मन की खिड़की
– सिद्धेश्वर नज़्में ••••••••••••••••• मन की खिड़की ~~~~~~~~~~~~~~ कैसी प्रजा और कैसा है राजा ? शव यात्रा में…
– सिद्धेश्वर नज़्में ••••••••••••••••• मन की खिड़की ~~~~~~~~~~~~~~ कैसी प्रजा और कैसा है राजा ? शव यात्रा में…
– पुष्पा जमुआर बेटी है वरदान माँ-बाप की तक़दीर भाई की इज्ज़त घर – आँगन की पायल पर…
– मेहता नगेन्द्र पानी का पानी बना रहे सोचिए कैसे दरिया में पानी सदा रहे सोचिए कैसे…
– जहान भारती अशोक मैंने देखा नहीं… दुबारा सनम, तुमसा हसीं… औ’ प्यारा सनम। जमीं तो जमीं… आसमां…
– माला वर्मा खुले आकाश के नीचे भींग रही हूँ पानी में साथ मेरे वृक्ष और लतरें हो…
– डॉ. सच्चिदानन्द प्रेमी नाच रहे सपने जीवन के कब होगा मधुप्रात? बीत रही यह रात ! निशा…
– विद्या शंकर विद्यार्थी जा रहे हैं हम गांँव की ओर, शहर छोड़कर मोटर गाड़ी की धूल धुआँ जहर…
– समीर उपाध्याय ‘ललित’ मायूस क्यों होता है मनवा? ज़िंदगी यदि ग़म से भरी लगती है तो ख़ुशी…
– समीर उपाध्याय ‘ललित’ जीवन इतिश्री नहीं, अथश्री है। जीवन में आ सकते हैं सूर्यास्त के क्षण, किंतु…
– त्रिलोक सिंह ठकुरेला पेड़ बहुत ही हितकारी हैं, आओ, पेड़ लगायें। स्वच्छ वायु, फल, फूल, दवाएँ हम बदले में…
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