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– पी.आर्य कुमार

जब हम किसी को चाहते हैं….
तो हमारी मर्ज़ी ख़ुद व ख़ुद उसकी पसंद में ढ़लती जाती है….!
हद तो यह है की आइना देखते हुए….
होठ जब खुद व ख़ुद मुस्कुराने लगे….
तो समझ लीजिए की आप अपने आप को….
किसी और की नज़र से देखने लगे हैं…..

….और ऐसे में जब उसका इंतज़ार, सिर्फ़ इंतज़ार रह जाता है तब….

अब इंतज़ार के सारे चिराग़ गुल कर दो….
की वक़्त बीत गया, हो गया पराया वह….
जिसे मैंने अपना समझा था, वह किसी और का हो गया…!
मेरे कानों में अब तक उसकी सरगोशियाँ गुंज रही है….
उसके होठों से निकले सभी शब्द आज पराए हो गए….
वह बातें जो कभी मेरे लिए कही थी….
वह सभी जुमले आज पराए हो गए…..!

और अन्त में…..

चाहत की कहानियों पर अब आती है हंसी….!
की हमसे बिछङकर उसके सोंच का रूख़ बदल गया….!!

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