– मनवीन कौर
मेघों की गर्जना से
आकाश गूंज उठा ।
मोती बिखरे चहुँ ओर
चितवन झूम उठा ।
छम छम पायल छनकाती,
पावस ऋतु आई ।
नृत्य करती बूँदें धरा में समाई ।
अम्बर ने भर भर मोती
धरती पर छलकाया,
हँसता मुस्कुराता, सावन फिर आया ।
नदियों में छोटे-छोटे
बुलबुले गुनगुनाने लगे
पल्लवों पर सजे
ओस बिंदु मुस्कुराने लगे ।
पुष्पों ने वर्षा संग
मिल गीत गाया,
लहलहाता झूमता फिर से सावन आया ।
पर्वत ने घाटी ने
हरित परिधान ओढ़ा,
रंग बिरंगे फूलों ने
प्रकृति का मुख मोड़ा।
घनी काली बदरी का रंग
सुरमई हो गया,
कोमल नरम दूब में
नव जीवन पिरो गया ।
नभ ने देखो प्रसन्न हो
अमृत बरसाया,
हँसता मुस्कुराता सावन फिर आया ।
माँ वसुंधरा ने
जब स्नेह से पुकारा,
बादल ने पिता व्योम को
नम्र हो निहारा ।
भाप बन
जो कभी उड़ गया था
नन्ही बूँदें बन
बरसने लगा
माँ धरा का आँचल
हरित हो लहराया,
हँसता झूमता सावन फिर आया ।
कृषकों ने बीज बोए
हंसते हुए सावन में,
अंकुरित हुए नवीन पौधे
घर के आँगन में,
वर्षा ऋतु का यह उत्सव
ख़ुशियाँ बिखरा गया,
गुमसुम शुष्क धरा को
फिर से सरसा गया ।
महकती पवन ने, चहकती पिका ने
मधुर गीत गाया,
हँसता मुस्कुराता सावन फिर से आया ।
- औरंगाबाद (महाराष्ट्र )
सावन का कोमल शब्द सौंदर्य से परिपूर्ण अत्यंत मनोहारी चित्रण !