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  • श्यामल बिहारी महतो

 

शाम के सांझ बाती के समय गांव के मंदिर में भजन आरती हो रही थी तभी गांव के इस छोर से उस छोर तक हल्ला मच

गया- “गांव के महेश ने मौसी संग बिहा कर लिया… बिहा..आ….!”

जीटी रोड से सटे गांव डोमनीडीह में जैसे डमरू बज उठा था।

जिसने सुना उसी ने चार गाली सुनायी, “ देखो, आज का युवा जाने, किस दिशा में जा रहा है!  मौसी, ‘माँ’ बराबर ! उसके साथ बिहा..!”

“अब कौन विश्वास करेगा कि यह सब भाई बहन के बीच नहीं होगा..?”

“महेशवा ने गांव गंधा दिया ..!” कुछ लड़के भी भड़के भड़के से दिख रहे थे ।

“मोबाइल युग में सब मनमौजी हो गया है, ताक-झांक काफी बढ़ गया है। कल ही रमेशवा छिप कर कपड़े पहनते हुए भाभी का फोटो खींचते पकड़ाया है ! बाप रे बाप कौन किस पर भरोसा करें  !” औरतें भी खूब भचर भचर करने लगी थीं ।

“हद हो गई है! डायन भी अपने घर में मुंह मारने के पहले हजार बार सोचती है पर यह महेशवा साला मौसिये पर हाथ डाल दिया ..!” भगतु बुढ़ा बैठे-बैठे कुढ रहा था ।

साल भर से महेश का अपने ही मौसी मालती के साथ लव सव चल रहा था । जब इसकी भनक महेश के घर वालों को हुई तो कड़ा एतराज जताया गया और रिश्ते को कलंकित न करने की चेतावनी दी गई ! पर महेश और उसकी मौसी मालती अपने बढ़े कदम पीछे खींचने के बजाय छिप छिपकर मिलना जारी रखा और जब दूरियां बर्दाश्त नहीं होने लगी तो दोनों दो कदम और आगे बढ़ आये और समाज और संस्कार को धकियाते हुए  एक दिन मंदिर में जाकर शादी कर दोनों

थाने पहुंच गये । दारोगा जी ने दोनों के परिवार को थाने बुलाया और कहा, “ जो करना था इसने कर लिया । दोनों जवान हैं। दोनों ने कोर्ट मैरिज के लिए रजिस्ट्रेशन भी करा लिया है। अब आपके मानने न मानने से इन पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है… क्या कहते हैं आप लोग….?”

बाप ने बिफरते हुए कहा, “मैं इस रिश्ते को जीते जी स्वीकार नहीं कर सकता हूं ! मेरे घर के दरवाजे इसके लिए हमेशा से बंद !”

“आज से यह मेरी बेटी नहीं है । जाए कहीं डूब मरे । मेरे दरवाजे पर कदम रखा तो खैर नहीं….!” मालती का बाप बोला।

डोमनीडीह में हुआ यह प्रेम विवाह  पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गया था । विकट स्थिति यह हो गई थी कि इस रिश्ते को कोई मानने को तैयार नहीं था । इस शादी के बाद बेटा बाप का साढू और बड़ी बहन सास बन गई थी । घर वालों के

विरोध के बावजूद दोनों अलग होने को तैयार नहीं ‌। नतीजा घर के दरवाजे उनके लिए बंद ।

उस रात दोनों ने एक शुभ चिंतक के घर रात गुजारी और सुबह दोनों ने हैदराबाद की ट्रेन पकड़ ली । महेश ने गांव और घर दोनों को अलविदा कह दिया । महेश वहां एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था ।

अब गांव में एक कहावत खूब चल पड़ी थी:-

“तोर माइयो जिंदाबाद और तोर मौसियो जिंदाबाद!”

  • बोकारो, झारखंड

मो. – 6204131994

One thought on “रिश्तों की चीर फार”
  1. सुंदर प्रस्तुति श्रीमान जी
    प्रभु आपको और आशीष प्रदान करे।

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