— सिद्धेश्वर
” यार, तुम आज भी किस विचारधारा में जी रहे हो ? 21वीं शताब्दी में आ गए, लेकिन अब भी तुम्हारी सोच नहीं बदली ! बेटा और बेटी में फर्क महसूस करते हो ? बेटी जन्म ली थी तब तुम्हारे चेहरे पर मायूसी छाई हुई थी l आज बेटे के जन्म पर धूमधाम से जश्न मना रहे हो ? ”
” बेटा की बात ही कुछ और है यार ! तुम लाख मन को मना लो, लेकिन बेटा पाने की खुशी को दबा न सकोगे!
……. बेटी के जन्म लेते ही वेतन में से हजार रुपये की कटौती शुरू कर दिया था l और अपने बैंक खाते में हर महीने आज भी जमा कर रहा हूं, ताकि उसके जवान होते ही, उसकी शादी में लाखों रुपए दहेज देने का बोझ अचानक मेरे सिर पर न आ पड़े l……. लेकिन, अब बेटा के जन्म लेने से थोड़ा सुकून मिला है, दिल को l बोझ कुछ हल्का महसूस कर रहा हूं l बेटी की शादी में जो बैंक बैलेंस खाली हो जाएगा, बेटे की शादी में वह खाली बैंक बैलेंस फिर से तो भर जाएगा ना ? …. ”
” जमाना इतना आगे बढ़ गया, फिर भी तुम दहेज लेने-देने की बात करते हो ? यह तो कानूनी अपराध है यार ! “
” सिर्फ सरकार और कानून की नजर में ! हकीकत में तो दहेज पहले से भी अधिक लिया और दिया जाने लगा है l शादी के तामझाम में भी पहले से अधिक खर्चा बढ़ गया है l साग – सब्जी, फूल -फल की तरह, दूल्हा बाजार में दूल्हा का भाव भी तो कई गुना बढ़ गया है !….
…… नेता एवं कानून वाले और सरकारी हुक्म चलाने वाले ही, अपनी बेटी की शादी में करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा रहे हैं !..तो फिर हम आम जनता उससे कैसे बचे रहेंगे, बोलो?”
थोड़ा रुककर, दम भर सांस लेते हुए राकेश ने अपनी बात पूरी की-
” अरे यार, सरकार कानून, आदर्श, नैतिकता इन सब की बातें छोड़ो, ये सारी बातें सिर्फ कहने -सुनने में अच्छे लगते हैं ! जिस तरह रेडियो में रोज-रोज बजने वाला सरकारी विज्ञापन अच्छा लगता है – ” बेटा बेटी एक समान, इसका तुम रखना घ्यान !” मै तो कहता हूँ, कानून हो या सरकार ! दिखाने और खाने के दाँत अलग -अलग होते हैं ! “
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