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” मौजूदा दौर से मुठभेड़ करती हुई कविता ही
समकालीन है !”: भगवती प्रसाद द्विवेदी
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“घरेलू गोष्ठियां, बाज़ारू साहित्यिक सम्मेलनों के अपेक्षा साहित्य संवर्धन का काम करती है !”: सिद्धेश्वर

पटना :22/06/2022! ” समकालीनता किसी काल विशेष की मोहताज नहीं होती, फलतः कबीर आज भी समकालीन हैं और आज के कई कवि समकालीनता की कसौटी पर खरे नहीं उतरते। समकालीन कविता, चाहे वह मुक्तछंद, नवगीत, ग़ज़ल, दोहे आदि किसी भी छंद में क्यों न हो,यदि वह मौजूदा दौर से मुठभेड़ करती है और गहरी मानवीय संवेदना जगाती है, तो वह सच्चे अर्थों में समकालीन कविता कही जानी चाहिए। दरअसल कविता की भूमिका और सार्थकता हमारे अंतर्मन को आन्दोलित-उद्वेलित करने में है।”
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद एवं साहित्य परिक्रमा के तत्वाधान में, ” सिद्धेश सदन ” में आयोजित सारस्वत काव्य संध्या की अध्यक्षता करते हुए उपरोक्त उद्गार लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी जी ने व्यक्त किया !
संगोष्ठी का संचालन करते हुए कवि -चित्रकार सिद्धेश्वर ने कहा कि – इस तरह की छोटी-छोटी साहित्यिक गोष्ठियों में बेहतरीन रचना प्रस्तुत करने की होड़ लगी रहती है, जो साहित्य में सृजनात्मक विकास के लिए जरूरी भी है! घरेलू गोष्ठियां, बाज़ारू साहित्यिक सम्मेलनों के अपेक्षा साहित्य संवर्धन का काम करती है !”
मुख्य अतिथि प्रतिष्ठित शायरा आराधना प्रसाद ने कहा कि -आज की कवि गोष्ठी कईं दृष्टियों से बहुत ही महत्वपूर्ण थी। सिद्धेश्वर जी का जन्मदिवस का शुभ अवसर और कवियों का जुड़ना ! कहें तो बहुत ही सार्थक गोष्ठी रही। अध्यक्षीय उद्बोधन बहुत ही सारगर्भित और महत्वपूर्ण था। सभी ने उत्तम काव्य पाठ करके गोष्ठी को एक ऊंचाई प्रदान की । उत्तम संचालन व सफल काव्य गोष्ठी के लिए सिद्धेश्वर जी धन्यवाद के पात्र हैं l
इस काव्य संध्या में एक से बढ़कर एक नए पुराने रचनाकार ने अपनी कविताओं को प्रस्तुत किया l रूबी भूषण ने – जमाना हो गया माई से मुझको मिले हुए,आवाज उसकी रोज़ तन्हाई में आती है। / भगवती प्रसाद द्विवेदी ने – गांछ सूखे, सर्जना – संवेदना के, कौन सींचे ?, कंकरीट फ्लैट में सहमे कबूतर, आंख मींचें !”/ आराधना प्रसाद ने ” सांसें, आंखें, बाहें, आहें पत्थर की , क्या ऐसी देखी हैं शक्लें पत्थर की ?, इंसानों ने पेट से बाँधे हैं पत्थर, और कहाँ तक ठोकर खाएं पत्थर !” /मधुरेश नारायण ने-अपने जज्बातों ख्यालातों को बहलाते रहे हम।,अपने दिल को रह-रह कर समझाते रहे हम।,जिन्दगी के फलसफे को रोज बदलते देखता हूँ।
यथार्थ में जो न मिला,पूरा सपनों में कराते रहे हम। / रश्मि गुप्ता ने – पलता है, कोई दुःख,बिना जड़, पत्ती और,बगैर टहनी के, मेरे अंदर, मेरी ऊर्जा में बनकर हिस्सेदार ! / सिद्धेश्वर ने-शहर में रहकर, देहात की बात करते हो ?,यह कैसी अनकही,बात की बात करते हो ? ” /डॉ शिवनारायण ने-बेखबर सरकार है, और चुप अखबार है !, मैकशी गली गली, राजपथ फरार है !/ लता परासर ने – ” बेचैनी का आलम मेरी कौन सुने, रोती गाती दर्द बहाती मौन सुने,मेरी ओर भी देखो प्रीतम मेरे, रैन दिवस अकुलाहट पौन सुने!”/ राज प्रिया रानी ने – बरखा की थाप सोखे , चितवन की माटी,सौंधी सुगंध मोहे , धरती की छाती ,सावन घटा ले आई, सुरभान बरसाती, पनघट का जल शोभे , मेघा मदमाती ।” जैसी गीत गजलों औऱ छंदमुक्त कविताओं का पाठ किया ! समूचे संगोष्ठी में आगत साहित्यिक अतिथियों का स्वागत और धन्यवाद ज्ञापन किया बीना गुप्ता एवं सुषमा ने !

– प्रस्तुति : राज प्रिया रानी (उपाध्यक्ष) भारतीय युवा साहित्यकार परिषद /मोबाइल 92347 70365

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