– सुनेश्वर प्रसाद निर्भय
कविता
अबकी राउरे मुखिया बनीं
साम सबेरे रातों दिनों
बनल रही आमदनी ।
अबकी राउरे मुखिया बनीं।।
चारों तरफ पैसा ही पैसा
धोती कुर्ता जाकेट में ।
चार आना के काम कराएम
बारह आना पाकेट में ।।
बिकास के नाम पर हल्ला कइके
डुगी खुबे पिटेम ।
पांच साल के मौका बरूए
आंख मुद के लुटेम ।।
बिना मंगले काम के भुखा
अपने लोगवा गनी ।।
अबकी राउरे मुखिया बनीं ।।
तरह तरह के योजना आई
सबके बिल बनवाइब ।
तनिको कतहूं रोक ना लागी
कावरा खुब चटाइब ।।
वीडियो साहेब रखले बानी ।
वसुले वाला मणी ।
अबकी राउरे मुखिया बनीं
– गांव गम्हरिया
जिला छपरा बिहार