नसर आलम नसर
नज़्म
वो दूर मुझसे न जा सकेगी
अकेले कैसे निभा सकेगी
ज़रा सा ग़ुस्सा का ताड़ इतना
गुनाह छोटा अज़ाब इतना
हमारी बातों में थी ख़राबी
मगर न समझो ख़राब इतना
चलो गुनाह हम कबूल कर लें
फिर एक जैसा उसूल कर लें
मिला के हाथों से हाथ अपना
निभाएं हमदम ये साथ अपना
कदम कदम पर ख़राबियां हैं
मगर निभाना पड़ेगा हम को
हमारे बच्चे बिलख रहे हैं
ख़मोश दिल से तड़प रहे हैं
पुकारते हैं वो मां को अपने
जो देखते हैं हज़ार सपने
कभी अकेले नहीं रहे जो
वो कह रहे हैं और मां कहां हो
ज़रा सी बातों में दूर जाना
ये घर तुम्हारा है लौट आना
ग़ज़ल
आप की बज़्म से हम हो के दिवाना निकले
बोलिए कैसे मेरे दिल से तराना निकले
ज़िन्दगी सादगी के साथ गुज़ारा हम ने
क्यों तेरे लब से मेरे वास्ते ताना निकले
मेरे अजदाद ने रक्खा है छुपा कर घर में
धूंद शायद किसी कोने से खज़ाना निकले
पास में बैठ मोहब्बत से ज़रा बातें कर
बात से बात फसाने से फ़साना निकले
ऐ नसर जो भी मयस्सर हो ख़ुशी हासिल कर
सामने से न कभी मौका सुहाना निकले।
- पटना बिहार
9304459648