-डॉ. योगेन्द्र नाथ शुक्ल
वर्ष की अंतिम रात थी, जगह-जगह खुशियां मनाई जा रही थीं। नगर के प्रमुख चौराहे सजे हुए थे। वहां लाउड स्पीकर लगे थे और नाच गान के आयोजन चल रहे थे। स्कूटर मोटरसाइकिल और कार के काफिले सड़क पर दौड़ रहे थे। प्रायः सभी होटलें सजी थीं और उनके बाहर, अंदर हो रहे रंगीन कार्यक्रमों के बड़े-बड़े बोर्ड लगे थे। बारह बजते ही जगह-जगह पटाखों की आवाज गूंजने लगी, युवक युवतियां खुशी के मारे चीख पड़े।
……. शहर के करीब एक किलोमीटर दूर खंडहरनुमा बड़ी इमारत थी। वहां का दृश्य ठीक इसके विपरीत था। वहां पुराना वर्ष, नए वर्ष के गले मिलने में संकोच कर रहा था। उसे इस बात की पीड़ा थी कि उसके पास नए वर्ष को देने के लिए गरीबी, भ्रष्टाचार और आतंक के अलावा कुछ नहीं था। दूसरा, उपहारों को देख सहमा सा खड़ा था।
…….. कुछ वर्षों पूर्व, घबराए हुए कबूतरों का एक समूह नगर की ओर से उड़ता हुआ आया था और उस खंडहर में रहने लगा था, वहां का दृश्य देखकर उसने दुखी हो जंगल की ओर उड़ान भर ली।
……… शहर से अभी भी नाचने गाने की आवाजें आ रही थीं।
-पूर्व प्राध्यापक एवं प्राचार्य, निर्भयसिंह पटेल शासकीय विज्ञान महाविद्यालय, इंदौर, मध्यप्रदेश. मोबाइल नंबर-09977547030