– छत्र छाजेड़ “फक्कड़’
हास परिहास
जैन तीर्थंकरों ने कहा है कि जीवन के फ़ैसले काल, भाव और क्षेत्र की महता समझ कर लेने चाहिये। भिन्न परिस्थितियों में मात्र ‘एडवांस’ और ‘कल्चर’ के नाम पर नक़ल करना शुद्ध हानिकारक भी हो सकता है, बल्कि होता ही है। सम्पन्न देशों की सम्पन्नता के आधार पर जीने वालों को जन जीवन यदि “स्टेटस सिंबल” बना ले तो उनके जीवन में विक्षोभ और निराशा ही पैदा करता है। मैं कुछ बोलने को ही था कि कल्लन मिंया ने हाथ के इशारे से चुप रहने का संकेत किया…
कल्लन अपनी खोपड़ी को झटका देता बोला… ओ तथाकथित बुद्धिजीवि महाराज… क्या रखा है इन सिद्धांत वादी बातों में… हमें तो बस इतना सोचना है कि क्या आदर्शो से हमारी कुर्सी “सेफ़” है… उसी आधार पर वो उतनी ही हितकारी है… वर्ना क्या बँटता है इन बेकार की बातों का…
चौपाल पर हथाई करते ज्ञानी पुरूष एक साथ बोल उठे… सही पकड़े हो” वाह कल्लन… आज तो मार दिया पापड़ वाले ने… वक़्त आ गया है “ग्लोबेलाईजेशन” का… बाज़ार में टिके रहना है तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसी के सहारे खरा उतरा जा सकता है… फक्कड़ ज़रा चिढ़ कर बोला… तो क्या आप
चाहते हैं कि अब क़लमकार की कलमों को भी शब्द दूसरे से लेने होंगे..
क्या यही आज़ादी है अभिव्यक्ति की… ये कैसी आजादी है…?
कल्लन हाथ नचाते चहकता सा बोला… भाई क़लमकार जी… तभी तो आप सदैव मुफ़लिसी के शिकार रहते हो… फक्कड़ की पूंछ लटकाये घूमते हो….
वक़्त बदल गया है… पिछले पाँच सात सालों से क्रिकेटर बिकने लगे है. उनके मज़े
ही मज़े है। असली अच्छे दिन तो उनके ही आये हैं। नहीं बिक पाते हैं तो बेचारे हॉकी के खिलाड़ी है और रह जाते हैं फटे हाल… फ़ुटबॉलर भी बिकते हैं…
उनका भविष्य भी आरक्षण कोटे में सुरक्षित हैं… कौन नहीं बिक रहा… कब्बडी की टीम हो या फिर मुक्केबाज़… लाखों में बिकने लगे है…. आज लाखों है तो कल करोड़ों में भी खेलेंगे … अग्रिम बुद्धि तो नेता हैं जो समय से पहले एडवांस बिकने मे गुरेज़ नहीं। जो न समझे वो… वे पराई उन्नति पर बस
किलसते रहते हैं। उनके पास OLX पर जाने का “आपशन” ही बचता है। फक्कड़ जल भुन गया और आक्रोश में किलसते
बोला- कल्लन तुम क्या चाहते हो कि क़लमकार भी अपनी कलम बेच दे। स्वतंत्र लेखन और निजी स्वाभिमान दाँव पर लगा दे। किसने कहा दाँव पर लगाओ । कल्लन भभका। पर अपने बच्चों का भविष्य, परिवार की ख़ुशहाली
दाँव पर लगाने का अधिकार तुम्हें किसने दिया..? क्या अपनों के लिए अपना स्वाभिमान नहीं छोड़ सकते हैं…? स्वाभिमान ही तो छोड़ना है… कितने डाक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक तो देश छोड़ कर ही चले गये। वे भी तो बुद्धिजीवि और मेधावी इंसान थे। क्यों झूठी अकड़ में ऐंठ रहे हो, इसीलिए तो
कोई तुम्हारी बोली नहीं लगाता है। फल वाला पेड़ तो झुकता ही है। ज़रा प्रेक्टीकल होने की ज़रूरत है, तुम्हारे भी अच्छे दिन आते देर नहीं लगेगी….
चौपाल पर बैठे एक सज्जन बोले- भाई, कल्लन सही कह रहे हो बदलते युग में कोख तक भी बिकने लगी है। ईमान धर्म तो बीते वक़्त की बातें रह गई हैं, व्यवहारिक होने में
क्या हर्ज है… फक्कड़ उफनता सा बोला- हाँ भई, तभी तो दुर्निवार महिला समन्वय समिति जैसे महिला संगठन कलकता के अग्रज नेता सुब्रतो मुखर्जी से विकास के महान स्वप्नद्रष्टा विकास के नाम पर वैश्यावृति के सम्पूर्ण उन्मूलन के स्थान पर श्रम आयोग से सूची में दर्ज करा देह व्यापार को “लाइसेंस्ड” उद्योग बनाने को प्रयासरत है…! “पीटा एक्ट” (प्रिवेन्शन ऑफ इम्मॉरल ट्रैफिकिंग एक्ट) में संशोधन की पूर जोर वकालत हो रही है। चंद सरकारी
एवं हैर सरकारी संस्थायें विकास के नाम पर दो कर रह ही है क्या यही असली विकास है…? कल्लन बोला – तुम बुर्जियाँ सोच वाले बुर्जवा ही रहोगे। स्वतंत्र लेखन एवं स्वाभिमान के छद्म आवरण में क्या तुम स्वयं किसी साहित्य सम्मान के लिए जुगाड़ भिड़ाने में हाथ पाँव नहीं मार रहे। व्यवहारिक नीतियाँ अपनाते तो शायद नैया पार लग ही जाताऔर अब तक दो चार सम्मान पा लिए होते, पर हाँ, तथाकथित वापसी गैंग से दूर ही रहते … क्योंकि असलियत से तो वाक़िफ़ हो ही कि लौटा दिया तो फिर दोबारा नहींमिलने का… तुम्हारे से जंग खाये “एक्सपायरी” उत्पादों पर ‘क्विकर’ पर भी कोई नहीं पूछता…. साक्षात मिल लो तो लॉट में डाल दिये जाओगे…
फक्कड़ तैश में आ गया- देख लिया तुम्हारा व्यवहारिक दृष्टिकोण। कौन करेगा ज़रूरतमंदों के लिए वैकल्पिक वय्वस्था जो बाज़ारवादी हैं।
बाजारवाद के भौतिक प्रदर्शन को प्रगति का मापदंड मानते हैं और आशा रखते हैं संवेदनशील रक्त संबंधों की… चुनाव पर मुद्दा बनाते हैं विकास का…
परोक्ष सारे समीकरण बैठाते हैं भाई भतीजावा और जातिगत आधारित। फक्कड़ का चेहरा तमतमा कर लाल हो गया और भड़भड़ाते बोला- ऐसा व्यवहारिक पक्ष मुबारक हो तुम्हें जहाँ “लिव-इन” समाज का प्रगतिवादी व्यवहारिक दृष्टिकोण रह गया, फिर आध्यात्म के झूठे गीत क्यों गाये जाते हैं…?
कल्लन खिसक लिया बोलते हुये कि फिर रहो सिद्धांतों के लिए लाइन हाज़िर…..
फक्कड़ फुंफकारते बोला- ऑन लाइन और ग़ैर लाइन से तो लाइन हाज़िर ही अच्छे हमारे क़दम प्रगति पथ पर है ….