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नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’
स्टेशनरी की दुकान पर सुधांशु बेटे के लिए हिंदी- अंग्रेजी की नोट बुक, पेंसिल और रबड़ खरीद रहा था।
दुकानदार चाय पीते हुए दूसरे हाथ से सभी समानों का पूरा पैकेट ही उसे थमा दिया ताकि जो पसंद आयेगा वह ले लेगा। खुद बाहर कप रखने और हाथ धोने चला गया।
बहुत सारी पेंसिलें, रबड़ और कटर थे। सुधांशु के मन में लालच आ गया। उस समय वह दुकान में अकेला था। उसने दो रबड़ और कटर अपनी जेब में रख लिए। काउंटर पर एक पेंसिल, एक रबड़ और एक कटर रख दिया दुकानदार की नजर में ।
दुकानदार जब नोट बुक दिखाने लगा तब उसने अनजान बन कर पूछा, “सेठ जी, आपने मुझे पूरा पैकेट थमा दिया था अगर मैं चुरा लेता तो ?”
“दो-चार रूपये की चीजें चुराकर आप मेरी किस्मत थोड़े ही ले लेंगे। न हीं मरते समय उन चीजों को मुठ्ठी में बांध कर ले जाएंगे। यह आप पर निर्भर है कि आप बेईमान बनेंगे या ईमानदार । जो चोरी करेगा वह खुद अपनी नजरों में गिरेगा।” कहकर दुकानदार दूसरे ग्राहकों को सामान देने लगा।
सुधांशु अपनी जेब से रबड़ और कटर निकालकर काउंटर पर रखते हुए बोला, “इनके भी रूपये जोड़ लीजिए।”