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 – सिद्धेश्वर

नज़्में
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मन की खिड़की
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कैसी प्रजा और
कैसा है राजा ?
शव यात्रा में
बजा रहा है बाजा.. !

संकीर्ण परंपराओं के
दासी हैं सब…
बना रहा नियम
और कानून ताजा… !

मन की खिड़की
बंद पड़ी थी…
खोल रखे थे,
घर का दरवाजा.. !!

 

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( सिद्धेश्वर )
इंसां है फरिश्ता नहीं !
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खामियां किसमें नहीं ?
इंसां हैं फरिश्ता नहीं !

फूल के दामन में कांटे,
छूकर, कर लो यकीं !

छलकता है मद में
उन आंखों में नमीं !

तड़पता रहा आसमां
छूने को जमीं !

होठों पर अंगार
ओस की बूंदे कहींं !!

– 92347 60365

नोट – © कॉपी राइट कलाकृति – सिद्धेश्वर

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