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    -डॉ. योगेन्द्र नाथ शुक्ल

“कार्यालय के उस कोने वाले कक्ष में, जहां टूटी फूटी चीजें रखी जाती थीं, वे वहीं रखी रहतीं। आज उस कक्ष का ताला खुला हुआ था। उन्हें बाहर निकाला गया और झाड़- पोंछ कर सभागार के चारों और लगा दिया गया।

कार्यक्रम शुरू होने में अभी समय था। बड़े साहब व्यवस्था देखने वहां आए। अधिकारी उन्हें खुश करने के लिए बोला, “सर! महापुरुषों के मातृभाषा संबंधी उद्गारों से सजी इन तख्तियों के दीवार पर लगते ही सभागार खिल उठा।”

बड़े साहब ने प्रशंसात्मक दृष्टि से उसे देखा और बोले,”यू आर वेरी स्मार्ट।”

कार्यक्रम संपन्न होते ही बड़े साहब ने उस अधिकारी से कहा,”इन तख्तियों को वहीं हिफाजत से रखवा देना… अगले 14 सितंबर को फिर उनकी जरूरत पड़ेगी।”

अधिकारी ने तुरंत उनके आदेश का पालन किया। उन्हें वही रखवा कर उस कक्ष का ताला लगवा दिया।

ऐसा लग रहा था जैसे उन्हें  “पैरोल” पर कुछ घंटों के लिए ही बाहर निकाला गया हो।

 

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