समृद्ध लेखन की धनी जानी मानी प्रतिष्ठित साहित्यकार नरेंद्र कौर छाबड़ा का साक्षात्कार अलका मित्तल के द्वारा
नरेंद्र कौर छाबड़ा
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अलका मित्तल
प्रश्न : आप कब से लेखन में सक्रिय हैं एवं लेखन प्रेरणा कहाँ से मिली ?
उत्तर : मेरी लेखन यात्रा लगभग 40 वर्ष पूर्व आरम्भ हुई थी । जहाँ तक प्रेरणा की बात है तो यह बड़ा दिलचस्प क़िस्सा है। जब मैं नवमी – दसवी क्लास में थी। पढ़ने का शौक़ बहुत छोटी उम्र में ही लग गया था। कहानियों की किताबों व अख़बारों में बाल भारत या बच्चों की दुनिया पृष्ठों में कहानियाँ, कविताएँ, चुटकुले बड़े चाव से पढ़ती थी। जब उसके नीचे लेखक का नाम देखती तो मुझे विचार आता क्या कभी यहाँ मेरा नाम भी आ सकता है ? बस, इसी विचार से ही मेरे अंदर लिखने की भावना ने जन्म लिया। मेरे पिताजी भी धार्मिक विषयों पर कभी-कभी लिखा करते थे। कुछ प्रेरणा उनसे मिली। फिर छोटी कविता व संस्मरण लिखने शुरू किये। सबसे पहली कविता नई दुनियाँ इंदौर के अख़बार में छपी।
प्रश्न : कहानियों के अलावा और किस विधा में आपकी लेखनी ज़्यादा चलती है व आपकी पसंदीदा साहित्य विधा क्या है ?
उत्तर : समय के साथ लेखन की रुचि भी बढ़ती गई और लेखन का दायरा भी। फिर मैं लेख के साथ कहानियाँ भी लिखने लगी। उसके बाद फ़ीचर, लघुकथा, कविता, इंटरव्यू, संस्मरण सभी पर मैंने लिखना शुरू किया। वर्तमान में मेरी पसंदीदा विधा लघुकथा है।
प्रश्न : आपकी अभी तक कितनी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा पहली रचना किस पत्रिका में छपी थी ?
उत्तर : अभी तक मेरी 10 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें से पाँच हिंदी कहानी संग्रह, एक पंजाबी कहानी संग्रह, एक तमिल कहानी संग्रह, एक लेख संग्रह, एक लघुकथा संग्रह तथा एक मराठी में अनुवादित लघुकथा संग्रह है। मेरा पहला लेख सरिता में छपा था।
प्रश्न : सम्मान, पुरस्कार के विषय में भी अवगत कराइये।
उत्तर : मेरे पहले कहानी संग्रह को केन्द्रीय निदेशालय का हिंदी तक भाषी पुरस्कार राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा द्वारा प्राप्त हुआ। तीन पुस्तकों को महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ है। इसके अलावा कथाबिंब पुरस्कार, स्वदेश कहानी पुरस्कार, स्पूतनिक कहानी पुरस्कार, शुभ तारिका कहानी पुरस्कार, दिल्ली प्रेस कहानी प्रतियोगिता में दो बार पुरस्कार मिला तथा बहुत सारी लघुकथाओं को भी पुरस्कार मिले हैं। कुछ कहानियों व लघुकथाओं का संग्रह में भी समावेश किया गया है।
प्रश्न : साहित्य को आप अपने तरीक़े से कैसे परिभाषित करती हैं ?
उत्तर :साहित्य समाज का दर्पण है। यह समाज में क्रान्ति ला सकता है। साहित्य के द्वारा ही हम देश, दुनिया, इतिहास, अपनी संस्कृति की जानकारी प्राप्त करते हैं। साहित्य, विज्ञान, धर्म, राजनीति, समाज सभी के बारे में जानकारी साहित्य के द्वारा ही प्राप्त होती है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि साहित्य हमारे जीवन का एक हिस्सा है जिसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती।
प्रश्न : हिन्दी साहित्य का भविष्य आप कैसे देखती हैं ?
उत्तर : हिन्दी साहित्य का भविष्य मुझे तो बहुत उज्ज्वल दिख रहा है।समाचार पत्र पत्रिकाओं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कारण लोगों की साहित्य पढ़ने में बहुत रुची बढ़ी है और साथ साथ लिखने की भी। छोटी उम्र के अनेक लेखक काफ़ी अच्छा लिख रहे हैं।
प्रश्न : लेखन के अलावा आपकी अभिरुचियाँ क्या हैं ?
उत्तर : लेखन के अलावा मुझे चित्रकारी का बहुत शौक़ है। मेरी एकल चित्रकला प्रदर्शनी भी लग चुकी है।इसके साथ ही बाग़वानी, क्राफ़्ट, आध्यात्मिकतातथा समाज सेवा का भी शौक़ है।
प्रश्न :आपका लेखन क्षेत्र इतना विस्तृत है व्यस्त भी रहती होंगी। परिवार का कितना सहयोग आपको मिलता है ?
उत्तर : अपने लेखन कार्य के कारण मैं अपने परिवार को कभी उपेक्षित नही करती इसलिए मुझे हमेशा उनका सहयोग मिलता है।
प्रश्न : साहित्य समाज में फैली अराजकता में कितना सहायक हो सकता है ?
उत्तर : समाज में फैली विसंगतियाँ, अराजकता, कुरीतियों अंधविश्वासों को दूर करने में साहित्य की बड़ी भूमिका हो सकती है। इसके लिये आवश्यक ये है कि इन विषयों पर लिखें साहित्य को पढ़कर लोग उस पर विचार करें और उसको व्यवहार में लायें।
प्रश्न : नवोदित रचनाकारों को आप क्या संदेश देना चाहेंगी ?
उत्तर : नवोदित साहित्यकारों को छपने की लोकप्रियता, प्रशंसा पाने की बड़ी हड़बड़ी होती है इसलिए कुछ लेखक निम्न स्तर तक का लेखन कर डालते हैं जो समाज के लिए घातक है।लेखन में धैर्य की, परिश्रम की, विचार मंथन की बहुत आवश्यकता होती है इस बात का उन्हें ध्यान रखना चाहिए।