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– अंजू अग्रवाल

 

“अरे छोरी! कित्ती दफे समझाया-धीमे हंसा कर…! पूरे मोहल्ले में आवाज गूंजे है तेरी…!”

“क्या जमाना आ गया है…।”

दादी बड़बड़ातीं।

“पर दादी! भैया को तो कुछ कहती नहीं! कितनी जोर से चिल्लाता है।”

मीनू भुनभनाई।

“अरे छोरा है वो…! कित्ताई चिल्ला ले..! उसका कौन नाम धरने आ रहा है। छोरियों के तो बात-बात मे नाम धरे जाए हैं।”

“एक तो वैसे ही तेरे बाप का दिमाग खराब हो गया है जो लड़कों के साथ पढ़ने भेज रहा है तुझे…! लच्छन तो बिगड़ेंगे ही…!”

“अच्छा दादी! और क्या-क्या नहीं करना चाहिए लड़कियों को …?”

मीनू ने शान्ति से पूछा!

“कम खाओ, गम खाओ, कम हंसो, धीरे बोलो, आंख नीची रखो, जवाब मत दो और क्या!”

दादी चिढ़कर बोलीं।

“वरना क्या होगा दादी?”

“वरना क्या..नाम धरेंगे लोग…!”

“दादी, आप तो मेरा पहले ही नाम धर दो, जो भी धरना है। हाँ नही तो…!”

  • अजमेर, राजस्थान

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