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“आरंभिक काल से ही कथाकारों द्वारा कथा सृजन की उपयोगिता से इनकार नहीं किया जा सकता l  क्योंकि कथा पुस्तक परंपराओं और इतिहास को भविष्य की पीढ़ी तक पहुंचाने और सामाजिक विसंगतियों को दूर कर एक स्वस्थ सामाजिक सरंचना करने में अपनी अहम् भूमिका का निर्वाह करती है l कहानियां कल्पनाशीलता को बढ़ाती है l  कहानी कहने, सुनने और पढ़ने से हमारे दिल के भीतर  सोच स्थापित होती है, जो सकारात्मक सोच की दिशा में एक सार्थक भूमिका का निर्वाह करती है,  और एक सार्थक चिंतन दिशा की ओर जागरूक करती है l ”

भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में फेसबुक के “अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका” के पेज पर ऑनलाइन” हेलो फेसबुक कथा सम्मेलन” का संचालन करते हुए संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l

साहित्य में कथा पुस्तक की प्रासंगिकता” विषय का प्रवर्तन करते हुए उन्होंने कहा कि -“ई – कथा पुस्तक पढ़ना आंखों के लिए स्वस्थ  तो नहीं ही है हमारे दिल को भी सुकून नहीं देती l”

कथा सम्मेलन की मुख्य अतिथि नीलम नारंग( पंजाब ) ने कहा कि-“कथा साहित्य हमेशा से ही समाज का आईना रहा है । पंचतंत्र की कथाओं के माध्यम से सबने नैतिक शिक्षा ग्रहण की है । कथा पुस्तकें दूरदर्शिता को बढावा देती है । पुस्तकें हमेशा ही हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा थी और बनी रहेगी । पिछले कुछ समय से इसमें थोड़ा ठहराव जरूर आ गया था लेकिन इनकी प्रासंगिकता है और हमेशा बनी रहेगी । ”

हेलो फेसबुक कथा सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए ‘ पथिक’ रचना ( नैनीताल ) ने कहा कि -” आज तकनीक चाहे कितनी भी विकसित हो गई हो, सस्ते दामों में ई-पुस्तक उपलब्ध भले हो और एक अँगुली के इशारे पर सहजता से प्राप्य हो। किंतु यह व्यवस्था, पढ़ने का सार और अनुभव करने का आनंद छीन लेती है। व्यक्तित्व के  निर्माण में भी कथा पुस्तकों की अहम भूमिका रही हैं l हमें इस बात का ध्यान रखने की जरूरत है कि हम बच्चों के हाथों में मोबाइल के बदले अच्छी कथा पुस्तकें  थमाएं और उनमें किताब से पढ़ने की आदत विकसित करें। बिना पुस्तक का घर बिना खिड़की का मकान है.l ”

पढ़ी गई पांच कहानियों पर अपनी अध्यक्षीय टिप्पणी देते हुए, पथिक रचना (नैनीताल ) ने  कहा कि – “मैं सिद्धेश्वर भैया के लगन, समर्पित मन एवं मेहनत की कायल हूँ। नतमस्तक हूँ। और मैं आप से प्रेरणा भी पा रही हूँ।

सचमुच यह साहित्य का संसार बहुत बड़ा है। मेरे पास शब्द नहीं है कि मैं आज की आप सभी आदरणीय कथाकारों की प्रशंसा करूं। आज हमने ‘कथा पुस्तक क्यों विशेष है’! इसकी प्रासंगिकता के विषय पर चर्चा की और मैं सभी के विचारों से सहमत हूं की कथा पुस्तक एक मजबूत स्तंभ है

नारंग जी  (पंजाब )’ के विचार एवं उनकी  कहानी “बचपन” बहुत सारगर्भित कहानी है। सच में किसी भी परिवेश में आज बच्चे बचपन को जी नहीं पा रहे हैं तो हमें यह देखना चाहिए कि बच्चे कैसे खुश रहें । उनकी पुस्तक भी प्रकाशित हुई है l उसके लिए उन्हें बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ। आपकी कलम खूब चले और हमें ऐसी ही उत्तम कथाएं पढ़ने-सुनने को मिले।

‘जयंत जी’ की कहानी -लागो पंडित!”बहुत ही सहज और सरल शब्दों में गीता के श्लोक का अर्थ समझा गई कि “परिवर्तन ही संसार का नियम है” ! समय के साथ सहजता से परिवर्तित होते चले जाने से हीं खुशियाँ बांटी जा सकती हैं और खुश रहा जा सकता है। व्यर्थ का राग अलापने से कोई फायदा नहीं, बल्कि दु:ख और नुकसान हीं होगा।

दूसरी तरफ युवा कथाकार अजीत कुमार की कहानी बेहद भावपूर्ण लगी ।  इनके साथ साथ आज के कथाकारों में प्रेमचंद जी की कथाओं सा बिंब था। स्मृति में प्रेमचंद जी की कथाओं का था l दृश्य खिंच गया सभी बिम्ब परिलक्षित हो गए l मानों  चलचित्र चल रहा हो।

नरेंद्र कौर छाबड़ा ( महाराष्ट्र) जी बहुत ही संजीदा भावपूर्ण आपकी आवाज। आप को सुनना सौभाग्य पूर्ण है मेरे लिए। मातमपुर्सी एक बेहद भावपूर्ण कहानी। मैं आपको बार-बार पढ़ना और सुनना चाहूँगी । आप कृपया अपने यूट्यूब का लिंक हमें शेयर कर दें।

फेसबुक पर अवसर साहित्यधर्मी  पत्रिका का पेज और भारतीय युवा साहित्यकार परिषद का  यह मंच  बहुत अच्छा मंच है जो नए रचनाकारों को अवसर देता है । आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।

 

कथा पुस्तक सार्थक चिंतन दिशा की ओर हमें जागरूक  करती है !”: सिद्धेश्वर

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   ” व्यक्तित्व निर्माण में कथा पुस्तकों की अहम् भूमिका रही है ! “: पथिक रचना

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  “कथा पुस्तकें दूरदर्शिता को बढावा देती है !”: नीलम नारंग

           

प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र  ने कहा कि-“पुस्तक रूप में कथा का ज्यादा महत्व और प्रभाव है । ये भी सत्य है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कारण प्रसार ज्यादा हुआ पर आज भी चुनिंदा कहानी-कविता, उपन्यास को चिन्हित कर लोग पुस्तक रूप में पढ़ना पसंद कर रहे हैं। अतः हम कह सकते हैं कि आज भी कथा पुस्तक की प्रासंगिता आज भी बरकरार है।”

डॉ. शरद नारायण खरे (म. प्र. ) ने कहा कि -“कथा-पुस्तकों के पाठक तो घटे हैं लेकिन आज भी कथा-पुस्तकें लिखी जा रही हैं, पढ़ी जा रही हैं, पर पाठकों में कथाएं पढ़ने में वैसी मनोयोगता, लगन व गंभीरता नहीं है, जैसी पहले होती थी, पर यह भी सही है कि कथा-पुस्तकों से जो चिंतन, वैचारिकता व संदेश पाठक तक पहुंचता है, वह लघुकथाओं या अन्य लघु साहित्य से कदापि भी संभव नहीं है। वैसे आज भी कथा-पुस्तकों के पाठक हैं और आगे भी रहेंगे l”

राज प्रिया रानी ने कहा कि -” समकालीन कथा नायकों का साहित्य जगत में धाती है।  कथा पुस्तकें जिंदगी के हर उतार-चढ़ाव और उसके  इर्द गिर्द घूमती परिवेश परिदृश्य परंपराओं की गहराई को उल्लेखित करते हैं l ”

हेलो फेसबुक कथा सम्मेलन में पढ़ी गई पांच कहानियों को देश भर के दर्शकों ने सुना और अपने विचार व्यक्त किए l डॉ सुशील कुमार पाठक,  संतोष मालवीय, पुष्प रंजन कुमार, आराधना प्रसाद,  पुष्प रंजन कुमार, दुर्गेश मोहन आदि की भी भागीदारी रही !

प्रस्तुति : राज प्रिया रानी (उपाध्यक्ष:)  एवं सिद्धेश्वर( अध्यक्ष ) भारतीय युवा साहित्यकार परिषद /पटना /मोबाइल से:92347 60 365.

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