलते इंसानों के
हर रूप को मैंने देखा है।
अपने को ज्ञानी दिखाने के
चक्कर में छोटों को छोडों,
बड़ों को भी बेइज्जत करती
औलादों को मैंने देखा है।
आंखों की शर्म मरी, संस्कारों
का नाश होते मैंने देखा हैं।
साधारण से दिखने वाले इंसानों के
अंदर छिपे शैतान को मैंने देखा है।
गैरों की क्या बात करूं, अपने में
छिपे हैवानों को मैंने देखा है।
मैं धरा हूं, भाव बदलते इंसानों के
हर रूप को मैंने देखा है।।
पहले इस धरा पर मेरी,
अतिथि में हमें देवता
ओर बुजुर्गो के चरणों में
स्वर्ग दिखाई पड़ता था।
आज की इंटरनेट की
दुनिया में, अब प्रैक्टिकल
होते लोगों को मैंने देखा है।
गैरों को कौन पूछता है अब यहां,
पैसे के लिए अपने मां-बाप को
मारते-पीटते, घर से बाहर निकालती
औलादों को मैंने देखा है।
मैं धरा हूं, भाव बदलते इंसानों के
हर रूप को मैंने देखा है।।
3.
बेटियां
प्यार की जो बगिया सजाती
जहां पाती प्यार दुलार अपार,
वो आंगन छोड़ है जाती।
सपनों के जाने कितने सागर बनाती,
फर्ज के आगे, उन्हें ढकती जाती बेटियां
कितनी अभागी होती है बेटियां ।।
जन्में घर में,बन पराई रहती,
शिक्षा,संस्कार,दौलत संग विदाई जाती।
परायों को अपनाती, तिरस्कार है पाती।
अवगुणों औ सुंदरता के कसौटी पर तौली जाती।
प्यार,सम्मान न कोई अधिकार पाती हैं बेटियां।
कितनी अभागी होती हैं बेटियां।।
घरों की पगड़ी, मां-बाप की जान है होती,
बहू,पत्नी,मां,भाभी जानें क्या क्या है बनती।
करती न आराम ,हर फर्ज है निभाती
उसके हिस्से में तो कभी छुट्टी भी न आती।
अपमानों के फिर भी कितने तीर सहती बेटियां।
कितनी अभागी होती है बेटियां।।
मां-बाप के घर में जब तलक रहती,
खेलती,कूदती,बगिया में घूम लेती।
मर्यादा की ज्यों जंजीर है पड़ती,
खिड़की से झांक बाहर खुश हो लेती।
टूटते अरमानों को अपने मूक बन देखती
कभी आंखें, कभी दामन,तकिया भिगोती बेटियां
कितनी अभागी होती है बेटियां।।
4.
रामनवमी
चैत्र मास, शुक्ल पक्ष की
प्रतिपदा तिथि प्रथमा।
दुष्टों का करने को अंत,
मां दुर्गा ने लिया जन्म।
चैत्र मासे की तिथि द्वितिया,
ब्रह्मा जी को सृष्टि का कार्य दिया।
चैत्र मासे शुक्लपक्ष तिथि तृतीया,
विष्णु जी ने सृष्टि के प्रारंभ हेतु,
मत्स्य रूप में ग्यारहवा अवतार लिया।
चैत्र मासे शुक्लपक्ष तिथि चतुर्दशी,
हिन्दू विक्रम संवत नव वर्ष आरंभ हुआ।
राक्षसों से जब धरती-देवता त्रस्त हुए,
किया आवहन देवों ने त्रिदेवों का तब।
चैत्र मासे शुक्लपक्ष तिथि पंचमी,
त्रिदेवो के अंग से चंडी देवी का प्रकाट्य हुआ।
दे अस्त्र शस्त्र सब देवों ने
देवी को अस्त्रों से सुसज्जित किया।
चैत्र मासे शुक्लपक्ष तिथि सप्तमी,
कालरात्रि रूप में मां ने
राक्षसों का संहार किया।
चैत्र मासे शुक्लपक्ष तिथि अष्टमी,
दुर्गा रूप में मां ने शुम्भ-निशुम्भ का अंत किया।
चैत्र मासे शुक्लपक्ष तिथि नवमी
सिद्धिदात्री मां ने सृष्टि का कल्याण किया।
राक्षसों ने जब ऋषि का जीना दुष्वार किया
चैत्र मासे शुक्लपक्ष तिथि नवमी में ही
विष्णु जी ने त्रेतायुग में,राम अवतार लिया।
मातृ-पितृ की भक्ति,भाई-बंधु से कर अथाह प्रेम
हमें बड़ों की सेवा,बंद्धुत्व प्रेम का उद्देश्य दिया।
पर नारी को माता-बहन और अपनी भार्या को
लक्ष्मी स्वरूपा मान हमेशा सम्मान दिया।
करें अपनी स्त्री का आदर पुरूषों को उद्देश्य दिया।
मानवता के कल्याण हेतु राम जी ने,
रावण का संहार कर,नये युग का विस्तार किया।
अनुसरण कर श्री राम पथ का,
रामनवमी के अवसर पर अपने
दुर्विचारों का नाश कर हम अपना उद्धार करें।
5.
स्वाभिमान
उठो नारियों, शस्त्र धारण करो।
अब न अबला ,बेचारी बनो।।
सशक्त देश की तुम नारी हो।
तुम ही चण्डी, दुर्गा,काली हो।।
अब न कोई कृष्ण आयेंगा
तुम्हारी लाज बचाने को।
खुद ही शस्त्र उठाना होगा,
अपराधियों का संहार करने को।
बन कर लक्ष्मीबाई, फुलनदेवी
फिर इतिहास दोहराना होगा।
अपना स्वाभिमान हमें
अब खुद ही बचाना होगा।।
न लगाओ गुहार किसी कानून
और राजनीति के दलालों से।
सब अपनी – अपनी चाल चलेंगे,
बैठ कर बड़े -बड़े मकानों से।।
ये बस बहस करेंगे,
इनका कुछ न जायेगा।
हमारी इज्जत को हर सरकार में,
तार-तार ही किया जायेंगा।।
इसीलिए तो कहती हूं
उठो नारियों, शस्त्र धारण करो।
अब न अबला, बेचारी बनो।
सशक्त देश की तुम नारी हो,
तुम ही चण्डी, दुर्गा काली हो।।
- श्रद्धानंद ‘चंचल’
कदम कभी रुके नही,
वतन कभी झुके नही,
भारत माँ की आन पर,
नज़र कोई टीके नही।।
खौफ का न नाम हो,
तिरंगा पहचान हो,
आंखों में रक्त की लालिमा,
शौर्य का गुमान हो।।
धरा मुझे पुकारती,
हवाएं ललकारती,
बलिदान जो बेटे हुए,
माँ भारती दुलारती।।
बहा लहू जो रक्त का,
आज मांग यही था वक्त का।।
अन्य कविताएँ
चलते चलते शाम हो गई,
सारी उम्र तमाम हो गई,
बेगानो से नही जिंदगी,
अपनो से बदनाम हो गई।।
किसको दिल दिखलाए अपना,
शिकवा गिला करें तो किससे,
जिन्हें बिठाया सर आंखों पर,
उनसे नींद हराम हो गई।।
सुख के साथी तो बहुतेरे,
दुख में साथ निभाए तो कुछ,
जिनका साथ निभाया हमने,
उनकी गली डगर गुमनाम हो गई।।
मिलने का सुख कभी न जाना,
खोकर भी सीखा मुस्काना,
सहते-सहते अब तो मेरी,
पीड़ा खुद आराम हो गई।।
मेरी किस्मत ही थी ऐसी,
जिसको चाहा वही कट गया,
औरो की नज़रों में मेरी,
प्रीति स्वयं इल्ज़ाम हो गई।।
2
रफ्ता-रफ्ता जिंदगी गुजरती जा रही है,
खुशियां और गमो के बीच सँवरती जा रही है।।
हमारी राहो में तो बिखरे हुए है शूल,
मगर हमने सबकी राहो में बिछाए है फूल,
गमो की शाम अब ढलती जा रही है,
रफ्ता-रफ्ता जिंदगी गुजरती जा रही है।।
तन्हा चलते-चलते अब थक गए है कदम,
थोड़ी दूर ही सही चलो मेरे हमदम,
आशा की किरणें अब बिखरती जा रही है,
रफ्ता-रफ्ता जिंदगी गुजरती जा रही है।।
आंखों में मेरे भी कोई सपना तो है,
झूठा ही सही कोई अपना तो है,
प्यार की बगिया अब महकती जा रही हैं,
रफ्ता-रफ्ता जिंदगी गुजरती जा रही है।।
- मधु वैष्णव मान्या
नमन
1 तिरंगा शान,
रक्षा करे जवान,
कुर्बान वीर।
2 आन बान है,
आत्मसम्मान देश,
प्यारा तिरंगा।
3 हे मातृभूमि ,
को नमन सदा,
बलिदान है ।
4 फर्ज निभाते,
मां भारती के लाल,
शहादत है।
5 एकता दीप ,
अखंड सम्मान ,
नमन करें।
पुष्प रंजन कुमार
1.
सबसे आगे हिन्दुस्तान रहे
जात -पात का भेद न हो अब
ऊॅच – नीच ना शेष रहे
भिन्न -भिन्न सबका भेष रहे पर
दिल सबका एक रहे
आ हर मन में एक अरमान बसे
सबसे आगे हिन्दुस्तान रहे ।
धरती से अंबर तक गुंजित
अपनी गौरव गान रहे
मान रहे समंदर से गहरा
हिमालय पर सम्मान रहे
आ हर मन में एक अरमान बसे
सबसे आगे हिन्दुस्तान रहे ।
क्षमा, दया, धृति का यूँ ही
पोषकता बनी रहे
अति उदार आदर्शों की सरिता
निर्वाद बहती रहे
आ हर मन में एक अरमान बसे
सबसे आगे हिन्दुस्तान रहे ।
2.
संग्राम है माँ के सम्मान का
ना तेरी गद्दी की ना मेरे ताज का
यह संग्राम है मां के सम्मान का ।
कुछ ऐसा न कर कि शर्म होने लगे
मां दुःखी हो जाए और रोने लगे
ना तेरे लाज की ना मेरे मान का
यह संग्राम है मां के सम्मान का ।
रोक नफरत दिलों में ना पनपने लगे
मां व्यथित हो जाए और बिलखने लगे
ना तेरे मौज का ना मेरे मोद का
यह संग्राम है मां के सम्मान का ।
आओ मिलकर लड़े ना दुर्बल बनें
मां पराजित ना हो जाए और सहमने लगे
ना तेरे आन की ना मेरे शान का
यह संग्राम है मां के सम्मान का ।
भाई भाई हैं हम सब मिलकर रहें
मां देखेना झगड़ते और खबर ना मिले
ना तेरे मजार का ना मेरे धाम का
यह संग्राम है मां के सम्मान का ।
3.
कलम उठाओ या तलवार
अपराध के रथ पर बैठा
बढ़ रहा दुश्मन योद्धा
जीना है तो जागो वत्स
आंखें खोलो देखो सत्य
खुद को करो, लड़ने को तैयार
छिड़ चूका युद्ध ,करो अब वार
कलम उठाओ या तलवार ।
जल्दी करो वत्स घिर जाओगे
चूक हुआ तो मिट जाओगे
ऐश मौज की छोड़ो अभिलाषा
इतिहास बचाने की रख आशा
खुद से यदि करते हो प्यार ,
छिड़ चूका युद्ध, करो अब वार
कलम उठाओ या तलवार ।
सुनो सुनो रुदन – चित्कार
पराई पीड़ा महसूस कर यार
माना नहीं है पीर अपनों की
पर कल खुद पर भी गुजरेगी
समझो वत्स हो जाओ होशियार,
छिड़ चूका युद्ध , करो अब वार
कलम उठाओ या तलवार ।
चालाकी वह दिखला रहा है
सच छुपा भटका रहा है
यूहीं आखें रह गई अंधी
शत्रु बना लेगा बन्दी
छोड़ो दिल , कर मन पर ऐतबार
छिड़ चुका युद्ध , करो अब वार
कलम उठाओ या तलवार ।
4.
आओ देशप्रेम करें हम
ये सगा है ओ पराया,
ओ काला है ये है गोरा,
यह अधम है वह है उत्तम,
वह ऊंचा है यह है निम्नतम,
यूं जन – जन ना भेद करें हम,
आओ देशप्रेम करें हम ।
ओ बिहारी ये बंगाली,
दिल्ली का ये ओ पंजाबी,
कोई पूरब कोई पश्चिम वाला,
कोई उत्तर कोई दक्षिण वासी,
यूं खंड – खंड ना देश करें हम ,
आओ देशप्रेम करें हम ।
मेरा हक है उससे ज्यादा ,
कम नहीं हो मेरी मर्यादा ,
इसको क्यूं अधिकार मिले,
उसको हड़पने का इरादा ,
यूं ना मनभेद करें हम ,
आओ देशप्रेम करें हम ।
5.
सपूतों तुम्हें नमन
हंसती खेलती झूमती कलियाँ
हर्षित धरा है मस्त – गगन है
फिजा में बहती महकती खुशियाँ
तुम्हीं से गुलजार चमन है
हे वीर सपूतों तुम्हें नमन है ।
तुम्हीं से दादी की लोरी है
तुम्हीं से दादा की पगड़ी है
अक्षुण्ण बचा है माँ का आंचल
तुम्हीं से पिता का अदब है
हे वीर सपूतों तुम्हें नमन है ।
तुमसे लाल किले की लाली
निर्मल गंगा का पानी है
कण- कण का रखवाला है तू
तमसे ही अभेद्य वतन है
हे वीर सपूतों तुम्हें नमन है ।
अडा रहता अंगद सा सीमा पर
ध्येय पर अर्जून सा नजर है
दुश्मन की गोली न छुए मिट्टी को
सीने पे खाने को खड़ा तना है
हे वीर सपूतों तुम्हें नमन है ।
घनश्याम ‘कलयुगी’
1. |
छोड़ेंगे ना कोई भी निशानी
चीन चल रहा चाल पर चाल,
याद दिला दी सबकी नानी!
उधर अमेरिका खम्भा नोच रहा,
जैसे बिल्ली हो खिसियानी!
उत्तर कोरिया छुपा हुआ हैं,
लाएगा कोई हथियार तुफानी!
घोल रहा हैं रसिया भी रस,
लिखने को एक नयी कहानी!
ईरान, इराक, कुवैत अरबी सब,
तेल से खेल करेंगे सैतानी!
इधर हमारा देश पड़ोसी, मस्त है
खाकर टिड्डीयो का बिरयानी!
ब्रिटिस, तरकीश, अफ्रीका,
आस्ट्रेलिया, सब करते अपनी मनमानी!
भारत भी तैयार खड़ा हैं,
छोड़ेंगे ना कोई भी निशानी!
2.
वतन की पुकार
वतन की पुकार कानों मे गूँज उठी,
बुझी हुई चिंगारी फिर से सुलग उठी,
सुस्त पड़ी भुजाएँ फिर फड़क उठी,
सोई हुई तमन्नाये फिर से जाग उठी,
भाल तिलक लगाने को अंगुली उठी,
रण जाने को माँ बोल उठी,
दिल में करुणा का भाव उठी,
छुपती आँखें माँ की छ्ल से छलक उठी,
बसंती आँचल धूल धूसरित हो उठी,
मेरा रंग दे बसंती चोला, माँ गा उठी,
लड़ाकों की तब हुंकार उठी,
जल, नभ और धरा भी काँप उठी,
फाईटर, टैंक की गर्जन उठी,
तम तमाती तोपें आग उगल उठी,
रक्तरंजित रणबाँकुरों से धरा लाल हो उठी,
तब दुश्मन के चित्त चित्कार उठी,
मूक पड़ी कलम फिर से बोल उठी,
इतिहास के पन्नों को खोल उठी,
लिखने को बीरगाथा फिर मचल उठी,
शहादत लिख कलम भी रो उठी,
3.
जैसे तू गया वैसे तो कोई गया न था
मृत्यु तो होनी है ये कोई नयी बात न था,
मगर जैसे तू गया वैसे तो कोई गया न था,
बहुँत अमीर ग़रीब मरे हैं इस धरती पर,
जैसा तुम्हारा जनाज़ा निकला वैसा किसी का न था,
तिरंगा तो बहुतों को नसीब हुआ होगा,
जैसी शोभा तुम्हारे ऊपर थी वैसा किसी पे न था,
तिरंगा भी गर्वित था तुम्हे अपने में छुपाकर,
ऐसे खून के सितारे उस पर पहले बना न था,
फूल भी बहुतों के श्रद्धांजलि में चढ़कर मुर्झाया होगा,
पर तेरे चरणों के स्पर्श से पहले इतना रोया न था,
ये हुजूम जो उमड़ पड़ा तेरे अन्तिम दर्शन के लिये,
ऐसा क्रंदन ऐसा विलाप किसी और में न था,
सूरज की तरह चमकोगे इतिहास के पन्नो में,
मुख मंडल पर इतना तेज किसी और में न था,
4.
फैसला हमारा होगा,
आगाज़ तुमने किया, अंजाम हमारा होगा,
गुस्ताखियाँ तुम करोगे, दंड हमारा होगा,
नाक तुम्हारी होगी, ठोकर हमारा होगा,
फ़रियाद तुम करोगे, फ़ैसला हमारा होगा,
लाश तुम्हारी होगी, बम हमारा होगा,
खून तुम्हारा होगा, पसीना हमारा होगा,
आसूँ तुम्हारा होगा, मुस्कराहट हमारा होगा,
गम तुम्हारा होगा, उल्लास हमारा होगा,
क्रंदन तुम्हारा होगा, अट्टहास हमारा होगा,
हार तुम्हारी होगी, जीत हमारा होगा,
पाल रहा हैं जिनको भारत, उनका भी कुछ करना होगा,
अब अपने भारत को, चक्रवर्ती बनाना होगा,
5.
भारत के वीर मेरा नमन
हे भारत के बीर सपूत,
तेरे देश प्रेम का कायल हूँ।
अश्रु पूरित नयनों से अलविदा,
मैं अन्दर तक घायल हूँ।।
तुम्हारी दृढता तुम्हारी बीरता,
तुम्हारी सहादत को नमन।
धन्य है वो जननी,
उस माँ को भी सत-सत नमन ।।
धन्य हैं वो पिता जिसने,
बेटे पर अपने मान किया।
वो पत्नी भी हैं देवी तुल्य,
जो बलिदान पर अभिमान किया।।
भारत माँ भी आहत हैं,
तुम्हारे जैसे लाल को खोकर।
मर्माहत हैं तिरंगा,
तुमको आंचल में छुपाकर।।
भारत माँ के बलिदानी,
तुमने तो पा लिया दोनों जहाँ।
मातृभूमि पर हो निछावर,
ऐसी किस्मत हम सब की कहाँ।।
अब जब तुम अर्पण कर चुके,
अपना तन मन सब कुछ इस देश पर।
मैं एक दीप प्रज्वलित करूँगा,
तुम्हारे नाम का अपने घर पर।।
6.
जय जवान जय किसान जय विज्ञान
प्यार की परिभाषा देश प्रेमियों से
ज्यादा, कौन परिभाषित करेगा।
प्यार उसी का हैं, जो त्याग,
तपस्या तमाम बलिदान करेगा।।
उधर चीन की सरगोशियाँ,
सरहद पर शुरु हैं।
इधर इंसान और इंसानियत है,
उधर फरेबी सैतान का गुरू हैं।।
सीमा की सुरक्षा में सीमा
सहचर, खड़े हैं सीना तान।
कंधा मिलाए खड़ी हैं जनता
चाहती हैं देश का सम्मान ।।
किसानों के कंधे भी चाहे,
कर्ज से कितना झुका हैं।
अपने कर्म पथ से वह,
कभी भी ना चुका है।।
इधर एक अदृश्य दुश्मन देश के
अन्दर मचा रखा हैं हाहाकार।
जिसे भेजा हैं एक देश पड़ोसी,
पथ भ्रष्ट और मक्कार ।।
लड़ रहे हैं योद्धा की तरह,
बिन हथियार थोड़े हैं लाचार।
लगाकर अपनी जान की बाजी,
कर रहे हैं उपचार ।।
महामारी को मार भगाने,
माहामानव ने ली संज्ञान।
दिन दुनी रात चौगुनी,
तरक्की करता अपना विज्ञान।।
चाँद तारों तक पहुँच हमारा,
छोड़ें हैं मंगल पर निशान।
हमारा मंत्र हमारा नारा,
जय जवान जय किसान जय विज्ञान।।
अन्य कविताएँ
सावन
सावन मनभावन आया,
अब तो तुम भी आ जा ।
प्रेम अगन की पड़ें फुहार,
अब तो तुम भी आ जा ।।
बदली संग बरसे मोरे नयना,
बेबस क्यों बरसे जा ।
कटती नहीं तनिक तनहाई,
अब तो तुम भी आ जा ।।
काटने लगी ये रात बिरह की,
कटती नहीं कटा जा ।
रातों की रानाइयों में रमने,
अब तो तुम भी आ जा ।।
झूला झूले सखियाँ झूमें,
गाये कजरी बजाये बाजा।
पेड़ों पर झूला डालने,
अब तो तुम भी आ जा।।
झूले पर मैं झूलू, झूमू,
तुम मुझे झूमा जा ।
मुझे पेंग बढ़ाते देखने,
अब तो तुम भी आजा।।
फीके पड़े हैं सब श्रींगार,
लट उलझी सुलझा जा ।
मन मे प्रीत उमड़ आयी है,
अब तो तुम भी आ जा।।
घुमड़ घुमड़ घन घोर घनेरे,
घूम घूम बरसा जा ।
बूंदे-बूंदे तन मन भीगे,
अब तो तुम भी आजा।।
2.
ग़ज़ल
हर सफ़र से पहले मुक़म्मल आराम जरुरी हैं,
चलो सो जाये थोड़ी देर, नींद भी जरुरी हैं,
ज़िंदगी की दौड़ में भटकते रहे शाम-ओ-सहर,
फुरसत के लमहों में, थोड़ी इबादत भी जरुरी हैं,
प्यार में कभी गुफ़्तगू हो जायँ तो मत घबराना,
रूठो को मनाने के लिये, तकरार भी जरुरी हैं,
अपनों से फरेब हो जाये तो चुपचाप सह लेना,
सम्हलने के लिये, ठोकर भी जरुरी हैं,
आँसुओं को रोकने से ग़म बढ़ जाता है,
दिल हल्का करने के लिये, रोना भी जरुरी हैं,
तुझे देखता हूँ तो ग़ज़ल सूझती हैं मुझे,
मगर उसके लिये थोड़ी, तन्हाई भी जरुरी हैं,
इश्क़ मे अहम नहीं होना चाहिए “घनश्याम”,
ग़रज़ अपनी हो, तो गुज़ारिश भी जरुरी हैं,
3.
हो, ना हो
श्रमिकों लाकॅडाउन की यादें दीवारों पर लिख दो,
कहीं चुनाव में तुम्हें याद हो, ना हो,
तेरे खून की गर्मी से ये सड़के जितनी पिघली हैं,
उतनी तपिश आफ़ताब में भी हो, ना हो,
कड़कड़ाती धूप में कुम्हलाती ऐ कोमल काया,
दे दो बद्दुआए चाहे उसमें असर हो, ना हो,
खुदा खुदाई ख़ातिर बनाया पर खुद खुदा बन बैठे,
साहिब ए मसनद फिर हो, ना हो,
पैरों ने तो खूब साथ दिया अब हाथ की बारी हैं,
सही जगह अँगूठा लगाना फिर वो बात हो, ना हो,
इंसान की जुबां शख़्सियत बयां कर देती हैं,
कीमती लिबास तन पर हो, ना हो,
ऐ भारत माँ तू मेरा कल का सलाम आज ले ले,
क्या पता कल सुबह हो, ना हो,
4.
चलो छत पे
जब दुनिया सिमट जाये घर में,
जी रहे हो प्रदूषण के डर में,
तो टहलने लेकर फोन, चलो छत पे,
जब पर्यावरण की बारी हो,
चाहते करना कुछ भागीदारी हो,
तो गमला में पौधा लगाकर, चलो छत पे,
कभी रात में बिजली गुल हो जाये,
करके तर पसीने से गर्मी सताये,
तो बिस्तर संग पानी लेकर, चलो छत पे,
कपड़े को हो सुखाना,
या कभी गेहूँ हो सुखाना,
तो भरी बाल्टी लेकर, चलो छत पे,
जब रिमझिम बरसे सावन,
मन को लगे मनभावन,
तो छाता लेकर छप-छप करने, चलो छत पे,
जब चाँदनी मे नहाना हो,
और चंदा मामा को मनाना हो,
तो बच्चों संग दादा दादी भी, चलो छत पे,
करना हो योग और कसरत,
मन में हो स्वच्छ हवा की हसरत,
तो लेकर चटाई चादर, चलो छत पे,
जब जाड़े में जाड़ा सताये,
सर्दी से दाँत कटकटाये,
तो सुबह की पहली धूप सेकने, चलो छत पे,
जब इन्द्रधनुषी आभा हो,
नभ छूने का इरादा हो,
तो मांजा, डोर, पतंग लेकर, चलो छ्त पे,
जब चिड़ियों का कोलाहल हो,
और गर्मी की चिल चिल्लाहत हो,
तो परई में दाना पानी लेकर, चलो छ्त पे,
चाहे करो चौकड़ी धमाल,
नहीं किसी को कोई मलाल,
पर स्वच्छ रखो फेको ना, कबाड़ छ्त पे,
5.
नफरत की आग
ऐसा भी क्या अहम् वहम की तांडव मचा दिया,
नफरते आग में हाथ अपना भी जला लिया,
सुहागिने थी जो कलतक, उसे बेवा कर दिया,
मांग में उसकी, चिता की राख भर दिया,
देखा है उन मासूमो ने, मौत का ये मंजर,
कहते थे भईया, चाचा, वही मार रहे थे खंजर,
पत्थर बन बैठी माँ, अब आसूँ भी सूख चले,
शामिल थे जो सूख-दुख में, वही घर फूक चले,
खेल गया कोई खेल और इल्ज़ाम तेरे सर मढ़ गया,
बहनों के भाई भी इन जालिमों के भेंट चढ़ गया,
इस खेल में ना जीता कोई, हम दोनों ही हारे हैं,
कठपुतली बन नाच रहे और क़िस्मत के मारे हैं,
तुम सोचो मैं भी सोचूं, क्या खोया क्या पाया,
झूठे अहम् गरूर में, अपनों को कर दिया जाया,
ऐसा आया अध्यादेश, जल उठा पूरा भारत देश!
कहाँ छुपे हो धर्म के ठेकेदारो, कुछ दे दो इन्हे उपदेश!!
हक है सबका हक लेना, पर आग लगाना ठीक नहीं!
सादगी से जग जीत लो, बल पूवर्क मीलती भीख नहीं!!
जो सक्षम है अक्षम से और जो अक्षम है सक्षम से मिले!
आपस में मिल बैठकर, कर लेंगे दूर शिकवे गीले!!
सोने की चिड़िया भारत, पहले ही लूट चुकी है!
देकर दान पाक, अफगान, बंग्लादेश, पहले ही टूट चुकी है!
अब और ना तोड़ो इस माँ को, बरदास्त नही कर पायेगी!
लड़ते संतानो को देख अपने, जीते जी मर जायेगी!!
तुम रहम करो मै रहम करू, कुछ ऐसा हो जाये!
हम बन जाये विकास का पहिया, भारत विश्व गुरू बन जाये!!
सुरेन्द्र कौर बग्गा
“शहादत को नमन”
अमर शहीदों के ताबूत जब घर को आए
उन्हें देख थमें न आँसू, दिल दहला जाए
अंतिम विदाई देने उमड़ा जन सैलाब
“अमर रहे शहीद” की ध्वनि से गूँज उठा आकाश
२० दिनों की नन्ही परी को ताबूत पर रख
माँ ने पिता से पहली बार मिलवाया
नन्ही सी जान का क्या था दोष जो
उठ गया सिर से पिता का साया
पापा के शव को जलता देख
पाँच वर्षीय बेटा चिल्लाया
मत लगाओ आग, पापा जल जाएँगे
रोक लो जल्दी, बुझाओ आग, पापा मार जाएँगे
६ माह पहले सुहाग का जोड़ा पहने दुल्हन
चार दिनों का मिलन और जीवन भर का विरह
हे भगवान! तूने ये क्या कर डाला
अभी तो शादी का “चूड़ा” भी था नहीं उतारा
बूढ़े माँ-बाप की लकड़ी का सहारा
अभी तो जाने का वक़्त था हमारा
अब बुढ़ापे में किसके सहारे जिएँगे
शेष रही ज़िंदगी में ग़म के आँसू पिएँगे
बावजूद इन सबके घरवाले करते वीर शहीदों पर अभिमान
देश पर मिटने वालों का व्यर्थ नहीं जाएगा बलिदान
विष्णु शास्त्री `सरल`
01
चेतना जागे
चिंता नहीं चेतना जागे
मन में नये विचार ,
सदा जीत की ही आशा हो
मानें कभी न हार |
शीघ्र देश के वर्तमान की
ओर सभी दें ध्यान ,
तभी अनागत का भी होगा
पथ उज्ज्वल आसान |
जटिल समस्यायें जो आगे
खड़ी हुई हैं आज,
मंथन – चिंतन कर हल खोजे
उनका स्वतः समाज |
कम होने पाए न किसी का
धैर्य और उत्साह,
धीरे-धीरे सबके मन की
पूरी होगी चाह |
सदा संयमित श्रम–निष्ठा हो
मन में सत्संकल्प,
यही सभी के समुत्थान का
केवल एक विकल्प |
सफल बनेगा तंत्र हमारा
होगा नया विकास,
स्वतः देश का बढ़ता ही तब
जाएगा विश्वास |
करनी होगी वक्त और
अवसर की भी पहचान,
देखें यह भी क्या कहता है
आज ज्ञान-विज्ञान |
झाँकें अपने अन्तर्मन में
न दें किसी को दोष,
ध्येय समर्पित पथ पर निर्णय
लेना होगा ठोस |
रहें अटूट हृदय में सबके
समतामूलक भाव,
नहीं किसी से कभी कहीं पर
हो पाए टकराव |
कदम देश के बढ़ते जाएँगे
उन्नति की ओर,
शांति और संतुष्टि करेगी
सबको आत्म-विभोर |
02
पथ पर आ जाओ
रुकना-झुकना हमें न आता आगे बढ़ते जाएँगे ,
पथ की सारी बाधाओं को सहज समूल मिटाएँगे |
ऋषि –मुनियों की सन्तानें हम नहीं कभी घबराते हैं ,
ठान लिया जो उसे पूर्ण होने तक बैठ न पाते हैं |
त्याग-समर्पण-शौर्य रक्त में सबके यहाँ समाया है,
सत्य-अहिंसा-सदाचार का उज्ज्वल पथ अपनाया है |
`रहो और रहने भी दो` का सदा हमारा नारा है,
मानवता की दिव्य ज्योति का एक यही ध्रुवतारा है |
हम भूतल के हर प्राणी को प्रश्रय देते आए हैं,
विश्व-शांति के हमने तो संदेश सदा फैलाये हैं |
अभयदान देकर कण –कण में भी उत्साह जगाया है,
सपने में भी दर्प हमारे मन पर झाँक न पाया है |
स्नेह और सौहार्द हमारा यदि कोई ठुकराता है,
वह भविष्य के परिणामों से निश्चित ही पछताता है |
अभी वक़्त देते हैं सोचो-समझो पथ पर आ जाओ,
नहीं व्यर्थ की अभिलाषा में अपने मन को उलझाओ |
याद करो इतिहास समय का उपजा भ्रम मन से टालो,
वर्तमान की नई सोच पर अब अपने को भी ढालो |
रक्त-पात में नहीं लेशभर भी विश्वास हमारा है,
आत्मशक्ति-संयम से ही हमने मोड़ी युगधारा है |
यह सादर संकेत कर दिया अधिक नहीं कह पाएँगे,
यदि मानोगे नहीं बात तो फिर निज रूप दिखाएँगे |
03
मन में आता है
प्रेम और सौहार्द हमारा जो ठुकराकर
करता है सीमा पर अपनी ही मनमानी,
जिसके गर्हित छल –प्रपंच से सहसा घिरकर
हुए वीरगति प्राप्त देश के कुछ सेनानी;
मन में आता है मैं भी सीमा में जाकर
मातृभूमि की रक्षा में हरपल जुट जाऊँ,
गौतम,गाँधी,राणा,वीर सुभाष,शिवा के
सत्यसंघ भारत की ताकत उसे बताऊँ |
बिना हेतु ही आज अहर्निश उद्वेलित कर
ओ प्रतिवेशी! छीन नहीं सुख-शांति हमारी,
सोच-समझ ले गहराई से परिणामों पर
समर-अग्नि की क्यों सुलगाता है चिनगारी ?
जो विकास-हित कर्मनिरत है निज धरती पर
मान लिया क्यों तूने उस भारत को दोषी ?
आज वक़्त के स्वच्छ मुकुर में देख चेहरा
और शीघ्र ही त्याग चीन ! अपनी मदहोशी |
प्राणोत्सर्ग किया भारत के जिन वीरों ने
उनकी यश – गाथा इतिहास सदा गाएगा,
यदि दुस्साहस पुनः कभी कोई करता है
निस्संदेह नाम तक उसका मिट जाएगा |
देख पराक्रम, साहस, त्याग शूरवीरों का
मन करता है मैं भी अब हथियार उठाऊँ,
भारतमाता के चरणों में शीश चढ़ाकर
वीरों की श्रेणी में अपना नाम लिखाऊँ |
जी में आता है सीमा के पार धरा पर
ध्वज स्वदेश का सुखद तिरंगा मैं फहराऊँ,
अहंकार से भूल गया है जो सच्चाई
उसे प्रेम-बंधुत्त्व –भाव का पाठ पढ़ाऊँ |
04
भविष्य सँवारें
उड़ें नहीं भ्रम की आँधी में सच की राह निहारें ,
जनहित के हल हुये प्रश्न पर दें कुछ ध्यान,विचारें |
प्रेम-एकता-समता-समरसता की ज्योति जलाएँ ,
द्वेष –घृणा की कुटिल भावना कभी न मन पर लाएँ |
जो विकास से जुड़ी बात हो उसे सहज स्वीकारें ,
भीषण संकट से स्वदेश को मिलकर सभी उबारें |
चिंतन-मंथन हो अतीत पर और भविष्य सँवारें,
रचता है षड्यंत्र सदा जो शीघ्र उसे ललकारें |
मातृभूमि के लिए एक स्वर-भाव प्रकट हो जाए,
सकल विश्व इसके चरणों में अपना शीश झुकाए |
धैर्य और साहस बल-विक्रम अपने पास निराला,
नहीं निरंतर पीते जाएँ निपट स्वार्थ की हाला |
05
दोहे-
लोकतन्त्र की राह
लोकतन्त्र का देश में ,नाम बचा अब शेष |
जन-मानस को दे सका ,वह न उचित संदेश ||
नेता करते हैं सभी,मनमानी का काम |
अतः न मिल पाता कभी ,सुखदायक परिणाम ||
स्वार्थ-सिद्धि के ही लिए,होता हर उद्योग |
लोकतन्त्र से हो गए , हैं निराश सब लोग ||
नेता बनकर जोड़नी है अपनी संपत्ति |
चाहे आई देश में हो घनघोर विपत्ति ||
होता भ्रष्टाचार का, आए दिन विस्तार |
नेताओं से ही इसे, मिलता है आधार ||
कम न किसी का हो रहा,सत्ता-सुख का चाव |
नहीं लेशभर भी रहा ,जनसेवा का भाव ||
है कानून न देश में, सबके लिए समान |
लोकतन्त्र की राह तब,कैसे हो आसान ||
कई मायनों में अभी,है गुलाम यह देश |
नहीं स्वराज-सुराज का,बन पाया परिवेश ||
भाषा-भूषा ,सभ्यता का बढ़ता उन्माद |
कभी किसी से एक भी , सुलझा नहीं विवाद ||
नेताओं का देश के ,उत्तम रहे चरित्र |
अन्तर्मन सबका बने,सात्विक और पवित्र ||
जनता का शासन बने,जनता की हो बात |
लोकतन्त्र से फिर नहीं ,पहुँच सके आघात ||
समझेगा हर व्यक्ति जब,लोकतन्त्र का अर्थ |
`मत` अमूल्य उसका नहीं, जाएगा तब व्यर्थ ||
लोकतन्त्र तो त्याग का,है केवल पर्याय |
इसे बचाने के लिए , जनता करे उपाय ||
लोकतन्त्र में हर समय ,जनहित का हो ध्यान |
भेदभाव – अलगाव का,हो जाए अवसान ||
लोकतन्त्र को देश का, समझ सके हर व्यक्ति |
जन-जन में इसके लिए,बढ़े सदा अनुरक्ति ||
अन्य रचनाएँ –
01
संकल्प-शक्ति
दृढ़ संकल्प सदा जीवन में
करता कायाकल्प,
और उसे पूरा करने का
श्रम ही एक विकल्प |
टिकता है संकल्प-शक्ति से
सहज काम में ध्यान,
हो जाता है कार्य कठिनतम
निश्चित ही आसान |
इच्छा है तो कार्य एक दिन
होता है सम्पन्न ,
देख अडिग साहस टलता है
हर संकट आसन्न |
किसी कार्य के विधि विधान का
जो रखता है ज्ञान,
उसकी बनने लग जाती है
एक अलग पहचान |
कार्य बड़ा –छोटा जो भी हो
रखें समर्पण भाव ,
उसके प्रति बढ़ता जाएगा
अनुदिन चाव- लगाव |
सतत रहें सन्नद्ध कर्म में
कुछ भी न लें विराम ,
आँखों के आगे फिर होगा
मनवांछित परिणाम |
खुशी –खुशी निज कर्त्तव्यों का
करना है निर्वाह ,
कम हो सके नहीं जीवन में
पलभर भी उत्साह |
कभी सफलता मिल जाएगी
करते रहें प्रयास ,
क्यों न बीतता वक़्त अधिक है
फिर भी न हों निराश |
02
नाम की महिमा
राम तुम्हारा नाम सुपावन
अघनाशक अभिराम है,
एक बार लेने से मन को
मिल जाता विश्राम है |
त्याग-स्नेह का मूर्तरूप है
आशा का आलोक है ,
मोक्ष और संतोष प्रदायक
फैला तीनों लोक है |
शील –शक्ति-सौन्दर्य अपरिमित
तेजपुंज विज्ञान है,
योग-क्षेम ,गुण –धर्म-मूल है
करुणा-दया निधान है |
उत्प्रेरक सद्गुणागार है
सबका प्राणाधार है ,
नहीं किसी को इस जीवन में
मिलता उसका पार है |
निर्विकार है,निर्विकल्प है
सुखानन्द वरदान है ,
नवल ऊर्जा संस्थापन का
घट-घट अटल विधान है |
सदाचार,मर्यादा-साहस
देता वह सुविचार है ,
नाम-सूत्र से रीति – नीति का
होता जग – विस्तार है |
प्रभो ! नाम की महिमा का तो
कोई आदि न अंत है ,
कलियुग की अटपटी वृत्ति में
नाम सरल, बलवंत है |
03
गज़ल
अनोखा वक़्त आया है समझ में कुछ नहीं आता ,
हमें ,क्या –क्या बताया है समझ में कुछ नहीं आता |
विदा होते चले जाते न जाने लोग हैं कितने,
हँसाकर क्यों रुलाया है समझ में कुछ नहीं आता |
हुई हैं बंद सब राहें नहीं हलचल कहीं लगती,
नया मंजर दिखाया है समझ में कुछ नहीं आता |
धरा पर बेखबर निशिदिन कई बलवान लोगों का ,
अहं क्या अब दबाया है समझ में कुछ नहीं आता |
बनाकर दूरियाँ रिश्ते मचलते हर तरफ जग में,
निरंतर खौफ छाया है समझ में कुछ नहीं आता |
04
यह भी जीवन है
हर ऋतु-मौसम में सड़कों पर
सोते हैं जीवनभर,
किसी भाँति निज उदरपूर्ति वे
प्रतिदिन लेते हैं कर,
सदा प्रफुल्लित ,शांत सहज ही
लगता उनका मन है,
यह भी जीवन है |
नहीं शिकायत कभी किसी से
नहीं भाग्य पर रोना,
अर्द्धनग्न वे नहीं बिछौना
धरती पर है सोना,
कोई छोटा –बड़ा नहीं है
नहीं धनी –निर्धन है ,
यह भी जीवन है |
लेते हैं भरपूर नींद वे
रहते सदा निरोगी ,
सुख –दुख ,हर्ष –विषाद –मुक्त वे
लगते असली योगी
आने वाले कल की कुछ भी
उन्हें नहीं उलझन है,
यह भी जीवन है |
05
दोहे
याद नहीं कर्तव्य है दिखता है अधिकार |
लोग अनागत पर यहाँ ,करते नहीं विचार ||
चलते नेता हैं सभी ,सदा स्वार्थ की राह |
नहीं किसी को देश की, है कुछ भी परवाह ||
तड़प रहे हैं भूख से ,जाने कितने लोग |
बना रहेगा देश में,कब तक यह दुर्योग ?
लेकिन हैं कुछ लोग तो, आज बहुत धनवान |
कहलाता किस हेतु है ,अपना देश महान ?
कुर्सी की ही दौड़ है ,भारत में हर ओर |
नाव मध्य में है फँसी,दूर उदधि का छोर ||
नेताओं का तनिक भी ,रहा नहीं विश्वास |
हो पाएगा देश का ,ऐसे नहीं विकास ||
शांति और सद्भावना ,होने लगी विलुप्त |
जन-मानस की चेतना,पड़ी हुई है सुप्त ||
महंगाई के सामने ,नतमस्तक है देश |
साधन जुट पाते नहीं ,बढ़ता जाता क्लेश ||
देवीप्रसाद गौड़
शिल्प घनाक्षरी।(१६+१५)
1.
वीरों की फसल उगती हो जिस धरती पै,
मान सिंह जैसों को दफन कर दीजिए।
शकुनि दिला रहे हैं याद महा भारत की,
घर-घर इनको कफन धर दीजिए।
राम नाम से सुशोभित हो चाहे कोई भक्त,
विभीषण भेद का शमन कर दीजिए।
बीन-बीन कर सब देश में से गद्दारोंं को,
अखंडता के यज्ञ में हवन कर दीजिए।
धर्मराज वाले देश में हो धर्म का ही राज,
जुए में न किसी द्रोपदी की हार चाहिए।
सिसकते हों प्राण बांण पै स्वदेश के लिए,
गंगा के सुपुत्र भीष्म जैसा प्यार चाहिए।
गद्दी के लिए जो घोलते हैं विष कौरवों को,
अब देश में गद्दार का करार चाहिए।
जाति-पाँँति की जुगाड़ में देश जाइ भाड़ में,
इनको तो बस एक सरकार चाहिए।
2.
चक्रधारी बनवारी द्वारिकेश की धरा पै,
धीर वीर पुरुषों की आन -बान चाहिए।
सर-सरिता से दूध की उफनती हो बाढ़,
हँसता सा मुझे मेरा हिन्दुस्तान चाहिए।
घास-फूँस पै टिका हो जिंदगी का मूल्य चाहे,
हमें महाराणा जैसा स्वाभिमान चाहिए।
लिखती हो खून से अमर इतिहास ला
अभिमन्यु जैसा वीर नौजवान चाहिए।
समता के सुमन सहेजती सुहानी सुख,
मन मोहन की मंद मुसकान चाहिए।
धृतराष्ट्र पुत्र मोह में विकल सारा देश,
भक्त विदुर की नीतियों का मान चाहिए।
शबरी के द्वार बलिहार अवध का प्यार,
राजा रामजी के राज का विधान चाहिए।
ऊँचे-ऊँचे महलों की मदहोशियों के बीच,
टूटी-फूटी झोंपड़ी का अरमान चाहिए।
3.
भक्ति की अनन्य शक्ति ज्ञान की बहा दे गंग,
सत् लेखनी से लेख का बखान चाहिए।
मजहब की दीवार को जो ढा सके दिलों से,
कविरा के साथ-साथ रसखान चाहिए।
चोलियों के पीछे खोजते हैं काव्य की विधा को,
कविता की एसी कोई न दुकान चाहिए।
बनते हों जंग मे करारी तलवार छंद,
एसा कोई कवि भूषण महान चाहिए।
होता हो हरण सीता देवी का अगर कहीं,
रोकिए जटायु गिध्दराज बन जाइए।
पर उपकार धर्म पावन पुनीत कर्म
शिव के सपूत काट तन को गिराइए।
रोती हो अधीर कोई द्रौपदी विचारी यदि,
वहाँ आप नजरों को नीचे न झुकाइए।
दुशासन को न झेल पाएगा समाज आज,
काट-काट मुंड महाभारत रचाइए।
4.
देश धर्म से न प्यार जातियों के ठेकेदार,
भोली- भाली जनता बहकाना चाहते।
आग अलगाव की मशाल लिए घर-घर,
देश के अखंड भाव को जलाना चाहते।
सत्ता के नशे की मदिरा में मदहोश हुए,
लगता है ज्वालामुखी भड़काना चाहते।
जाति तंत्र के दिवाने लोकतंत्र को लजाने,
हमें जातियों के नाम पै लड़ाना चाहते।
देनी ही पड़ेगी दाद बुद्धि का कमाल देख,
सागर विशाल इसे नालियों में मोड़ते।
वोट का जनून करे राष्ट्र भावना का खून,
बाबा और गांधीजी को जातियों से जोड़ते।
जाति के मिटाने को जो मिट गए संत लोग,
उन पै ही गंदगी का कीचड़ निचोड़ते।
आजादी के प्रहरी जिसे जोड़ने में लगे रहे,
सत्ता का हथोड़ा लिए उसे आप तोड़ते।
सीमा ने संदेश सुनाया है
वर्णिक (मात्रा भार २७)
माँ के आँचल ने अंगारे उगले,
बहिनों की माँगों ने जौहर दिखलाया है।
हिलीं हिमालय की वेखौफ चोटियाँ,
जब- जब सीमा ने संदेश सुनाया है।।
यह आर्य खंड की शौर्य धरा है,
इसको तलवारों की खनक सुहाती है।
भारत में जननी जनने से पहले,
शिशु को चक्रव्यूह की कथा सुनाती है।
घास फूँस की रोटी खाकर हमने,
अपनी सरहद को दूध पिलाया है।
मातृभूमि के स्वागत में सांँसो की,
सरगम ने रण में बिगुल बजाया है।
फड़क उठे भुज दंड वीर के
अब्दुल हमीद ने इतिहास रचाया है।
हिलीं हिमालय की बे खौफ चोटि
जब-जब सीमा ने संंदेश सुनाया है।
गुरु द्रोण के शिष्य सजे भारत में
महाभारत इनका खेल तमाशा है।
भूले से भी एक बार भृकुटी तन जा
भारत का बच्चा-बच्चा दुर्वासा है।
चुन लिया स्वयम् विनाशी ,संकट को,
चीन तुझे किसने भरमाया है।
ओंधे मुँह आकर गिरा यहाँँ दुश्मन,
इतिहासों में धूल चाटता पाया है।
झाँसी वाली रानी की तलवार चमकती,
बहिनों ने चंडी रूप दिखाया है।
हिलीं हिमालय की बे खौफ चोटियांँ,
जब जब सीमा ने संदेश सुनाया है।
हर घर के आँगन में धू-धू करती,
जले होलिका ड्रैगन के सामान की।
नई-नई कब्रो में नए-नए ताबूत,
सजा दें मित्रों चाइना के पहचान की
यह जागीर तुम्हारे नहीं बाप की
पी.ओ.के में अपना बाजार सजाया है
गद्दारों के रिश्ते सदा कलंकित
साजिस के व्यापारी ने रास रचाया है।
हम भगवान राम के वंशज हैं
जिनके बांणों से सागर थर्राया है।
हिल उठीं हिमालय की बे खौफ चोटियाँ
जब जब सीमा ने संदेश सुनाया है।
धरती पर गिरता रक्त शहीदों का,
आसमान में मोहक चित्र बनाता है।
वेद मंत्र वह जन्म-जन्म का सिद्ध
तपस्वी क्षण में ध्रुव तारा बन जाता है।
वह राष्ट्र प्रेम की पावन गंगा,
इतिहासों ने तट पर दीप जलाया है
बन गया युगों की अमर कहान
जन-जन को जीने का दस्तूर सिखाया है।
यह सुखदेव भगत की धरती है,
जिसने पत्थर में पेड़ उगाया है।
हिलीं हिमालय की बे खौफ चोटियाँ,
जब जब सीमा ने संदेश सुनाया है।
अन्य कविताएँ
घनक्षरी (१६+१५)
बेटियाँ
1.
आओ बेटियाँ पढ़ाइए बेटियाँ बचाइए,
चीख-चीख कर द्वारा-द्वार पै सुनाइए।
षणयंत्र से प्रतीत हो रहे हैं बोल सब,
आदर्श के जनाजे बाजार को सजाइए।
सफेद कोट में कसाई कन्याओं की कट्टियाँ,
बेटियों से प्यार है तो रोक के दिखाइए।
बेटियों ने बेटियों की बोटी- बोटी काट डाल
हो सके तो बेटियों से बेटी को बचाइए।
2.
करें बार बार-बार धारदार हथियार,
बेटियों के भ्रूण मूक आह से पुकारते।
धर्म और शर्म त्याग किए जो कुकर्म कर्
वे न कभी पाप और पुण्य को विचारते।
जन्म जन्म के शाप पाले पापियों ने पाप,
पाप की पिटारी पापी पाप को दुलारते।
गर्भ में चलाते खंग हत्यारों के देखो रंग,
नाच- नाच कन्याओं की आरती उतारते।
3.
दहेज़
घर- घर में दहेज के व्यापारी हैं भिखारी,
बोलो फिर क्यों दहेज़ अभिशाप हो गया।
बेटियों की शादी लोभी ज्ञान के कपाट खुले,
दानव दहेज दुनियां में पाप होगया।
जहर उगलता है रिश्तो को निगलता
अच्छा खासा आदमी था काला सांँप हो गया।
लाड़िलों की शादी में शैतान का मुखौटा नाचे
लोभियों का लोभ पाप का भी बाप होगया।
4.
दानव के स्वागत में मानव बजाते ताली
ठोक-ठोक पीठ मित्र हौसला बढ़ाते हैं।
कन्या है गरीब की न देने को दहेज मिला,
ताली पीट-पीट कर खिल्लियाँ उड़ाते हैं।
वाह -वाह रे समाज की सफल सुधारको,
चित्त और पट्ट रंग अपना चढ़ाते हैं।
बैठे जिस डाल पर काटते उसी को हम,
खुद हम अपनी ही धज्जियां उड़ाते हैं।
कुमार शैलेन्द्र ‘वशिष्ट’
भारत उदय
आज दशकों से उपेक्षित हिन्द का वह भाव जगा है ,
जब एक सच्चा कर्मयोगी देशभक्ति में पगा है ।
देश देखे स्वस्थ था पर अन्तःकरण से था कुपोषित ,
जाति धर्म विभेद के कुछ स्वार्थ के तत्वों से शोषित ।
चूसते थे जोंक सा मां भारती के दिव्य लहू को ,
जन रहे थे वंश सब जहरीले और तुष्टि-पोषित ।।
ताक अवसर जब मिला तो देश को सबने ठगा है……
आज दशकों से उपेक्षित हिन्द का वह भाव जगा है ।।
नाचते थे शवों पर निर्दोष जन के क्रूर बनके ,
डालकर कुर्सी,उसे पाये बनाए, बैठे तन के ।
गूंजती थी सब दिशाएं, जिनके अट्टहास से,
है पड़े औंधे जमीं पर,हारकर एक लाश बनके ।
काल का ये चक्र हुआ नहीं किसी का सगा है….
आज दशकों से उपेक्षित हिन्द का वह भाव जगा है ।।
है जरूरत आज सब जन भाव यह मन में विचारे ,
अपने थोड़े अंश के सहयोग से ये देश संवारे ।
कालजयी इस सभ्यता और संस्कृति को नव कलेवर
दे पुनः हम विश्वगुरु की अपनी पदवी फिर से धारें ।
फिर अखंड भारत का सपना आँखों में पलने लगा है…
आज दशकों से उपेक्षित हिन्द का वह भाव जगा है ।।
-प्रतिभा स्मृति
ऐ माँ तू मत बुलाओ , मैं आऊँगा नहीं
सरहद को छोड़ इस कदर से जाऊँगा नहीं
दुश्मन भी इसी ताक में है कब ये जाएगा
होली, दिवाली, राखी ये कब मनाएगा
मौके की वो तालाश में है जानता हूँ मैं
होली, दिवाली , राखी भी मनाऊंगा नहीं
ऐ माँ …………………………………..
सरहद को ……………………………..
हमने सुना है जद्दोजहद से हुआ आजाद
देकर के अपनी जान किये हैं हमें आवाद
उन पूर्वजों की शान कभी झुकने न दूँगा
कुर्बानियां उनकी कभी भुलाऊँगा नहीं
ऐ माँ ……………………………………
सरहद को ……………………………..।
कुं० जीतेश मिश्रा शिवांगी
आर्यवर्त
विधा-: लावणी छन्द
1.
दुनिया वालो देश की खातिर इतना तो कर जाते तुम ।
आँख उठी जब देश पे अपनी माँ की ढ़ाल बन जाते तुम ।।
धर्म का डंका पीट – पीट कर बढ़ा रहे जो अशान्ति तिमिर ।
उनके सम्मुख माँ की खातिर ज्वाला से जल जाते तुम ।।
सत्य अहिंसा और प्रेम का पग – पग भाषण देने वालों ।
खुद ही इन शब्दों ढ़ल कर शान्ति दूत बन जाते तुम ।।
माँ की ममता को धर्मवाद से छलनी करने वालों सुन लो ।
राजगुरू,भगत सिंह और हमीद के जैसे बन जाते तुम ।।
हिन्दुस्तान ये आँचल माँ का
अम्बर हिन्दी शेरों का ।
अवनी इनकी बनी गोद है
आसरा हिन्द के वीरों का ।।
दिल के टुकड़े सौंपे जिसने..
दिल के टुकड़े सौंपे जिसने,आभारी हूँ उस दाता की ।।
मिलकर सब मेरे साथ में बोलो जय हो भारत माता की ।।
सब कुछ है कुर्बान कर दिया
रहा ना अब कुछ देने को ।
जितने जाये लाल थे माँ ने
भेज दिये सब लड़ने को ।।
गर होती सन्तान और तो..
गर होती सन्तान और तो,कर देती वो भी माता की ।
मिलकर सब मेरे साथ में बोलो जय हो भारत माता की ।।
3.
आओ अपना फर्ज निभाये
अपने वतन के परचम को हम मिलकर सब ऊँचा फहराये ।
अपनी इस माटी की खातिर आओ अपना फर्ज निभाये ।।
जातिवाद का भेदभाव ना
इक दूजे में हम फैलाये ।
इक घर के ही बच्चे है हम
प्रेम अहिंसा हम अपनाये ।।
आर्यवर्त के पुत्र सभी हम आओ सबको प्रेम सीखायें ।
अपनी इस माटी की खातिर आओ अपना फर्ज निभाये ।।
घुसे हुए गद्दार जो घर में
उनका पर्दाफाश करेंगे ।
नहीं करेंगे सहन देश में
देश का कचड़ा साफ करेंगे ।।
करते जो गद्दारी देश से उनका हम अस्तित्व मिटायें ।
अपनी इस माटी की खातिर आओ अपना फर्ज निभाये ।।
देश हमारी जन्म-भूमि और
देश हमारी कर्म-भूमि है ।
इस पर संकट आने ना पाये
यही हमारी मातृभूमि है ।।
देश रखेंगे सदा सुरक्षित आओ हम सौगंध उठाये ।
अपनी इस माटी की खातिर आओ अपना फर्ज निभाये ।
आओ अपना फर्ज निभाये ।।
4.
वतन की माटी
चन्दन की खुश्बू महकी है आज वतन की माटी में ।
और फिजा भी महक उठी हो जैसे हल्दी घाटी में ।।
पश्चिम की धरती के उदय का आज यहाँ पर जतन हुआ ।
फैली सभ्यता पश्चिमी देखो मानो अपना पतन हुआ ।।
अपनी माटी में अपनी माटी के पुष्प उगाओ तुम ।
अपनी सभ्यता क्षीण हो रही है उसकी अलख जगाओ तुम ।।
मिटा पश्चिमी गलियारों को देश का अपने नाम करो ।
दृढ़ता सी जग जाये सभ्यता दबी हुई जो माटी में ।।
और फिजा भी महक उठी हो जैसे हल्दी घाटी में ।।
बहुत वेदना सहन हो चुकी मातृभूमि की छाती पे ।
अब सब मिल अलगार करो तुम छुपे हुए इन घाती पर ।।
पर्वत से उठ धूमिल कर दो देश के इन कुलघाती को ।
गद्दारों के पास भेज दो भगवा धारी पाती को ।।
सिन्दूरी सी रंगी हुई है लहू वीर का अर्पित कर ।
अंगारों से रचित व्यथा है ध्येय वीर का वर्णित कर ।।
ज्वाला सी अब धधक उठी है हिन्द वीर की छाती में ।
और फिजा भी महक उठी हो जैसे हल्दी घाटी में ।।
5.
भारती की आरती
विधा-: लावणी छन्द
शोलों का उबाल मात ।
छन्द में उतारूँगी ।।
पल पल गीतों में माँ ।
तुझे ही पुकारूँगी ।।
जब जब उठे स्याही ।
आता बस नाम तेरा ।।
कर गुणों का बखान ।
तेरे रूप को निखारूँगी ।।
होेते बलिदान है जो ।
तेरे लिए लाल तेरे ।।
लेखनी में उनको मैं ।
सदा ही सजाऊँगी ।।
धन्य हुए लाल तेरे ।
पाया है जो नेह तेरा ।।
करके प्रणाम माँ मैं ।
शीश को झुकाऊँगी ।।
अन्य कविताएं
तुम समझों नयनों की भाषा
1
समझा मैं सकी ना तुम्हें कभी ।
मेरे दिल की जो परिभाषा ।।
तुम प्रेम नगर के वासी हो ।
तुम समझों नयनों की भाषा ।।
तुम प्रेम रूप हो चितवन के ।
चंचल मयूर वृंदावन के ।।
क्या तुमको और कहूँ प्रियतम ।
तुम तो हर मन की अभिलाषा ।।
तुम प्रेम नगर के वासी हो ।
तुम समझों नयनों की भाषा ।।
है तुम्हें देख ये हृदय खिलता ।
ज्यों धरा गगन से मिल उठता ।।
ये हृदय भी तुमसे मिल जाये ।
जागी हिय में ये जिज्ञासा ।।
तुम प्रेम नगर के वासी हो ।
तुम समझों नयनों की भाषा ।।
ये हृदय खोजता था उसको ।
आता हो नयन मिलन जिसको ।।
हर कोई शब्द समझता है ।
बस इक तुमसे ही है आशा ।।
तुम प्रेम नगर के वासी हो ।
तुम समझों नयनों की भाषा ।।
2
कश्मकश
बड़ी कश्मकश में यूँ डाला है मुझको ।
तेरी चाहतों ने सम्भाला है मुझको ।।
निगाहें उठा के वो जब देखता है ।
मोहब्बत की राहों में फिर रोकता है ।।
नजर में छुपाये है चाहते वो इतनी ।
जिधर देखता है मुझे देखता है ।।
महज दिल्लगी का असर है ये उस पे या चाहत ने सच में ही पाला है उसको ।
बड़ी कश्मकश में यूँ डाला है मुझको ।।
हूँ मैं कश्मकश में बताऊँ भी कैसे ।
ये उलझन मैं अपनी छुपाऊँ भी कैसे ।।
समझ ही ना पायी जिसे अब तलक खुद ।
वो चाहत मैं तुमसे जताऊँ भी कैसे ।।
मैं बनकर के धागा लिपट सी गयी हूँ बनाया मोहब्बत की माला है तुमको ।
बड़ी कश्मकश में यूँ डाला है मुझको ।।
जो चाहत से भरकर मुझे देखते हो ।
बताओ जरा मुझमें क्या देखते हो ।।
हुआ गुम भला दिल तुम्हारा क्या मुझमें ।
या आँखों को तुम अपनी बस सेंकते हो ।।
सुनो ! इश्क मुझको जरा माफ कर दो बड़ी मुश्किलों से निकाला है तुमको ।
बड़ी कश्मकश में यूँ डाला है मुझको ।।
3
प्रेम
तुम्हारे प्रेम में खोकर है खुद को पा लिया मैंने ।
हृदय कणिका बनी तेरी
हृदय जब प्रेम में डूबा ।
लगी तट से मेरी नैय्या
भंवर बन्धन का जब टूटा ।।
तेरे इस प्रेम सागर में, डुबो खुद को लिया मैंने ।
तुम्हारे प्रेम में खोकर, है खुद को पा लिया मैंने ।।
कहीं बैठे अटारी पर
विहग जोडे को देखा जो ।
सुनिर्मित प्रेम मूरत में
बनायी प्रेम रेखा को ।।
सुनो ! प्रियतम प्रेम भूमि में, खुद को बो लिया मैंने ।
तुम्हारे प्रेम में खोकर है खुद को पा लिया मैंने ।।
जगी जो भावनाएं हैं
सिमट इनमें ना जाऊँ मैं ।
तुम्हारे प्रेम में डूबी
तुम्हीं में खुद को पाऊँ मैं ।।
तेरी उभरी अप्रतिम छवि में , है खुद को खो दिया मैंने ।
तुम्हारे प्रेम में खोकर, है खुद को पा लिया मैंने ।।
4.
सावन एवं वर्षा ऋतु
सावन की मधुरिम सी,मनभावन ऋतु आयी ।
करो स्वागत इस ऋतु का,ये बन के घटा छायी ।।
है नाचे मयूरा वन ।
हर्षित होता उपवन….
हर्षित होता उपवन ।।
झूलन को श्याम के संग,श्यामा मधुबन आयीं ।।
करो स्वागत इस ऋतु का,ये बन के घटा छायी ।।
शीतल सी फुहारें हैं ।
करती हैं शैतानी….
करती हैं शैतानी ।।
शिवा झूम उठी शिव संग,हरियाली हर्षायी ।।
करो स्वागत इस ऋतु का,ये बन के घटा छायी ।।
चहूँ ओर हरित उपवन ।
रिमझिम मोहे ये मन ।।
रिमझिम मोहे ये मन……
अभिनन्दन इस ऋतु का,खुशियाँ भर भर लायी ।।
सावन की मधुरिम सी,मनभावन ऋतु आयी ।
करो स्वागत इस ऋतु का,ये बन के घटा छायी ।।
5.
सावन
वजह कुछ तो है जो ऐसे..
घटा झम झम सी बरसी है ।
यूँ लगता है कि धरती भी ..
मिलन को कबसे तरसी है ।।
है जल आधार जीवन का ।
ये साँसें माला जपती है ।।
परेशाँ हो रहा इन्साँ ……
संग धरती भी तपती है ।।
रहा बस इंतजार बारिश का ।
कभी जो खुलके बरसी है ।।
यूँ लगता है कि धरती भी ..
मिलन को कबसे तरसी है ।।
हुआ है आगमन अब तो ।
हरित शुभ मन के भावन का ।।स्वागत भी कर रहे है पर्ण पल्लव ।
धरा संग पुष्प सावन का ।।
वो जिसके आने से खुशियाँ ।
कणों कण बिखरी हर्षीं है ।।
यूँ लगता है कि धरती भी ..
मिलन को कबसे तरसी है ।।
ये सावन की जो ऋतु आयी ।
हृदय में प्रेम भरता है ।।
हर इक प्राणी हर इक प्राणी से ।
अनन्तम् प्रेम करता है ।।
उमंग सावन की जो है वो कहो
कैसे कहूँ तुमसे……
हुई है प्रेम की वर्षा गयी वसुधा भी
सज सी है ।।
यूँ लगता है कि धरती भी ..
मिलन को कबसे तरसी है ।।
नंदलालमणि त्रिपाठी पीताम्बर
1.
जननी जन्म भूमि का
जीवन यह उधार ।
माँ भारती की सेवा मे
जीना मारना जीवन का
परम् सत्य सत्कार।।
माँ के चरणों में शीश
चढाऊँ पाऊं जनम जीतनी बार
माँ का स्वाभिमान तिरंगा
कफ़न हमारा सद्कर्मो
का सौभाग्य।।
आँख दिखाए जो भी
माँ को शान में करे गुस्तगी
चाहे जो भी हो चाहे जितना भी
ताकतवर हो रक्त से शत्रु
का तर्पण करूँ मैं बारम्बार।।
मेरे पूर्वज है राम ,कृष्ण,
परशुराम अन्यायी अत्याचारी के
काल।
धर्म युद्ध का कुरुक्षेत्र है मेरा
मंदिर ,मस्जिद ,गुरुद्वारा ,चर्च
धर्म युद्ध लिये जीवन का कर्म
क्षेत्र कुरुक्षेत्र का मैदान।।
अर्जुन युवा को ओज माँ
भारती की हर संतान।
गांडीव की प्रत्यंचा पंचजनन्य
का शंख नाद।।
माँ भारती के नौजवान की
गर्जना से आ जाए भूचाल
विष्णु गुप्त चाणक्य चन्द्रगुप्त
अखंड माँ भारती के आँचल के
संग्राम संकल्प युग प्रेरणा
स्वाभिमान।।
मेरी माँ करुणा ममता की सागर
गागर अमन प्रेम शांति का पाठ
पढ़ाया अमन प्रेम शांति के दुश्मन का काल ढाल का शत्र
शात्र सिखाया।।
अपने लालन पालन के पल
प्रतिपल में मान सम्मान से
जीना मारना सिखलाया।।
माँ भारती की आरती पूजा
बंदन पल प्रहर सुबह और शाम।
दिन और रात करते वीर सपूत
वीरों को जनने वाली संस्कार
संस्कृति की शिक्षा देने वाली
माँ भारती के लिये पल प्रति न्योछावर करने को प्राण।।
माँ भारती के वीर सपूतों के
ना जाने ही कितने नाम
हंसते हंसते माँ की चरणों में
कर दिया खुद के प्राणों का बलिदान।।
त्याग तपश्या की भूमि की है यही पुकार उठो मेरे
बीर सपूतो नौजवान।
आज मांगती हूँ मैं तुमसे
देती हूँ कस्मे ।।
लाड़ प्यार
ना हो मेरा बेकार
सीमाओं पे आक्रांता ने दी
है तुमको ललकार ।
भरना होगा तुमको हुंकार
गर्जना नहीं सिर्फ करना होगा पौरुषता
पराक्रम से आक्रांता का
मान मर्दन संघार ।।
मातृभूमि माँ भारती की
मर्यादा का रखना होगा मान।
अक्क्षुण अभ्यय निर्भय निर्विकार
माँ भारती मातृभूमि के तुम
दुलार नौजवान।।
स्वाभिमान तिरंगा का सर पे बांधे
सफा पगड़ी जीवन मूल्यों उद्देश्यों का कफ़न तिरंगा साथ।।
जय माँ भारती जननी जन्म भूमि
के बंदन अभिनन्दन की सांसे धड़कन प्राण।।
2.
माँ भारती अपने वीर सपूतों को
नहीं बिसारती ।
पल प्रहर सुबह शाम दिन रात
समय के दर्पण में निहारती।।
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य अभ्युदय
काल या मौर्य मुकुट चंद्र गुप्त
का हो पुरुषार्थ।
पुरू पराक्रम हो या चौहान
पृथ्वी का शब्द भेदी वाण।।
भारत माता अपने बीर सपूतों
व्याख्याता प्रेरक प्रेरणा की अधिष्ठाता की दर्पण प्राण।।
संग्राम शेर राणा सांगा के सैकड़ो
घाव खुद के आँचल दामन की दमक
मराठा आन वान सम्मान
शिवा जगदम्ब की युद्ध निति
का पथ विजय छाँव।।
मेवाड़ मुकुट महाराणा
प्रतिज्ञा घास की रोटी अवनि
सैय्या का परम प्रताप ।।
मंगल पाण्डेय गुलामी की
जंजीरों में जकड़ी माँ भारती
का जाबांज सपूत आजादी की हुंकार।।
खूब लड़ी मर्दानी झांसी वाली
शेरनी जीते जी हार न मानी। बुंदेलों के जज्बे ताकत हस्ती
की हिम्मत रानी लक्ष्मी बाई नारी। माँ भारती के स्वाभिमान
की गौरव नारी।।
तात्या टोपे चाणक्य वरदायी
रामकृष्ण परमहंश स्वामी सन्यासी विवेका माँ भारती
के संकल्प साध्य के आराधक
ज्ञानी।।
सूर कबीर तुलसी मीरा केशव
भक्ति शक्ति के भारत माता के
सच्चे सेवक ।।
महत्मा की आत्मा माँ भारती की
ज्योति चमक सत्य अहिंशा के शौर्य सूर्य की प्रथम पहल।।
युवा क्रांति की चिंगारी खुदीराम हेमू कालानी क्रांति की
चिंगारी के ज्वलित प्रज्वलित मशाल जलियावाला बाग़।
दैत्य दानव डॉयर का दानवीय
संघार लाठियां टूटी हिम्मत ना
टुटा ललकार का लाला लाजपत
राय।।
सरदार भगत सिंह बटुकेश्वर असफकुल्लाह खान चंद्रशेखर
आजाद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल निति नियत की ललकार।।
खून और आजादी के रिश्तों की
पुकार नेता सुभाष।
मानव फौलाद नहीं हो सकता
मिथ्या कर दिया साबित वल्लभ
सरदार पटेल एक नाम।।
मोती की ज्योति से निकली
ज्योति जवाहर लाल।
मालवा का भिक्षु पंडित वक्ता
अधिवक्ता माँ भारती का अरमान अंदाज़।।
कुछ नाम माँ भारती के सपूत
संतानो की जिसने माँ की सेवा
जीवन वार दिया न्योवछार दिया
ना कई चिन्ता ना कोई परवाह किया।।
कारागार की फौलादी दीवारे हो या फांसी का फंदा
हँसते हँसते झेल गए झूल गए करते माँ भारती का सजदा।।
माँ भारती का हर बीर सपूत
माँ के माँ के इतिहास का धन्य
धरोहर वर्तमान का दिग्दर्शक प्रेरक पथ प्रकाश का बैभव विश्वास।।
भारत माँ का बीर सपूत उसकी
नज़रो का नूर चाहे वक्त आईना हो
या समाज की आवाज माँ भारती
का वीर सपूत उसके आँचल दामन की चमक चमत्कार।।
3.
भारत के नौजवान
माँ भारती कर रही पुकार तुम
चौतरफा खड़ी चुनौती की आग तुम।।
जीना है तो लड़ना सीखो
कदम कदम है खतरे
त्यागो आपस के बैर भाव
युवा तेज हो युवा ओज तुम
बनाना है तुमको अंगार
देश की माटी के ललकार तुम
भारत के नौजवान तुम।।
हिम्मत की हस्ती तुम
ताकत की मस्ती तुम
शहीद की वेवा की सुनी
मांग भारत के नौजावन के
अस्तित्व पर प्रहार
सरहद पर जान गवांते
शहीद की अंतिम इच्छा
राष्ट्र के गौरव अस्मत की
खातिर अग्नि परीक्षा में
सदैव तैयार तुम।।
साँसों की गर्मी से तेरे
चाहे जो भी हो दुश्मन
जाएगा हार
वर्तमान तुम ,
भविष्य निर्धारक तुम
गौरव शाली अतीत के हो तुम
कर्णधार भारत के नौजवान तुम।।
जीना है तो उद्देश्यों के पथ
पर द्रढ़ता से चलना सीखो
तूफानों से लड़ना सीखो
खुद की मर्यादा को अक्षुण रखना सीखो
माँ भारती की तुम संतान भारत
के नौजवान तुम।।
डिगा सके तुमको तेरे पथ से
कोई भी समर्थ सक्षम नहीं
अडिग चट्टान तुम् भारत के
नौजवान तुम।।
दीपक की लौ तुम
प्रज्वलित मशाल मिशाल
शौर्य सूर्य तुम बदलते काल
की चाल भारत के नौजवान
तुम।।
गीदड़ कैसे हो सकते
बाज़ पंख परवाज़ तुम
हुंकार से डोले जमीं आसमान
तेरे कदमों की आहट दुनियां में
तेरी मकसद मंजिल की आवाज तुम भारत के नौजवान तुम।।
गर्जना से तेरी निकले छद्म धोखे
का प्राण
नौजवान तुम कर्णधार तुम
समय काल के आधार तुम
निति नियत निर्माण तुम
भारत के नौजवान तुम।।
साहस के सिंघनाद तुम
गौरव शैली राष्ट्र के विजयी विजेता पाँचजनन्य का शंख नाद
तुम संग्रामों के विकट विकराल
तुम भारत के नौजवान तुम।।
युग बैभव दृष्ट्री सक्षम समर्थ
तेर हद हस्ती की दुनियां
पराक्रम पुरषार्थ तुम जो चाहो
लिख दो इबारत वक्त के
हताक्षर तुम भारत के नौजवान तुम।।
शोला शूल तीर तलवार त्रिशूल तुम मझदार तुम पतवार तुम
कश्ती और किनारा तुम
सुबह शाम दिन रात युग वक्त
व्यवहार तुम।।
पीछे कभी देखा ही नहीं
आगे बढ़ते रहना शिखर
का नाज़ तुम हौसलों की
उड़ान तुम भारत के नौजवान तुम।।
आँख दिखाए कोई करते नहीं
स्वीकार तुम ऊर्जा उतसाह तुम
उमंग उल्लास तुम जग के अंधेरों
को चीरते दुनिया का नव प्रकाश
तुम भातस्त नौजवान तुम।
4
सभल जाओ ,सुधर जाओ
नहीं तो देंगे तुमको चीर
विषधर तुम विष बीज
मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।
फन कुचल देंगे तुम्हारी हस्ती
मिटा देंगे मानवता के दुश्मन दानव चीन धूर्त ,पाखंडी,मक्कार
तेरी दानवता मक्कारी का
विश्व बंधू देगा जबाब गिन गिन।
मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।
सन् बासठ में धोखा दिया
छल छद्म की चाल चला
भूले नहीं हम तेरी कुटिल
कुटिलता को भारत हम सौम्य
शालीन।
मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।
मेरी बाज़ारों का तू बड़ा व्यपारी
तेरी हर उत्पाद का वहिष्कार करेंगे
तेरा मर्दन मान करेंगे तुझसे
दो दो हाथ करेंगे लड़ेंगे तेरा
सत्या नाश करेंगे।
मिटा कर रख देंगें तुझे चीन।।
तू चालाक लोमड़ी दोस्ती
का स्वांग रचता पीठ में खंजर
भोकता ।
तेरी निति ,नियत, कायर
दुष्टों की तेरी हर कुटिल ,चाल,
जाल को काट देंगे तेरी औकात
का किनारा तीर।
मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।
तूने हमारे पड़ोसी नेपाल को
दुश्मनी की राह दिखाई है।
निगल जाएगा तू भोले भाले
नेपाल ,नेपाली को तेरी मंसा
नहीं जानता गर नेपाल।
मिट जाएगा तेरे पाश में
नहीं रहेगा विश्व नक्शे में नेपाल
भोले भाले नेपाली को शायद
नहीं आभास।
पूरी नहीं होने देंगे तेरी कोइ चाल
चाहे जीतनी चाले चल ले, तेरा
होने वाला है बुरा हाल नीच।
मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।
तू कितना दुष्ट दमनकारी अपने
ही लोगो का धेन्चौक पर करता
है संघार, तू विघटन कारी, तू
अत्याचारी ,होने वाला है तेरा
अब सर्वनाश ।
उछल कूद तू
चाहे जितना कर ले चीन
मिटाकर रख देंगे तुझे चीन।।
तू धमकी देता चेतावनी सुन ले
कान खोलकर तू है अब बेमोल कौड़ी का तीन।
मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।
भारत के हर सैनिक की शहादत
का हिसाब करेंगे तेरे टुकड़े हज़ार
करेंगे नही बायेगा तू गिन गिन।
मिटाकर रख देंगे तुझे चीन।।
हर भारतवासी का खून है
खौला अपने हर शहीद जवान
का बदला एक एक पे बीस।
मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।
ललकार सुन ले फुंकार तू अपनी
बंद कर देंगे तुझे हम कटपीस।
मिटाकर रख देंगे तुझे हम चीन।।
हम कायर कमजोर नहीं
हम तुझ जैसा धोखा और
फरेब नहीं ।
हम भारत का भारतवासी
जो आँख दिखाए आँख
निकाले जो दे चुनौती
उसका काल बने सभल जाओं अब चीन।
मिटाकर रख देंगे हम चीन।।
कर तू आजमाइस जोर नहीं
पछतायेगा कही का ना तू
रह जाएगा होगा तू गमगीन।
मिटा कर रख देंगे तुझे हम
चीन।।
प्रेम शांति का बुद्ध सिद्धांत
अहिंसा परमो धर्मः कि आवाज
अवतार से करता है तू रार
तेरी अब खैर नहीं तरसेगा
मरेगा बिन पानी के चीन।
मिटा कर रख देंगे हम
चीन।।
विश्व लड़ रहा जंग कोरोना से
तेरी ही शातिर खुराफात की
देंन जितना तू गिरता जाएगा
उतना तू पछतायेगा सभल नहीं
पायेगा चीन ।
मिटा कर रख देंगे तुझे चीन।।
5
माँ भारती का वरदान भारत माता की बात सुनाता हूँ।।
भारत के वीर सपूतो, ऋषियो ,
मुनियों कि बात बताता हूँ।
कुरुक्षेत्र के महायुद्ध में कृष्णा
का गीता उपदेश सुनाता हूँ।।
सत्यवती मुनि परासर के वेदब्यास उतपत्ति बताता हूँ।
देव ब्रत का जन्म गंगा का जाना
भीष्म प्रतिज्ञा सुनाता हूँ।।
भारत माता कि संतान माँ भारती
का वरदान भारत कि बात सुनाता हूँ।।
सूर्यपुत्र का शौर्य दानवीर कर्ण
कि मित्रता दुर्योधन की भारत
में मित्र धर्म कृष्ण सुदामा बताता हूँ ।
लाक्षा गृह का षड्यंत्र ,कृष्णा का बैभव विराट रूप द्रोण, अर्जुन, घटोत्कच ,बरबरिक ,वीरों के
महाभारत के महायुद्ध कि
बात बताता हूँ।।
भारत माता कि संतान माँ भारती का वरदान भारत कि बात बताता हूँ।।
परक्षित ,जनमेजय ,विक्रमादित्य की शौर्य गाथा मै गाता हूँ।
आशा और निराशा में अखंड भारत की कल्पना के सत्य सत्यार्थ विष्णु गुप्त ,चाणक्य
मौर्य सिंह चंद्र गुप्त का शंख
नाद सुनाता हूँ ।।
भारत माता कि संतान माँ भारती
का वरदान भारत कि बात बताता हूँ।।
महाबीर, सिद्धार्थ बुद्ध ,अशोक
महान के गौरव का इतिहास
भारत माता वर्तमान।
पन्ना धाय का त्याग बलिदान ,राणा सांगा के अस्सी घाव ,महाराणा का
मेवाड़ सा संग्राम बताता हूँ।।
पद्मावती का जौहर, खूब लड़ी मर्दांनी कि शोहरत ।
रानी दुर्गावती,
दुर्गा रणचंडी इंदिरा भारत की नारी कि मर्यादा मर्म सुनाता हूँ ।।
भारत माता कि संतान माँ भारती
का वरदान भारत कि बात बताता हूँ।।।
स्वामी विवेकानंद के परमहंस, हुलसी के तुलसी ,कबीर ,रहीम, केशव ,सूर, मीरा कि भक्ति की
शक्ति बताता हूँ।
जगदम्ब शिवा का खौफ मुगलो
का टूटा दम्भ शिवा युद्ध कौशल का मराठा छत्रप का
पौरष पुरुषार्थ बताता हूँ।।
भारत माता कि संतान माँ भारती का वरदान भारत कि बात बताता हूँ।।
आजादी के दीवानों परवानो लाला
लाजपत ,भगत सिंह, सुकदेव, विस्मिल ,खुदीराम ,चंद्रशेखर आजाद ,।
बटुकेश्वर ,राजेन्द्र लाहिड़ी,
अस्फाकुल्लाह ना जाने कितने नाम ।
नौजवानो के बलिदानो की
आजादी का राग सुनाता हूँ ।।
भारत माता कि संतान माँ भारती का वरदान भारत कि बात सुनाता हूँ।
गुरुओ कि वाणी का पंजाब सवा लाख से एक लडाऊ गुरु गोविन्द
सिंह का अंदाज़।
गुरुओं का त्याग
बलिदान गुरुवाणी का सन्देश सुनाता हूँ ।।
भारत माता कि संतान माँ भारती का वरदान भारत कि बात सुनाता हूँ।।
राम नाम मर्यादा का पुरुषोत्तम
कि पितृ भक्ति रावण राम युद्ध
का प्रसंग सुनाता हूँ।।
भारत माता कि संतान माँ भारती का वरदान भारत कि गौरव गाथा
महान मै गाता हूँ वर्तमान में भारत कि संतान नवजवान को जगाता हूँ।।
सुशीला जोशी ‘विद्योत्तमा’
गीतिका
1.
तुम बताओ वे बातें लिखूँ न लिखूँ ।
मौत से मुलाकातें लिखूँ न लिखूँ ।।
रात सुबकती रही चाँद था ढल रहा
जगती हुई वे रातें लिखूँ न लिखूँ ।।
गोलियाँ चल रहीं खून था बह रहा
उनको वादा निभाते लिखूँ न लिखूँ ।।
हाथ मे बन्दूक आँखे दुश्मन पे थी
जान उनको गंवाते लिखूँ न लिखूँ ।।
एक एक दुश्मन पर वार करते रहे
खून उनको बहाते लिखूँ न लिखूँ ।।
प्रेयसी पत्नी मैया की यादें बसी
उनसे नजरें चुराते लिखूँ न लिखूँ ।।
वर्दी उन पर कसी मौत थी बन रही
वीरता को लुभाते लिखूँ न लिखूँ ।।
छलनी छलनी हुआ था उनका बदन
फिर भी फर्ज को निभाते लिखूँ न लिखूँ ।।
2.
न भूलोगे तुम अपनी नफासत को कसम खाओ ।
न भूलोगे गद्दारों की बगावत को कसम खाओ ।।
नही कोई कमी है मुल्क में ये जान लो तुम सब
न भूलोगे जवानों की शराफत को कसम खाओ ।।
फँसे लालच में कोई मुल्क जब आँखे दिखाए तो
न भूलोगे दुश्मनो की अदावत को कसम खाओ ।।
किये कुर्बान कितने ही अपने लाल भारत ने
न भूलोगे आजादी की आदत को कसम खाओ ।।
तुम जिस मुल्क में रहते हो तुम जिसे देश मे पलते
न भूलोगे कभी उसकी इबादत को कसम खाओ ।।
हमारे पास सबकुछ है किसी से कम नही हैं हम
न भूलोगे तुम अपनी विरासत को कसम खाओ ।।
मुल्क के जंगबाजो ने जान अपनी लुटाई थी
न भूलोगे कभी उनकी फरागत को कसम खाओ ।।
ख़ुदा उनकी मदद करता जो खुद अपनी किया करते
न भूलोगे कभी तुम इस कहावत को कसम खाओ ।।