मन की व्यथा
– विशाल लोधी (भरत जी का निषाद राज से जब जंगल में मिलन हुआ) का कहिं राजन्…
– विशाल लोधी (भरत जी का निषाद राज से जब जंगल में मिलन हुआ) का कहिं राजन्…
– डॉ. राकेश जोशी गजलें 1. अगर जंगल में रहना है तो डर क्या है तेरा है हाथ सर…
– गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण” चलने से पहले तय कर ले, दुर्गम पथ है अँधियारों का। हे वीर व्रती…
– सतीश “बब्बा” सिर्फ सात दिनों का खेला, उसी में लगता है दुनिया का मेला, घोड़ा, हाथी, मिठाई और झूला,…
– राजपाल सिंह गुलिया ग़ज़ल पास है जो वो गँवाना ठीक है क्या, दाँव पर खुद को लगाना…
– प्रो.(डॉ) शरद नारायण खरे रोदन करती आज दिशाएं, मौसम पर पहरे हैं । अपनों ने जो…
रणछोड़ रेबारी सेना में नहीं थे पर सैनिक की तरह लड़े रणछोड़ शब्द सुनते ही एक नीति …
– धन्यकुमार “राज! तू अभी सोता है या मार खाना चाहता है!” उसके पिता जी का गुस्सा करना स्वाभाविक…
– आशीष आनन्द आर्य ‘इच्छित’ पिछले दो-चार दिनों में जिस तरह घर की हवाओं ने रूख बदला था,…
– राजेश तिवारी ‘मक्खन’ नर तन को पा कर मानव, यू ही बिता रहा है । क्या लक्ष्य था…