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अलका मित्तल

 

ग़ज़ल 🥀

यकीनन वो भी समझेगा बनेगी बात सावन में
जिगर में आज उमड़े हैं बहुत जज़्बात सावन में
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करो हमसे कभी जानम मुहब्बत प्यार की बातें
बना दें इसको मिलकर हम सुहानी रात सावन में
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इसी उम्मीद पे ये दिन गुज़ारे हैं सनम मैंने
बदल जायें कभी शायद मेरे हालात सावन में


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मिटायेंगे हरिक दूरी खिलायेंगे कमल दिल का
करेंगे प्यार की ही बात हम दिन रात सावन में
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पड़े हैं खेत सब सूखे नहीं आसार अब कोई
बड़ी उम्मीद थी होगी बहुत बरसात सावन में
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चलो ‘अलका’ चले हम भी वहीं पर खूब भीगेंगे
जहाँ देगें सनम हमको कोई सौगात सावन में

❤️❤️💕💕💕💕💕❤️❤️

– मेरठ

One thought on “जज़्बात सावन में”

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