-राजेश मंझवेकर
व्यंग्य
समाज में कई तरह के प्राणी होते हैं। शिक्षक भी उनमें से एक हैं। यह अलग बात है कि कोई उन्हें प्राणी मानने को तैयार नहीं है।
शिक्षक की भी तीन-चार किस्म की प्रजाति होती है। एक कॉलेज के शिक्षक, जिनको इतना पेमेंट मिलता है कि खर्च करने की प्लानिंग बनानी पड़ती है। इसके बाद भी खर्च हो नहीं पाता। इनके जीवन की गाड़ी बुलेट ट्रेन से कम नहीं। एक होते हैं वेतनमान वाले शिक्षक।
इनको इतना दरमाहा तो मिल ही जाता है कि रोटी, कपड़ा और मकान का जुगाड़ हो जाता है और उनकी जिंदगी की गाड़ी एक्सप्रेस ट्रेन तो बनी ही रहती है।
शिक्षक की एक प्रजाति टीचर कहलाती है। इन्हें शिक्षक कहने की हिम्मत न करें। यह टीचर कहलाना ही पसंद करते हैं। यह उनकी स्वभावगत समस्या है। इसकी चर्चा यहां जरूरी नहीं। पब्लिक स्कूल नामक दुकान के यह दुकानदार अपना बिजनेस रिसेशन में भी बिना हील-हुज्जत के चला लेने की कूवत रखते हैं। वैसे, बस इसी टाइप के टीचर हैं, जो असल में धन्यवाद के पात्र हैं। वह इसलिए कि इनकी वजह से ही शिक्षक का मान-सम्मान थोड़ा अंग्रेजी टाइप का हो जाता है, वर्ना मास्साब, माहटर और मस्टरवा की लक्ष्मणरेखा – कॉक्रोच वाली
फीलिंग से इन्हें कभी बाहर ही नहीं आने देती। शिक्षक की एक ऐसी प्रजाति भी है जिसकी चर्चा करने में खुद शिक्षक को ही शर्म आती है। इनके शरीर पर ठीक से कपड़ा-लत्ता तक नहीं होता, पॉकेट में हरा पत्ता तक नहीं होता और घर में साग- पत्ता तक नहीं वाली स्थिति बनी रहती है। दरअसल, इनका ऐसा हाल उसी ने बनाकर रखा है, जिसने इसे गोद ले रखा है। ये कहने को तो सरकारी शिक्षक कहलाते हैं, पर सरकार इन्हें अपना पुत्र तो दूर दत्तक पुत्र तक मानने को तैयार नहीं है। वैसे तो इस प्रजाति के शिक्षकों को सरकार ने प्राणी कहलाने लायक रहने भी नहीं दिया है, पर चूंकि यह
भी इस समाज के ही किसी कोने में वास करते हैं, इसलिए इन्हें प्राणी मान लेते हैं। इनका नामकरण हुआ है नियोजित शिक्षक। नियोजित शिक्षक की आज के संदर्भ में सबसे सटीक व्याख्या यह है कि यह समाज का एक ऐसा जीव है जिसके साथ सरकार के साथ-साथ ही एक अदना – सा आदमी भी दोयम की कौन कहे, तीसरे-चौथे दर्जे का व्यवहार करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है।
समाज और शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए शिक्षा से कटे बच्चों को स्कूल की राह पकड़ाने और एक-दो घंटी पढ़ा देने के लिए शिक्षामित्र की बहाली की गयी थी। यानि भेड़ी के गरेड़ी की बहाली हुई थी। बाद में इनकी बेहतर सेवा को देखकर इन्हें नियोजित शिक्षक का दर्जा दे दिया गया और मानदेय बढ़ाने का लॉलीपॉप भी दिया गया। बाद में शिक्षकों की कमी की खाई को पाटने के लिए टीईटी जैसी परीक्षा की बाधादौड़ पार करनेवाले शिक्षक बनाए गए, पर यह भी ‘सब धान बाइसे पसेरी’ वाली श्रेणी में ही रह गए। खूब ठोंक- पीटकर बहाल किया, पर ऐसे शिक्षक भी बहाल करने वाली सरकार की नजर की किरकिरी बन कर रह गए। इनसे आदमी, जानवर, टीवी- रेडियो, स्कूटर, गाड़ी, मुर्गी-चेंगना को गिनाने का काम कराया जा रहा है। बीएलओ के काम से लेकर आदमी की जात और कमाई का हिसाब करावाया जा रहा है। नक्सल एरिया तक में चुनाव कराने में झोंका जा रहा है। अभी इनपर खुले में शौच करने वालों की खबर लेने और शराबबंदी में सहयोग करने के लिए शराब के धंधेबाजों और पियक्कड़
लोगों की खबर देने की जिम्मेदारी भी सौंप दी गयी है। इससे बड़ा और क्या मजाक होगा कि शराबबंदी में हथियारों से लैस पुलिस और उत्पाद विभाग फेल है, जबकि बेचारे मास्टर साहब कलम की बंदूक लेकर इनके विरुद्ध मोर्चा खोलेंगे। कुल मिलाकर पीर, बावर्ची, भिश्ती
और खर की भूमिका में हमेशा तैनात कराने के लिए मास्टर साहब ही मिलते हैं और फिर कोसने के लिए सबसे मुलायम चारा भी यही हैं।
सबसे मजे की बात तो यह है कि इन्हें बच्चों को पढ़ाने के लिए कभी कोई मौका या गुंजाइश देना तक सरकार को गवाना नहीं। तुर्रा
यह कि ‘इन्हें पढ़ाना ही नहीं आता’ अथवा ‘ये पढ़ाना ही नहीं चाहते’ का कलंक भी सरकार के कर्ताधर्ता ही लगाकर मजा ले रहे हैं।
मजाक की हद तो यह है कि इनकी जांच अनपढ़ जीविका दीदी करेगी, जो स्कूल आते ही पूछती है कि – इ इस्कूल में केतना प्रिंसपल हैं और सब्भे कहां गिए हैं? इस्कूलवा में काहे नहीं हैं? इससे भी मजे की बात तो यह है कि अब शिक्षा मंत्री भी शिक्षकों से मजाक करने का मौका खोज रहे हैं। कुली जैसे शिक्षकों को बिल्ला लगाना होगा कि गर्व से कहो, हम शिक्षक हैं। पता नहीं,
विश्व हिन्दू परिषद के गर्व से कहो, हम हिन्दू हैं से वे कब प्रभावित हो गए। शायद शिक्षा मंत्री सही सोच रहे हैं कि शिक्षकों का हाल कुलियों से भी गया-बीता बनाने में कोई कसर जब रख नहीं छोड़ी गयी, तो बेइज्जत करने में पीछे रहने का कोई मौका क्यों चूकें? इतने
पर भी शिक्षकों को दाद कि वे अपने दिन बहुरने की आस लगाए बैठे हैं। अब इन्हें कौन समझाए कि चुनाव में आप मुद्दा तो बन सकते हैं, पर आपकी समस्या कभी मुद्दा नहीं बनने वाली।