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-विद्या शंकर विद्यार्थी

 

गजल

साथ कब छोड़ दी हवा पगली

आँख कब मोड़ दी हवा पगली

जिंदगी जीए के जहाँ हँस के

घोर कब लोर दी हवा पगली

आन के बात में चले लहसल

मार कब खोंच दी हवा पगली

रोज दिलदार से मिले जाले

लेप कब जोर दी दवा पगली

जात के नाम से गिला हमरा

मांड़ में गोत दी हवा पगली

दाग कइसन ह ई पता नइखे

दाग में गोर दी हवा पगली

ढेर चललीं ह बच बचा के हम

धार में बोर दी हवा पगली

पेट के आग का हउए विद्या

भूख में खोर दी हवा पगली।

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