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-श्यामल बिहारी महतो

 

गांव के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा था। किसी मामले को लेकर रात के बारह बजे पंचायत बैठी थी। इससे पहले इस तरह का मामला न देखा न सुना गया था । फैसले के इंतजार में पूरा गांव जगा हुआ था । छोटे-बड़े की नींद उड़ी हुई थी..

गांव के मोबाइल गैंग की गुप्त सूचना पर गांव के चौकीदार की अगुवाई में गांव के बाहर इमली पेड़ के नीचे एक प्रेमी जोड़े को उस वक्त दबोच लिया गया था जब वे दोनों प्रेम के सागर में आलिंगनबद्ध-एक्काकार थे । चौदह वर्षीय हाई-स्कूली छात्रा चांदनी का दिल सत्रह वर्षीय ट्रेक्टर चालक सूरज पर आ गया था । तब से सूरज इंटा-बालू की तरह चांदनी को ढो रहा था ।

उन्हीं दोनों की पंचायत बैठी हुई थी । फैसले के इंतजार में पूरा गांव जगा हुआ था ।

पंचायत से थोड़ी दूर चौकीदार युग कथा सुना रहा था- “आज आदमी मोबाइल युग में जी रहा है जहां रिश्तों की कोई गारंटी नहीं है । कब कहां किस मोड पर किसके दिल में किसका रिंग टोन बजने लगे कह पाना मुश्किल है ।

एक माह पहले इसी गांव के दशरथ जी की पुतोहू के दिल में पड़ोसी गांव के डीजे मास्टर डेगलाल का रिंग टोन बजने लगा । एक रात पुराने बरगद पेड़ के नीचे दोनों का रिचार्ज हुआ । साप्ताह दिन बाद ही दोनों गांव के नेटवर्क से बाहर! वापस हुए तो तमाशा भी हुआ । पंचायत बैठी, दशरथ जी के पुत्र राम ने सीता.. नहीं नहीं .. सविता को वापस रखने से साफ इंकार कर दिया- “अब हमारे घर में उसके लिए कोई जगह नहीं है।”

डेगलाल ने डीजे बजाते हुए कहा- “सविता भाभी अब मेरी बीबी, इसके रिचार्ज में कभी कोई कमी होने नहीं देंगे …!”

बेचारे दशरथ जी ने- राम जी से कुछ कहना चाहा, उसके पहले एक ने कहा दिया- “अब जी और घी लगाने का समय गया..!”

डेगलाल के दूरदर्शन पर “डीजे” डांस करती सविता भाभी ने कहा -“डेगलाल के रिचार्ज पर तो अब मैं जिंदगी भर के लिए आनलाईन रहूंगी..!”

कहने-करने के लिए पंचों के पास कुछ शब्द बचा नहीं था, सहमति पर स्वीकृति के मुहर लगाये, पंच खर्चा लिए और चलते बने ।

परन्तु चांदनी और सूरज का फैसला करना आसान नहीं था । दोनों नाबालिग। थाने जाने से कोर्ट कचहरी का लफड़ा बढ़ सकता था। और नाबालिग की शादी कराना भी जुर्म ! ऊपर से बेटी का बाप रिश्ते में गारंटी चाहता था और बेटा का बाप नोट ! तनाव में पहर कट रही थी । पहले की शादियों में गारंटी हुआ करती थी, जैसे मोबाइल कंपनियां शुरू-शुरू में गारंटी दिया करती थी, अब वारंटी देती है- गारंटी नहीं । कारण सबका नेटवर्क उसके रिचार्ज पर निर्भर करता था । जिसका रिचार्ज जितना ज्यादा होगा- उसका नेटवर्क उतना ही फास्ट होगा । अगर रिचार्ज न हो तो मोबाइल का नेटवर्क गायब ! अगर पत्नी का ठीक से रिचार्ज न हो तो पति के नेटवर्क से पत्नी गायब ! कारण रिश्ते में वायरस घूस जाता है और जम्प कनेक्शन किसी के साथ हो जाता है । यह  कोई नई बात नहीं है- सदियों से यह सिलसिला जारी है- तरीके बदल गये है । पर यहां तो चांदनी और सूरज के बीच पंचायत ही वायरस बन घूस आयी है। जिससे युवा वर्ग में घोर असंतोष था ।” इसके साथ ही चौकीदार चुप हो गया था ।

घटना करम परब के संजोत रात की थी । करम आखाड़ा में डीजे की धून में करमैती सब डांस में मशगूल थीं । लेकिन चांदनी का मन डांस में जरा भी नहीं लग रहा था । फोन पर कॉलटोन सुनने को उसका दिल बेकरार था । और उसके दोनों कान फोन के इंतजार में खड़े थे । उसका बैचेन मन बार बार करम आखाड़ा से बाहर भाग जाने को मचल रहा था जैसे वृन्दावन में कृष्ण की बांसुरी की धुन सुनने को राधा बैचेन हो जाया करती थी । परन्तु यह वृन्दावन नहीं- बगडेगवा गांव था – डेगेडेगे ( कदम कदम पर ) लड़कों का मोबाइल गैंग बैठा हुआ था ।

दो दिन पहले करम परब की खुशी में बारह हजार का “वीवो” मोबाइल चांदनी को गिफ्ट करते हुए सूरज ने कहा था- “मेरे लिए करम आखाड़ा का तुम मस्त वीडियो बनाना- फिर हम दोनों उसी जगह मिलेगें – जहां कोई आता-जाता नहीं…।”

चांदनी उन्हीं के ख्यालों में खोई थी कि उसका

“वीवो” बज उठा- “मैं आ रही हूं …।” और फोन कट हो गया था । चांदनी ने इतनी चतुराई से फोन निकाला, फिर रिसीव किया और टॉप के अन्दर डाला। शायद ही उस पर किसी की नजर गई हो, ऐसा लगा था । अगले ही पल वह करम आखाड़ा से गायब हो चुकी थी …!

“किसी ने देखा तो नहीं तुम्हें आते हुए..!” सूरज चांद की मधुर रोशनी में चांदनी से चिपक गया था ।

दो बेकरार दिल को बेकाबू होने में देर न लगी । सांसों की लपटों से दोनों झुलसने लगे थे और पांव तले के पत्ते चीखने चिल्लाने लगे थे !

भोर भोर में साहस बटोर कर पंचों ने एक स्वर में कहा- “तुम दोनों ने जो अपराध किया है, अगर पंचायत माफ भी कर दे तो भी कानून तुम्हें माफ नहीं करेगा…।”

“लेकिन हम तुम्हें कानून के हवाले नहीं करेंगे …।” मुखिया जी ने बात का शिरा पकड़ते हुए कहा – ” तुम दोनों को सजा पंचायत देगी और सजा यह है कि तुम दोनों को शादी करनी होगी..। क्या तुम दोनों तैयार हो…?”

“हमें मंजूर है..!” सूरज ने कहा

“मुझे भी..।” चांदनी ने हामी भरी ।

“परन्तु शादी अभी नहीं होगी, शादी करने के लिए पहले तुम दोनों को बालिग होना होगा, यही सजा होगी..।”

“हमें मंजूर है….!” दोनों ने एक साथ कहा

“मां बाप में से किसी को कुछ कहना है ?”

“मुझे पंचायत का फैसला मंजूर है ।” लड़की का बाप रघु महतो बोला।

“और आपको विपत कुछ कहना है..?” मुखिया ने लड़के के बाप से पूछा था।

“जैसा पंचों का फैसला….।”

“अब इस पर कोर्ट एग्रीमेंट होगा… राजेश बाबू . एक एग्रीमेंट पेपर चाहिए..!”

“मुखिया जी, इतनी रात को कोर्ट बंद होगा। एग्रीमेंट पेपर कहां मिलेगा..?”

“राजेश बाबू, पुण्य का काम है, देखिए आपके पास मिल जायेगा….!”

“मुखिया जी, रात और दिन में आप फर्क नहीं समझते है… देखता हूं…!!

राजेश बाबू उठकर घर की ओर चल पड़े थे…!

बगडेगवा गांव में समय ने जैसे बगावत कर दिया था..!

पंचायत के फैसले का अभी महज आठ माह ही बीता था कि नवे माह बच्चे की किलकारी ने बगडेगवा में डीजे बज उठा तो लोग जाने पंचायत के कारावास में कन्हैया का जन्म हो चुका है! जिसने सुना वही दूसरे को सुनाने लगा- “कैसा तो युग आ गया, पंच-पंचायत की इज्जत भी नहीं रहने दी ।’’

“अब पंचायत के दिन लद गए…!”

“छि: छि… आज के बच्चों में ऐसी आग लगी रहती है कि पूछो मत.. शुरू हुआ तो निकाल कर ही ठंडा होगा..!”

”बिन शादी के ससुराल जाने में जरा भी शर्म नहीं आई चांदनी को ….!” औरतें चटखारे ले रही थीं ।

जंगल में लगी आग की तरह बात गांव में फ़ैल गई। बच्चे की बात मुखिया जी के कानों से जा टकरायी । लगा बच्चे ने कान में पैशाब कर दिया । गुस्से से चेहरा तमतमा उठा । उसके पंचायत के फैसले को पकौड़ा बना दिया और उसे कोई भी खा सकता है। उन्होंने चौकीदार को हांक लगाई । वह दौड़ा-दौड़ा पहुंचा था पंचायत घर ।

इस बार पंचायत दोपहर बाद ही बैठ गई थी ।

जहां मुखिया डिलू महतो बार-बार चांदनी और सूरज पर क्रोधित हो रहे थे- “तुम दोनों ने पंचायत के फैसले को मजाक उड़ाया और एग्रीमेंट को तोड़ा  है, घोर अपराध किया है और इसका सबूत है तुम्हारी गोद में यह बच्चा !”

“हमने एग्रीमेंट को नहीं तोड़ा है मुखिया जी !” चांदनी भी चुप रहने वाली नहीं थी ।

“एग्रीमेंट में साफ साफ लिखा है कि बालिग होने तक तुम दोनों शादी नहीं कर सकते हो- तुमने तो बच्चा पैदा कर दिया। यह एग्रीमेंट टुटना नहीं हुआ..?”

“हम तो आज भी कुंवारे हैं मुखिया जी..!” सूरज भला कैसे चुप रहता ।

“फिर यह बच्चा कैसे पैदा हो गया…?”

“एग्रीमेंट कागज पर लिखा है बालिग होने तक हम शादी नहीं कर सकते हैं- परन्तु यह कहीं नहीं लिखा है कि हम बच्चा पैदा नहीं कर सकते हैं …! चांदनी कुछ ज्यादा ही खुल गई थी । साल भर पहले पंचों के फैसले को चुपचाप स्वीकार कर लेने वाले प्रेमी जोड़े आज पंचायत से ही भीड़ गये थे । सूरज कह रहा था- “बच्चा तो हमें भगवान ने दिया है मुखिया जी, लेने से कैसे मना करते…?”

“बिन बियाही मां के बच्चे को समाज क्या कहता है- मालूम है तुम्हें…?”

“बस कीजिए न मुखिया जी, अब बच्चों की जान लेंगे क्या ?” पूर्व सरपंच ने हस्तक्षेप करते हुए कहा- “नादान है, भूल हो गई, तब शादी नहीं की थी। आज कर लेंगे और दस भयाद को खस्सी भात खिला देगें… सूरज मुखिया जी के लिए देशी कड़क मुर्गा ले आना, चौकीदार जाओ एक पुड़िया सिंदुर ले आओ…!”

मुखिया जी ने कुछ कहना चाहा इससे पहले सूरज बोल उठा- ”हम तैयार है सरपंच जी….!”

“पंचायत की जय …” कोई बोल पड़ा।

फिर पीछे से एक साथ कई बोल पड़े – “खस्सी भात की जय!  खस्सी भात की जय…!”

 

 

 

 

 

 

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