– नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’
मांग में दमकता कलकतिया लाल सिंदूर, ललाट पर नगदार लंबी बिंदी, लिपिस्टिक लगे होठ, कान में सोने के झुमके, नाक में नथ, गले में ए. डी. नग का चमचमाता मंगलसूत्र, साथ में मैंचिग सोने का हार, दो-दो दर्जन लहठी चूड़ियों व मेहंदी से रचे गोरे हाथ। बड़े-बड़े नाखूनों पर डिजाइनिंग नेन पालिश। अंगुलियों में सोने की अंगूठियां, रुनझुन करती दुल्हन पायल, पांचों अंगुलियों में बिछुएं तथा महावर लगे कोमल पैर और लाल रंग की बनारसी साड़ी में लिपटी पूजा की थाल सजाए सुकन्या को अपने सामने देख अंजली बस देखती रह गई।
“अरे, अंजली, तुम मुझे ऐसे क्यों देख रही हो? तैयार भी नहीं हुई। मंदिर कब चलोगी?” सुकन्या ने उसका ध्यान भंग किया।
“सच यार, आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो। बिल्कुल नई नवेली दुल्हन की तरह। बस, मैं झटपट नहाकर चलती हूँ।”
“आज हरितालिका तीज है। सोलह श्रृंगार तो करने पड़ेंगे न। शाम के 6 बज गए और तू अभी खाना बना रही है। चूल्हे के पास रहने से प्यास लगती है।”
“अरे, यार, चार रोटियां सेकने में कैसी प्यास? सौरभ आफिस से आएंगे तो क्या खाएंगे? यही सोच कर मैंने उनके लिए खाना बना दिया हैं। वैसे वह होटल में खाने के लिए बोल रहे थे, पर मैंने उन्हें मना कर दिया। असली श्रृंगार तो पति ही है न! पति के कारण ही तो हम स्त्रियों को सौभाग्यवती कहा जाता है।” रोटी बेलते हुए अंजली बोलती जा रही थी।
सुकन्या मन ही मन शर्मिंदा हो गई कि उसने दो-चार दिन से बीमार चल रहे अपने पति को सुबह से लेकर रात तक होटल का रास्ता दिखा दिया था। उसने तो तन का श्रृंगार किया था, पर अंजली ने तो मन का श्रृंगार किया है।