– गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
(ताटंक, ककुभ और लावणी छन्दों में)
मीठी मीठी भाषाओं से शोभित है परिवेश सखे।
फिर भी बिना राष्ट्र भाषा के लगता गूँगा देश सखे।।
बैठी हुई देववाणी की ये सन्तानें सहोदरी।।
भारतमाता के सुकण्ठ परअलंकार रस छन्द भरी।
कन्नड़ कोंकणी कश्मीरी उर्दू उडिया नेपाली।
मलयालम,मैथिली मणिपुरी मधुर मराठी बंगाली।।
तमिल तेलुगू सिंधी हिन्दी बोड़ो असमी गुजराती।
पंजाबी संथली डोगरी अँगरेजी संस्कृत गाती।।
सदा दूसरी भाषा ने हर भाषा का सम्मान रखा।
स्वतन्त्रता की समर भूमि में स्वाभिमान का भान रखा।।
कितना सुन्दर मेलजोल है अनबन भरा स्वभाव नहीं।
संस्कृति की वाहिनी सरीखी आपस में टकराव नहीं।।
भाषाओं के मध्य सेतु सी हिन्दी कनक कुमारी है।।
इसीलिए सारी भाषाओं को यह भाषा प्यारी।।
कारण दोषरहित उच्चारण सनातनी सरला सरिता।
तकनीकी लिपि की अधुनातन सर्वमान्य सरिता भरिता।।
सरल व्याकरण तरल आचरण नित्य नवीन पुरानी है।
आज राजभाषाओं में अब हिन्दी ही पटरानी है।।
पके दशहरी आम सरीखी मीठी भाषा हिन्दी है।
शब्द शब्द में घुली माधुरी जन अभिलाषा हिन्दी है।।
तुलसी सूर कबीर वृन्द भूषण मीरा रसखानों की।
केशव पन्त निराला दिनकर हरिश्चन्द दीवानों की।।
बच्चन सुमन महादेवी शिशु,अटल सुभद्रा माखन की।
नीरज सरल विराट बालकवि गुप्त प्राण आराधन की।।
भदावरी मैथिली बघेली बुन्देली कुरमाली की।
भोजपुरी अवधी पैशाची कन्नौजी बिलवाली की।।
खड़ी राँगड़ी पड़ी बाँगड़ी मधुर मालवी निम्माड़ी।
गढ़वाली छत्तीसगढ़ी भीली हाड़ौती मेवाड़ी ।।
हरियाणवी कुमायूँनी ब्रज मारवाड़ ढूँढाड़ी की।
मेवाती खोरठा माल्टो हिन्दी शान पहाड़ी की।।
यह सन्तान संस्कृत की है यह पहचान हमारी है।
यही आत्म गौरव की आभा युग की बान दुलारी है।।
गान हमारी शान हमारी हिन्दी मान हमारी है।।
रस की खान ठान जीवन की मधु मुस्कान हमारी है।।
अब हिन्दी माता के माथे पर चमकीली बिन्दी हो।
मिल कर कहें राष्ट्र भाषा के पद पर अपनी हिन्दी हो।
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
“वृत्तायन” 957, स्कीम नं. 51
इन्दौर पिन – 452006 (म.प्र.)
मो. 9424044284
6265196070
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