– मिंटू झा
बोध कथा
एक बार की बात है। किसी गांव में एक बहुत ही बुद्धिमान राजा था। उस राजा का काफी बड़ा साम्राज्य था। उसके राज्य में प्रजा हर तरह से खुशहाल थी। राजा को अपने उत्तराधिकारी की खोज थी।
उस राजा के पास तीन बेटे थे। लेकिन राजा नहीं चाहता था कि पुरानी परंपरा को वह भी दोहराए और सबसे बड़े बेटे को ही गद्दी पर बिठाया जाए। राजा सबसे बुद्धिमान और काबिल बेटे को सत्ता सौंपना चाहता था।
इसलिए राजा ने उत्तराधिकारी के लिए तीनों बेटे की परीक्षा लेने का फैसला किया।
एक दिन राजा ने तीनों बेटों को अलग-अलग दिशाओं में भेजा। उसने हर बेटे को सोने का दो-दो सिक्का देते हुए कहा- वे इस सिक्के से ऐसी चीज खरीदें, जो राजा के महल को भर दे।
प्रथम बेटे ने सोचा कि पिता तो सठिया चुके हैं। इस थोड़े से पैसे से इस महल को किसी चीज से कैसे भरा जा सकता है। इसलिए वह एक मयखाने में गया, शराब पीकर सारा पैसा खर्च डाला।
राजा के दूसरे बेटे ने इससे भी बेहतर सोचा। वह इस नतीजे पर पहुंचा कि शहर में सबसे सस्ता तो कूड़ा कचरा ही है। इसलिए उसने महल को कचरे से भर दिया।
तीसरे बेटे ने तीन दिनों तक इस पर चिंतन मनन किया कि महल को सिर्फ दो सिक्के से कैसे भरा जा सकता है। वह सचमुच कुछ ऐसा करना चाहता था, जिससे पिता की इच्छा पूरी होती हो।
उसने मोमबत्तियां और लोबान की बतियां खरीदी और फिर पूरे राज महल को रोशनी और सुगंध से भर दिया। इस तीसरे बेटे की बुद्धिमानी से खुश होकर राजा ने उसे अपना उत्तराधिकारी बनाया।
कथा भेद – इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि बुद्धि से कुछ भी पाया जा सकता है। साथ ही हरेक क्षेत्र में बुद्धि की जरूरत होती है।