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– मेहता नगेन्द्र

 

पानी का पानी बना रहे सोचिए कैसे

दरिया में पानी सदा रहे सोचिए कैसे ।।

 

जंगल कहता बादल से बरसाओ पानी

पेड़ों से जंगल घना रहे सोचिए कैसे।।

 

पानी से ही उपवन में फूल खिला करता

फूलों से उपवन सजा रहे सोचिए कैसे ।।

 

सावन-भादो पानी का मौसम कहलाता

मौसम का आना लगा रहे सोचिए कैसे ।।

 

वर्षा-पानी को जिधर-तिधर मत बहने दें

पोखर में पानी जमा रहे सोचिए कैसे।।

 

माना कि पानी का भंडार बहुत लेकिन

दोहन भी इसका रुका रहे सोचिए कैसे ।।

 

पानी की बरबादी पर रोक लगे तो अच्छा

पीने भर पानी बचा रहे सोचिए कैसे।।

 

गफ़लत में जो सोये हैं उन्हें जगा दो मेहता

पानी को लेकर वो जगे रहें सोचिए कैसे ।।

 

 

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