– डॉ.जियाउर रहमान जाफरी
पुस्तक: मेरी सौ बाल कविताएं ( बाल काव्य संग्रह )
कवि: डॉ. अभिषेक कुमार
प्रकाशन वर्ष: 2021
मूल्यम: 199/-
पृष्ठ: 126
प्रकाशन: जिज्ञासा प्रकाशन, गाजियाबाद
बिहार की औद्योगिक राजधानी बेगूसराय की सर जमीन पर जो लोग पाबंदी से साहित्य सृजन कर रहे हैं, उसमें एक नाम डॉ. अभिषेक कुमार का भी है. डॉ. अभिषेक कुमार का संबंध चिकित्सा के क्षेत्र से है, लेकिन उन्होंने हिंदी गद्य -पद्य की कई विधाओं में भी पाबंदी से लेखन किया है. उनका पीडोफिलिक नागार्जुन वाली किताब तो काफी चर्चा में है.
मेरी सौ बाल कविताएं लेखक की सधः प्रकाशित कृति है, जिसे जिज्ञासा प्रकाशन गाजियाबाद ने पूरे मनोयोग से प्रकाशित किया है. इस पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह बाल कविताएं किसी कल्पना लोक में जाकर नहीं लिखी गई हैं, बल्कि स्नेहिल पुत्र रुद्रांश के जन्म पर लिखी गई पहली कविता से शनैः -शनैः बढ़ रहे रुद्रांश की तमाम क्रियाकलापों, बाल सुलभ व्यवहारों भावों- अनुभवों का इसमें सांगोपांग वर्णन किया गया है. इसलिए इस कविता की भाषा भी सहजता, सरलता, बोधगम्यता और सादापन लिए हुए हैं, जो बाल कविता के लिए आवश्यक शर्तें भी है. बाल साहित्य के बारे में कहा गया है कि बाल साहित्य बच्चों को ध्यान में रखकर लिखा गया साहित्य है. ऐसे साहित्य में बच्चे खेल -खेल और मनोरंजन के साथ जीवन की सच्चाइयों से अवगत हो जाते हैं. साथ ही उनके भाषागत कौशल का विकास भी होता है. यह बाल कविताएं और कहानियां बच्चों के जीवन पर अमिट छाप छोड़ते हैं इसलिए बचपन में पढ़ी गई उन्हें बहुत सारी कविताएं याद होती हैं. चंदा मामा से लेकर ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार, मछली जल की रानी है -जैसी कविताएं इसके उदाहरण हैं. बाल साहित्य लिखना सहज काम नहीं है क्योंकि इसमें बच्चों की उम्र, उसकी फिक्र और उसके क्रियाकलाप का ध्यान रखना होता है. इस तरह की कविता में एक ऐसे मैसेज की जरूरत होती है जो बच्चों को सच्चा ज्ञान प्रदान कर सके. डॉ. अभिषेक कुमार की बाल कविताएं इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं कि इसमें तुकांत और अतुकांत दोनों बाल कविताएं शामिल हैं . यद्यपि बच्चों के लिए छंद विहीन बाल कविताएं कम लिखी गई हैं. डॉ. कुमार की वह कविताएं जो छंद से प्रेय हैं उसमें भी संगीतात्मकता, प्रवाह और भाषाई लालित्य का पूरा ख्याल रखा गया है. संकलन में उनकी बाल कविताएं तितली से शुरू होती हैं और नई शुरुआत पर खत्म होती है. जाहिर है वह बच्चों को खूबसूरती के रास्ते से ले जाकर एक नए जीवन की तालीम देते हैं. बच्चों के लिए सबसे ज्यादा कविताएं तितली कोयल, मछली और फल फूल पर लिखी गई हैं . कवि ने भी यही किया है-
मुझको बेहद अच्छी लगती
रंग बिरंगी तितली रानी
उनकी बंदर मामा कविता में बंदर के केले खाने से लेकर बच्चों के डर जाने तक का स्वाभाविक वर्णन है. यह कविताएं पुत्र के बाल सुलभ क्रियाकलापों पर लिखी गई हैं. इसलिए इसमें बुआ के आने से दादा-दादी, चाचा-चाची के आने तक का वर्णन किया गया है, इसमें दिखाया गया है कि दादा-दादी के आने से बच्चे कैसे खिल जाते हैं. आज हम जिस एकल परिवार में रहते हैं, वहां बच्चे दादा- दादी को जान भी नहीं पाते. ऐसी स्थिति में कवि की इस कविता का मूल्य बढ़ जाता है-
मैं हूं दादा जी का
राज दुलारा
कहते मुझको
अपनी आंखों का तारा..
आज के बच्चों का परिवेश अलग है. कभी गुड्डे गुड़ियों से खेलने वाले बच्चे अब टैडी बियर से खेल रहे हैं. खाने के लिए अब उनके पास पिज्जा और बर्गर है. हाथ में मोबाइल की दुनिया है इसलिए उनके पास अनगिनत सवाल भी हैं.ये ऐसे सवाल हैं जो उसकी उम्र से काफी बड़े हैं. बच्चा कहता है-
मैं हंसता हूं तो मेरा टैडी बियर भी हंसता है
मैं रोता हूं तो मेरा टैडी बियर भी रोता है
ऐसा नहीं है कि संस्कृति पूरी तरह बदल गई है आज भी भालू वाला आता है, और उसका नाच देख कर सब मोहित हो जाते हैं तभी तो कवि कहता है-
एक मदारी गांव में आया
संग अपने एक भालू लाया ( पृष्ठ61)
आज भी मेले की रौनक बची हुई है, जिसे देखकर कवि कहता है-
सज गया ठेला
लग गया मेला( पृष्ठ88)
बच्चों की शिकायत बहुत प्यारी होती है उसका रूठना और मनाना एक अलग ही आनंद देता है.सूर के वात्सल्य वर्णन में यशोदा बालकृष्ण के रूठे हुए चेहरे देखकर मोहित हो जाती हैं. इस किताब में भी बच्चों के रूठने मनाने का वर्णन है-
एक तो दादाजी लेट से आए
दूसरा बिस्किट चॉकलेट कुछ नहीं लाए
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि डॉ. अभिषेक कुमार की लिखी गई ‘मेरी सौ बाल कविताएं ‘बाल साहित्य की दुनिया में सराही और स्वीकारी जाएगी, क्योंकि बच्चों की जरूरतों उसकी प्रवृत्तियों, बाल सुलभ चेष्टाओं, उनके क्रियाकलापों, अनुभवों,विचारों और व्यवहारों का बड़े ही मनोवैज्ञानिक ढंग से सजीव चित्रण किया गया है.
- स्नातकोत्तर हिंदी विभाग
मिर्जा गालिब कॉलेज गया, बिहार803107
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