“सोशल मीडिया के माध्यम से जनमानस में
कविता की वापसी का स्वागत है !”: शंभू भद्रा ••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
” प्रकाशन और पाठकीय संकट के बावजूद जनमानस के करीब पहुंच रही है कविताएं !”: सिद्धेश्वर
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” मानव चेतना को जागृत करने वाली कविता जनमानस के करीब !”: डॉ सविता सिंह नेपाली
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पटना : 28/02/2022 ! ” कोरोना काल के बाद से फेसबुक और व्हाट्सएप यानी सोशल मीडिया के माध्यम से यह तस्वीर बिल्कुल साफ हो गई है कि जनमानस में कविता की वापसी हुई है l क्योंकि सोशल मीडिया पर, नए या पुराने कवियों की ऐसी जीवंत कविताएं आसानी से आम पाठकों के बीच पहुंच जा रही है,जिसे मुख्यधारा की पत्रिकाएं और प्रकाशक आने नहीं दे रहे थे l शायद यही वजह है कि मुख्यधारा के कवि भी, जो पहले सोशल मीडिया को कूड़ेदान कहकर उपेक्षित कर दिया करते थे, अब वे भी सोशल मीडिया से जुड़ते जा रहे हैं और हजारों लाखों की संख्या में जनमानस के करीब पहुंच भी रहे हैं l ”
फेसबुक के ” अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका ” के पेज पर, भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में ऑनलाइन आयोजित ” हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन ” का संचालन करते हुए संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l
उन्होंने कहा कि – प्रकाशन और पाठकीय संकट के बावजूद जनमानस के करीब पहुंच रही है सहज अभिव्यक्ति वाली पठनीय कविताएं !”
“हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन” के आरंभ में मुख्य अतिथि, हरिभूमि के संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और कवि शंभू भद्रा ने कहा कि – ” निश्चित तौर पर कविता से भाग रहे पाठकों को, अपनी ओर मोड़ने में सार्थक कवियों की अहम भूमिका रही है l सोशल मीडिया के माध्यम से सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार करने वाली और जीवन के सौंदर्य को उद्घाटित करने वाली कविताएं, सोशल मीडिया के माध्यम से जनमानस के करीब पहुंच रही है, इसमें कोई दो मत नहीं l जनमानस के समझ में आने वाली काव्यात्मक अभिव्यक्ति ही कविता के प्राण तत्व है l ”
ऑनलाइन कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए मंत्रिमंडल सचिवालय की अधिकारी और वरिष्ठ कवयित्री डॉ सविता सिंह नेपाली ने कहा कि – सहज भाव में लिखी गई मानव चेतना को जागृत करने वाली कविताएं ही जनमानस के करीब पहुंचती है !
जनमानस के करीब आ रही कविता के संदर्भ में ऋचा वर्मा ने कहा कि -आज लोकोक्तियों नारों का स्वरूप ले ली हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि अच्छी कविताएं हर युग में जनमानस पर अपना स्थान बना ही लेती हैं बशर्ते कि उनमें कुछ कहने को हो ।
डॉ. शरद नारायण खरे ने कहा कि – बहुत सारी कविताएं. सिर्फ अपने को कवि सिद्ध करने के लिए लिखी जा रही है l बहुत सारे पटल के संचालक स्वयं कविता के बारे में नहीं समझ रखते हैं l कविता एक सुनिश्चित विधा है,जिसमें प्रतिभा की जरूरत होती है l ऐसी ही कुछ सार्थक कविताएं भी सोशल मीडिया के माध्यम से जनमानस तक पहुंच रही है l कविता सृजन में चिंतन की आवश्यकता होती है, सपाटबयानी की नहीं l ”
डॉ कुँवर वीर सिंह मार्तण्ड (कोलकाता) ने कहा कि – कहा गया है, आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है l कोरोना काल में जब साहित्य से जनमानस के जुड़ाव के सारे रास्तेबंद हो गए, तब सोशल मीडिया के माध्यम से साहित्य जनमानस के करीब पहुंचा, खासकर कविता ,जो कविता जनमानस से कट गई थी वह सोशल मीडिया के माध्यम से जुड़ गई है, आज ऐसा ही प्रतीत हो रहा है l राज प्रिया रानी ने कहा कि – हम सौंदर्य को देखकर मोहित होते हैं। वर्तमान जीवन की अनुभूतियां चौगुनी बढ़ती जा रही है और शत-प्रतिशत लोगों के मध्य कविता की वापसी हो रही है l
लगभग पौने 3 घंटे तक चली इस ऑनलाइन कवि सम्मेलन में, देशभर के 2 दर्जन से अधिक कवियों की भागीदारी रही l सोशल मीडिया के माध्यम से जनमानस के बीच चर्चित कवयित्री शैलजा सिंह ( गाजियाबाद ) ने – जाने किस राह, किस गांव,किस ठाओं से सबको है जाना रे ! “/ स्वेता मिनी ने ” आज भी याद की मुंडेरों पर, तेरे कदमों के तले है जमाना !/ दूर तक छाए थे कोहरे, और कहीं साया न था !, इस तरह जाड़े का मौसम, कभी आया न था !”/ मनिंदर कौर ( औरंगाबाद) ने – किससे बातें करती ? दिल का दरवाजा बंद कर रखा था, आंखों में आंसू भी सूख गए थे !”/मीना कुमारी परिहार ने – मैं अपने सारे दर्दो गम जहां इजहार करती हूं !,वतन की खुशबूओं से मैं हमेशा प्यार करती हूं !. /दुर्गेश मोहन( समस्तीपुर)ने – वसंत है ऋतुराज़ l,इस ऋतु में होता सौंदर्य का कमाल l/ मधुरेश शरण ने – सदा साथ होगी हमारी वफा, मोहब्बत करेंगे ना देंगे जफा !, ना रूठो हमारी कसम है सनम, कहो किस लिए हो गए हो खफा ? / कनक हरलालका(आसाम )ने – तुमने कहा मैं प्यासा हूं, मैं कल कल नदी सी बहने लगी !, तुमने कहा मैं भूखा हूं, मैं गरम रोटी सी सिंकने लगी l/ रशीद गौरी ने – रह गया है बस वफाओं का नाम आजकल !, एक दिखावा है दुनिया में आम आजकल !/ डॉ कुँवर वीर सिंह मार्तण्ड (कोलकाता )ने -” सागर तीरे सांझ ढले, दृश्य देखकर मन मचले !/ अभिमत नारायण कौशिक ने – मशीनों के मार से कराह रहा था तन !/
हरिनारायण सिंह हरि (समस्तीपुर)- जिगर का जख्म ही तो गीत बनकर आज निकला है !, गया था गम मेरा जो जम, पिघलकर आज निकला है !/ मुरारी मधुकर ने – सच हो रहा है मुंशी प्रेमचंद का कथन, आजाद भारत में भी कम नहीं होगा उत्पीड़न !”?/ सुरेश वर्मा ने – सड़कों पर कतारे लाशों की, गलियों में लहू की धारा है ! हर आंगन में कोहराम मचा, हर ओर अजीब नजारा है l/ रेखा भारती मिश्रा ने- रंजीशें मिले या मिले बेदिली,इश्क दिल से निभाएंगे हम l/ पुष्प रंजन ने – मिलती जिंदगी में हार, अंधेरी रात जैसी, होगा पुनः उजाला, फिर उदासी कैसी ?/ अपूर्व कुमार (वैशाली ) ने – सुख का सूरज डूबे तो डूबे, रहूंगा अंधकार में भी डटा, हे रात बिखरो अपनी छटा ! / रचना पथिक (नैनीताल ) ने- नित् फिसलती जिंदगी से मोह क्यों बढ़ने लगा ?, हर घड़ी क्यों बढ़ रही कुछ प्राप्त करने की तृषा ? / रामनारायण यादव (सुपौल ) ने – आखरी दम तक खड़ा रहता, वह चुपचाप सबकुछ सहता l जैसी उम्दा गीत गजलों से महफ़िल रोशन हुआ, वहीं मनिंदर कौर छाबड़ा की आवाज में सिद्धेश्वर की कविता – मुझको मेरी कमी खलती है, कोई मुझको मुझ से मिलवा दें !, मेरे शब्दों को शब्दों से है शिकायत, कोई मेरे शब्दों का अर्थ बतला दे !
इस अविस्मरणीय ऑनलाइन कवि सम्मेलन में ” सुनो कविता” के अंतर्गत गोपालदास नीरज की कविता-” देखकर वक्त का ये अजब फैसला,हम को रोते हुए भी हंसी आ गई!,जिनको खुशबू से ना कोई पहचान थी, उनके घर फूलों की पालकी आ गई !/ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता -“पकड़ भी लूं खुरपी की तरह कलम, तो भी फसल काटने को मिलेगी नहीं हमको !”/ कुंवर बेचैन की गजल -अभी बुझने से पहले एक कोशिश, दीयों के साथ रह.ले, एक कोशिश !/ भगवती प्रसाद द्विवेदी के दोहे -झुकी कमर टूटा बदन, खून बड़ा दिन रात, पेट पीठ से चिपक कर, करता गुपचुप बात!” और दिलीप कुमार की कविता – तपती दोपहरी में, समेटता रहा मैं, रोज एक मुट्ठी धूप ! ” की प्रस्तुति, एक वीडियो क्लिप के माध्यम से सिद्धेश्वर ने प्रस्तुत किया , जिसे देश भर के 300 से अधिक श्रोताओं ने देखा और पसंद किया l
इस कवि सम्मेलन में इनकी भी महत्वपूर्ण भागीदारी रही संतोष मालवीय, डॉ. सुनील कुमार पाठक, बीना गुप्ता, आराधना प्रसाद, वेदांसु, गोरख प्रसाद मस्ताना, प्रेम कुमार, जयंत, अनिरुद्ध सिन्हा, जितेंद्र कुमार, दिनेश , वेद प्रकाश, विजय गुंजन,, हरेंद्र सिन्हा आदि की भी भागीदारी रही l
() प्रस्तुति : ऋचा वर्मा[सचिव ] एवं सिद्धेश्वर [ अध्यक्ष ] /भारतीय युवा साहित्यकार परिषद मोबाइल 92347 60365
इस पोस्ट में फेसबुक के महत्व को रेखांकित किया गया है। पत्र, पत्रिकाओं में प्रकाशन की झंझटों से परे फेसबुक सर्वसुलभ माध्यम के रूप में सभी तरह की कविताओं को मंच देता है। हम एकसाथ कई पीढ़ियों की कविताओं का आस्वादन कर सकते हैं। यही वजह है कि पत्रिकाओं में छपने वाले कवि भी यहाँ अपनी कविताएँ पोस्ट करने में असहज महसूस नहीं करते। सिद्धेश्वर जी की इस पोस्ट पर कृपया ध्यान दें और अपने विचार रखें। शुभमंगल !