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– धन्यकुमार

 “राज! तू अभी सोता है या मार खाना चाहता है!” उसके पिता जी का गुस्सा करना स्वाभाविक था, क्योंकि रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे पर राज सो नहीं रहा था. बेटे ने कुछ भी नहीं कहा. वह खामोश कहीं देख रहा था. मैं अतिथि के रूप में गया था. कुछ अधिक बोल नहीं पाया.

रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे फिर भी राज के न सोने का कारण मैं समझ नहीं पाया. पिता जी ने उसे झल्लाते हुए कहा, “अरे मूरख कहीं का, अब नहीं सोएगा तो मार ही खाएगा तू.”

राज शांत ही खड़ा रहा. उसके पिता क्रोधित होकर उसकी ओर दरवाजे के पास चले गए. देखा, तो वहाँ एक बिल्ली नजर आई. वह कप में मुँह डुबोए आँखें बंद कर दूध पीती नजर आई. अचानक राज पीछे वाले दरवाजे से माँ के पास जाकर कहने लगा, “माँ! बाबा से कह दो न, मुझे गुस्सा न करें!”

“क्यों रे, बाहर क्या किया तूने कि बाबा तुझे गुस्सा करेंगे!”

” कुछ नहीं माँ! मुझे बाहर बिल्ली नजर आई तो मैं अपने हिस्से का दूध उसे दे रहा था. बाबा आ गए तो मैं घबराकर भीतर आ गया. मैया प्लीज! बाबा से कहो न कि उसे न मारे. मैंने उसके लिए घर से कुछ अलग दूध नहीं लिया. मेरे हिस्से जो दूध दिया था वही उसे पीने दिया है. पड़ोस के घर से वह आई है. उसने परसो ही नजीर चाचा के घर में पिल्लों को जन्म दिया है.”

माँ और बेटे का बोलना जारी था. उनका संवाद सुनते ही पिता का गुस्सा शांत हो गया.

- जिनपाल बिराजदार, सोलापुर, महाराष्ट्र 9423330737

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