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पटना : 21/02/2022 ! ” किसी भी रचना की प्रासंगिकता इस बात पर निर्भर करती है कि उसका कथानक कितना जीवंत है और वह कैसी शैली में लिखी गई है ? एक ही घटना के कई अभिव्यक्ति या उद्देश्य हो सकते हैं ! लेकिन उसके विचार और चिंतन में नयापन और टटकापन होना चाहिये, अभिव्यक्त करने में नयापन होनी चाहिए!

भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में ऑनलाइन आयोजित फेसबुक के “अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका” में आयोजित “हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन” का संचालन करते हुए संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किये !

” लघुकथा में मौलिक चिंतन का अभाव” विषय पर विस्तार से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि “खेद का विषय है कि आज जितनी भी लघुकथाएं लिखी जा रही हैं,  उनमें से अस्सी प्रतिशत लघुकथाएं इसी दुहराव वाली स्थिति में है, यानी मौलिक चिंतन का घोर अभाव है l  आजकल लिखी जा रही अधिकांश लघुकथाओं में विचारों को अभिव्यक्त करने की मौलिकता का अभाव है l”

विषय को गंभीरता से लेते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने अपना डायरीनामा पढ़ते हुए कहा कि -”   लघुकथाकार नया हो या पुराना, उन्हें अपने सृजनकर्म  को तपस्या समझना ही होगा l उन्हें भी संख्या की अपेक्षा गुणवत्ता पर अधिक ध्यान देना होगा l  रातोंरात आकाश छूने की ख्वाहिश पर लगाम लगानी होगी l  अपने द्वारा अभ्यास की गई लघुकथाओं में से ही चुनकर लघुकथाओं को पाठकों के सामने लाना होगा l  यानि अपनी लघुकथाओं का समीक्षक खुद बनना होगा l  साथ ही साथ श्रेष्ठ लघुकथाओं के सृजन के लिए हमें लघुकथाकार बनना होगा, लघुकथा पैदा करने वाली मशीन नहीं l”

लघुकथा सम्मेलन की मुख्य अतिथि वरिष्ठ कथाकार कनक हरलालका (आसाम ) ने कहा कि-“आजकल सोशल मीडिया के विस्तार के कारण लेखकों की वृद्धि से साहित्य सरोबार हो रहा है, पर उसमें मौलिकता का कितना प्रतिशत योगदान है, यह विचारणीय है । अपने आसपास की विसंगतियों को अनुभवों में परोसने और उन्हें विषयवस्तु बनाकर साहित्य संरचना अवश्य ही मौलिक चिन्तन का आधार बन सकती है। साहित्य की विकलांगता को उसी प्रकार सिर के नीचे हाथ लगाकर ऊपर उठाना पड़ेगा जैसे इस लघुकथा में माँ अपनी बच्ची का सहारा बन कर उसे स्वर्ण पदक तक की ऊंचाईयों तक उठने का सम्बल बनती है ।”

लघुकथा सम्मेलन के अध्यक्षीय उद्बोधन में  वरिष्ठ लघुकथाकार सेवा सदन मनोज ( मुंबई ) ने कहा कि -“इन दिनों धड़ल्ले से लघुकथाएं लिखी जा रही हैं l फलस्वरुप संस्मरण, चुटकुलों, रिपोर्टिंग को भी लघुकथा का जामा पहना कर पेश किया जा रहा है l यानि वही पुराना विषय,  वही पुरानी समस्याएं और मिलती-जुलती घटना होती है l बहुत सारी लघुकथाएं तो प्रश्नचिन्ह उत्त्पन कर देती है कि आखिर इसमें संवेदना कहां है ? संदेश कहां है ? राष्ट्रीयता की भावना कहां है ? आजकल मौलिक चिंतन का अभाव नजर आता है l एक अच्छी लघुकथा के लिए सार्थक संदेशात्मक लघुकथा की  रचना के लिए अध्ययन, फिर चिंतन और तब लेखन की जरूरत होती है l  इस दिशा में सिद्धेश्वर द्वारा आयोजित “हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन” जैसी  गतिविधियों के जीवंत रहने की बहुत आवश्यकता है !

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“हमें लघुकथाकार बनना होगा, लघुकथा पैदा

करने वाली मशीन नहीं !” : सिद्धेश्वर

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” अधिकांश लघुकथाओं में मौलिक चिंतन का

अभाव नजर आता है l “: सेवा सदन मनोज

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लेखकों की वृद्धि से साहित्य सरोबार हो रहा है !”:कनक हलालका

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विशिष्ट अतिथि डॉ शरद नरायण खरे (मध्यप्रदेश ) ने कहा कि -“यह सत्य है कि वर्तमान में जो लघुकथाएं सृजित हो रही हैं, उनमें से अधिकांश में मौलिक विचारों की कमी है। प्राय: प्रस्तुत किए जा चुके विषयों पर लघुकथाएं कही जा रही हैं, इसलिए उनमें ताज़गी का अभाव है। जबकि अभी भी अनगिनत विषय ऐसे हैं, जो लघुकथाकारों से अनछुए हैं। प्राय: पुराने विषयों को ही लघुकथाकार अपने शब्दों का जामा पहना देते हैं। जबकि कथ्य पूरी तरह मौलिक व नवीन होने से ही लघुकथा प्रभावशाली बनेगी।

चर्चा परिचर्चा में भाग लेते हुए युवा साहित्यकार अपूर्व कुमार (वैशाली) ने कहा कि -“जिस लघुकथा में मौलिक चिंतन का स्तर  जितना उच्च कोटि का होगा, वह लघुकथा उतनी ही सशक्त और मारक होगी l  सनद रहे लघुकथा के शब्द सीमित हैं, चिंतन असीमित l  गागर में सागर भरने का काम मौलिक चिंतन से ही संभव है l  इसलिए मौलिक चिंतन का होना लघुकथा निर्माण की पहली और आखिरी शर्त होनी चाहिए l..”

लघुकथा पर चर्चा -परिचर्चा के बाद संतोष सुपेकर (उज्जैन ) ने – “भंवर जाल के बीच “/  प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र ने -“बुद्धत्व की प्राप्ति “/ सुशीला जोशी ( मुजफ्फरनगर ), ने -” व्यसन “/ सपना चंद्रा ( भागलपुर ) ने -” कथनी करनी “/ निर्मल कुमार दे (जमशेदपुर ) ने ” समझदारी “/ ऋचा वर्मा ने -” दहेज़ “/ नरेन्द्र कौर छाबड़ा (महाराष्ट्र ) ने दंश “/ रशीद गौरी (राजस्थान ) ने -”  अपना अपना दर्द “/  मीना कुमारी परिहार ने “आजाद हूं “/  पुष्प रंजन ने (भूदान )/ बी एल आच्छा (चेन्नई ) ने -”  नशा “/  योगेंद्र नाथ शुक्ल ने ” जुड़ाव “/ विजयानंद विजय ( बोधगया ) ने -” बूचड़खाने “/ डॉ अलका वर्मा ने -” कन्यादान “/ सेवा सदन मनोज़ (मुंबई ) ने “हम साथ -साथ “/ बी एल आच्छा (चेनई) ने -“नशा “/ रामनारायन यादव (सुपौल ) ने ” झपटमार “/  सिद्धेश्वर ने “जोंक “/ राज प्रिया रानी ने “ओहदा ”  लघुकथाओं का पाठ किया l

इन लघुकथाओं के अतिरिक्त वीडियो क्लिप के माध्यम से जयशंकर प्रसाद, चित्रा मुद्गल, भगवती प्रसाद द्विवेदी, मधुदीप आदि की लघुकथाओं का भी पाठ किया गया। इस आयोजन में आराधना प्रसाद दुर्गेश मोहन,  संतोष मालवीय, ज्योत्सना सक्सेना, बृजेंद्र मिश्रा,  ललन सिंह, खुशबू मिश्र, डॉ सुनील कुमार उपाध्याय, अनिरुद्ध झा दिवाकर, बीना गुप्ता, स्वास्तिका,  अभिषेक  आदि की भी सक्रिय भागीदारी रही।

( प्रस्तुति : ऋचा वर्मा ( सचिव ) / भारतीय युवा साहित्यकार परिषद) {मोबाइल: 9234760365 }

Email :[email protected]

 

One thought on “लघुकथाकार बनें, लघुकथा की मशीन नहीं”

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