– पुष्पा जमुआर
बेटी है वरदान
माँ-बाप की तक़दीर
भाई की इज्ज़त
घर – आँगन की पायल
पर कहाँ हो जाती है चूक ?
बिटिया के आगे उठते हैं
एक सवाल
मक्खन में लपेट कर
बेटी हो संभल कर चलो
वरना हो जाएगी
जग हंसाई
2020 ई0 की आ गयी
इक्कीसवीं सदी
बेटी बचाओ का नारा
सरकार की आवाज़ बनी
हिम्मत, हौसला, और बुलंद
मन हीं मन में संकल्प
उठा पाया बेटी ने
खुला आसमान
उड़ने की चाहत जागी
खुला जब उसका पंख
बेख़ौफ उड़ने लगी
फिर क्यों सवाल हुआ ?
बहती धारा बनो नहीं
बिना किनारे
जीवन नहीं
संयम और अनुशासन से
सुंदर जग-संसार रहे
चित्कार उठी बेटी का मन
मैं बेटी हूँ
रोको उस बेटे को
जो राह रोकता है
बेइज्जत करने को हरदम
रहता है तैयार
सीखने की कला
बताओ बेटा को
लुटता है इज्जत बहनों का
मैं तो बिटिया हूँ
ऐ समाज
मुझे आशीष दो
सिर उठा कर राह चलें
मुझ से हीं
माँ-बाप का
नाम और सम्मान मिलेगा
मैं बेटी हूँ
बिटिया से ही घर-परिवार और
है देश – समाज !